नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उन तीन वकीलों को कड़ी फटकार लगाई जिन्होंने संविधान के भाग तीन के तहत आर्टिकल 20 और 22 को ‘संविधान का उल्लंघन’ या अधिकार के बाहर घोषित करने के लिए एक याचिका दायर की थी. संविधान का आर्टिकल 20 अपराधों के लिए दोषसिद्धि से सुरक्षा से संबंधित है, जबकि आर्टिकल 22 खास मामलों में गिरफ्तारी एवं हिरासत से सुरक्षा से संबंधित है. दोनों अनुच्छेद संविधान के भाग तीन में हैं, जो मौलिक अधिकारों से संबंधित है. यह याचिका तमिलनाडु के एक शख्स ने दायर की थी.
याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड रखने का मकसद यह है कि याचिकाओं की प्रारंभिक जांच हो सके. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एओआर केवल याचिकाओं पर हस्ताक्षर करने वाला प्राधिकारी नहीं होना चाहिए
सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, ‘कोई आता है, आप अपनी फीस लेते हैं और याचिका दायर कर देते हैं. यह स्वीकार्य नहीं है. आपके लाइसेंस रद्द कर दिए जाने चाहिए. इस प्रकार की याचिका संविधान के आर्टिकल 32 के तहत कैसे दायर की जा सकती है? एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड और मसौदा तैयार करने वाले वकील कौन हैं, उन्होंने कैसे इस पर हस्ताक्षर कर दिए?’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कुछ जिम्मेदारी तो होनी चाहिए. आप (बहस करने वाले) वकील हैं, आप कैसे सहमत हुए? बार में आपका क्या दर्जा है? यह बहुत गंभीर स्थिति है. इसने हमारी अंतरात्मा को झकझोर दिया कि ऐसी याचिका दायर की गई. कोर्ट ने तीनों वकीलों को एक हलफनामा दायर कर यह स्पष्ट करने को कहा कि उन्होंने किन परिस्थितियों में ऐसी याचिका दायर की.