पटना. JDU में मचे उथल-पुथल के बीच आरसीपी सिंह को राज्यसभा का टिकट न मिलना, इस स्थिति ने साफ कर दिया है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुंगेर के सांसद ललन सिंह नीतीश कुमार के बाद अब नम्बर दो की कुर्सी पर आ गए हैं. पिछले कई दिनों से कयास चल रहे थे कि जेडीयू में क्या नीतीश कुमार और आरसीपी सिंह की लम्बी दोस्ती RCP सिंह को एक मौका और दे देगी, लेकिन आखिरकार नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह की जगह अपने पुराने राजनीतिक सहयोगी ललन सिंह को तरजीह दी और RCP सिंह का पत्ता कट गया. इसके साथ ही उन तमाम कयासों का अंत भी हो गया जो आरसीपी सिंह के मंत्री बनने के बाद उन पर लगा था.
JDU के सूत्र बताते हैं कि जब आरसीपी सिंह ने केंद्र में मंत्री बनने का फैसला खुद से ले लिया था और मंत्री बनने के बाद मीडिया से बातचीत में कहा था कि वो मंत्री नीतीश कुमार की सहमति से ही बने हैं, इसके बाद से ही नीतीश कुमार काफी असहज हो गए थे. जब पत्रकारो ने उनसे पूछा था तब वो इस सवाल का जवाब देते हुए भी असहज थे क्योंकि उन पर आरोप लग रहा था कि उन्होंने अपनी जाति के नेता को तरजीह दे दी है. तब नीतीश कुमार ने ये जवाब दे पल्ला झाड़ा था कि आरसीपी सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और उन्हें अधिकृत किया गया था और उन्होंने ही अपना नाम दिया था. ये उनका फैसला है लेकिन उसके बाद भी नीतीश कुमार पर जातिगत राजनीति का आरोप लग रहा था.
आरसीपी सिंह का पत्ता काटने के बाद नीतीश कुमार ने अपने ऊपर लग रहे आरोपों को खत्म कर दिया है साथ ही भूमिहार समाज को भी ये मैसेज देने की कोशिश की है कि वो ललन सिंह के साथ खड़े हैं. पार्टी के सूत्र ये भी बताते हैं कि नीतीश कुमार इस बात को लेकर भी असहज थे कि केंद्र में JDU कोटा के मंत्री भी कुर्मी जाति से हैं और वो खुद भी कुर्मी जाति से आते हैं, ऐसे में उन पर जाति विशेष को प्राथमिकता देने का आरोप लग गया था. आरसीपी सिंह का पत्ता काटकर नीतीश कुमार ने बड़ा मैसेज देने के साथ ये भी साफ कर दिया है कि आने वाले समय में अगर मंत्रिमंडल विस्तार होता है तो जातीय संतुलन साधने की पूरी कोशिश करेंगे.
एक दिलचस्प वाकया ये भी है कि 2019 में केंद्र में मंत्रिमंडल बनने की कवायद चल रही थी, तब नीतीश कुमार राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और वो आरसीपी सिंह तथा ललन सिंह दोनो को मंत्री बनाना चाहते थे लेकिन जब एक सीट ही देने की बात हुई तो उन्होंने ये कह कर मंत्रिमंडल में शामिल होने से इंकार कर दिया कि संख्या के हिसाब से प्रतिनिधित्व JDU को मिले, सांकेतिक भागीदारी पर JDU तैयार नहीं है. वहीं जब राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और उन्हें जब मंत्रिमंडल विस्तार के लिए अधिकृत किया गया तो उन्होंने अपना नाम आगे किया और मंत्री बन गए. आरसीपी सिंह के इसी फैसले से पार्टी का शीर्ष नेतृत्व नाराज हो गया.