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हाई कोर्ट ने पूछा है- ‘सांसदों की अंतरात्मा को झकझोरने के लिए और कितनी निर्भयाओं के बलिदान की जरूरत है?

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने तल्ख टिप्पणी की है. हाई कोर्ट ने पूछा है- ‘सांसदों की अंतरात्मा को झकझोरने के लिए और कितनी निर्भयाओं के बलिदान की जरूरत है? कोर्ट ने यह टिप्पणी 11 साल की लड़की के साथ हुए दुष्कर्म मामले की सुनवाई के दौरान की. कोर्ट उस वक्त नाराज हुई जब दुष्कर्म के आरोपी 15 साल के नाबालिग के वकील ने जमानत के लिए अर्जी दी.

गौरतलब है कि यह दुष्कर्म 16 जनवरी को झाबुआ में किया गया था. इसके बाद मामला जुवेनाइल बोर्ड पहुंचा और वहां से भी रिजेक्ट कर दिया गया. याचिकाकर्ताओं ने फिर केस को सेशन कोर्ट में रखा. वहां से भी रिजेक्ट होने के बाद मामला हाई कोर्ट पहुंचा और हाई कोर्ट ने भी नाबालिग आरोपी को जमानत देने से इनकार कर दिया. जमानत मांग रहे पक्ष के वकील विकास राठी ने कोर्ट से कहा कि नाबालिगों से बलात्कार अनजाने में हो जाते हैं. उन्हें इसका ज्ञान नहीं होता.  इस पर न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर की खंडपीठ ने इससे सहमत होने से इनकार कर दिया कि बलात्कार का अपराध अज्ञानता के कारण किया जा सकता है. हाई कोर्ट ने इस केस को लेकर कानून बनाने वालों पर भी तंज कसा. हाई कोर्ट ने अप्रत्यक्ष रूप से सांसदों से ही पूछ लिया कि और कानूनों में बदलाव के लिए उनको और कितने निर्भया जैसे केस चाहिएसांसदों की अंतरात्मा हिलाने को अभी और कितनी निर्भयाओं का बलिदान चाहिए:  जानिए MP HC ने क्यों कही ये बात - डूपॉलिटिक्स.हाई कोर्ट ने कहा- जघन्य अपराध, जमानत देने लायक नहीं

दरअसल, इंदौर हाईकोर्ट किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 102 के तहत 15 वर्षीय लड़के द्वारा दायर आपराधिक पुनरीक्षण पर सुनवाई कर रही थी. इसमें सत्र न्यायालय झाबुआ के आदेश को चुनौती दी गई थी. अपीलीय न्यायालय ने उनकी अपील को खारिज कर दिया था और प्रधान मजिस्ट्रेट, किशोर न्याय बोर्ड द्वारा 2015 के अधिनियम की धारा 12 के तहत पारित आदेश की पुष्टि की थी. इसमें भी उसे जमानत देने से इंकार कर दिया गया था. कोर्ट ने इस केस में अनुभव किया कि चूंकि किशोर न्याय अधिनियम 2015 की धारा 15 के तहत जघन्य अपराधों में एक बच्चे की उम्र अभी भी 16 साल से कम रखी गई है. इसलिए यह 16 साल से कम उम्र के अपराधियों को जघन्य अपराध करने की छूट देता है. मौजूदा मामले का जिक्र करते हुए कोर्ट ने कहा कि ये एक जघन्य अपराध है. याचिकाकर्ता पर एक किशोर के रूप में मुकदमा चलाया जाएगा.क्योंकि, उसकी उम्र 16 साल से कम है.High Court: परिसर से सटकर बन रही इमारत पर हाई कोर्ट ने जताई चिंता - high  court expresses concern over construction of premises | Navbharat Times

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इन धाराओं के तहत किया अपराध

आरोपी लड़के ने पर भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 342, 376 (2) (एन), 506 और 376 (ए) (बी) के तहत अपराध किया. साथ ही धारा 5 (एम) के तहत धारा 6 के तहत अपराध पंजीबद्ध किया गया. न्यायालय ने प्रासंगिक चिकित्सा दस्तावेजों को ध्यान में रखा और यौन अपराध से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 के तहत याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने के उपयुक्त मामला नहीं पाया, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने केवल 15 साल की उम्र में लगभग 10 साल 4 महीने की एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार का एक जघन्य अपराध किया. इससे नाबालिग को इतना अधिक रक्तस्राव हुआ कि उसे खून देने की भी आवश्यकता थी. उसके बयान के अनुसार याचिकाकर्ता ने करीब 3 दिन पहले भी यही हरकत की थी.
कानून बनाने वालों की अंतरात्मा को झकझोरने के लिए और कितनी निर्भयाओं को  बलिदान देना पड़ेगा?'': मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने रेप केस में 15 साल के ...
पूरे होश में किया अपराध- हाई कोर्ट

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के आचरण से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि उसने उपरोक्त अपराध पूरी चेतना के साथ किया है. यह नहीं कहा जा सकता कि यह अज्ञानता में किया गया था. अंत में कोर्ट ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता को फिर से उसके माता-पिता की देखभाल के लिए छोड़ दिया जाएगा, तो यह नहीं कहा जा सकता है कि उसके आस-पास की कम उम्र की लड़कियां सुरक्षित होंगी. खासकर जब वह किशोर न्याय संरक्षण अधिनियम का सहारा ले रहा हो  . कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि आदेश की प्रति विधि सचिव, कानूनी मामलों के विभाग, भारत सरकार, नई दिल्ली को भेजी जाए.

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