कोरोना के कारण ख़राब हुई आर्थिक स्थिति ने हरियाणा के करीब 6000 निजी स्कूलों की कमर तोड़ के रख दी है स्कूलों की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण बंद होने की कगार पर हैं। कोरोना के दौरान इनकी स्थिति इतनी बिगड़ी कि ये विभिन्न लोन की किश्त तक नहीं भर पाए, जिससे बैंकों ने उन्हें एनपीए कर दिया है। अब भविष्य के लिए भी लोन नहीं मिल पा रहा। सरकार निजी स्कूलों को नियम-134 के बकाया 1500 करोड़ रुपये का भुगतान करे, अन्यथा हाईकोर्ट जाने को विवश होंगे।
निसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुलभूषण शर्मा ने गुरुवार को पत्रकार वार्ता में ये बातें कहीं। उन्होंने कहा कि गरीब बच्चों को पढ़ाई के लिए हर महीने डीबीटी से 3500 रुपये दिए जाएं। निजी स्कूलों का विरोध 134ए को लेकर नहीं, पात्र विद्यार्थियों की चयन प्रक्रिया और भुगतान को लेकर रहा। 75 हजार विद्यार्थी 8वीं कक्षा तक 134ए के तहत पढ़ रहे हैं।
करीब 25 हजार बच्चे 9वीं से 12वीं तक 134ए के अंतर्गत अध्ययनरत हैं, उनका भुगतान करने के आदेश जारी किए जाएं। 12(1)(सी) के अनुसार राशि तय करने से पहले सरकार प्रति विद्यार्थी कितना खर्च हो रहा है, इसे घोषित करे। इसकी अधिसूचना जारी की जाए, अन्य विवाद खत्म नहीं होगा।
शर्मा ने कहा कि सरकार गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों को एक अप्रैल से बंद करने के पत्र जारी कर रही है, यह अनुचित है। इसका वार्ता के जरिये समाधान निकाला जाए। यूजीसी के कॉमन इंट्रेंस टेस्ट से कोचिंग को बढ़ावा मिलेगा। गरीब और अमीर अभिभावकों के बीच असमानता बढ़ेगी, सरकार को यह टेस्ट इस साल लागू नहीं करना चाहिए।
नियम-134ए खत्म करने पर विपक्ष मुखर, फैसला वापस लेने की मांग
हरियाणा सरकार के नियम-134ए को खत्म करने पर विपक्ष मुखर हो गया है। कांग्रेस और इनेलो नेताओं ने फैसला वापस लेने की मांग की है। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सुरजेवाला, प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा व इनेलो विधायक अभय चौटाला ने निर्णय को गरीब विरोधी बताकर सरकार की घेराबंदी की है। उन्होंने कहा कि ये नियम खत्म कर सरकार ने गरीब बच्चों के प्रदेश के सबसे अच्छे निजी स्कूलों में पढ़ने के सपने को तोड़ दिया है।
गरीब मेधावी छात्रों के लिए प्रदेश के विभिन्न मान्यता प्राप्त निजी विद्यालयों में दो लाख से ज्यादा सीटें उपलब्ध थीं, जिन पर वे पढ़ने के लिए पात्र थे। लेकिन सरकार ने इसकी निशुल्क शिक्षा सुनिश्चित करने के बजाय नियम ही खत्म कर दिया। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे सरकार का गरीब विरोधी चेहरा एक बार फिर उजागर हुआ है। बच्चों को घर के पास ही निजी स्कूल में दाखिला लेना होगा। पसंद के मुताबिक स्कूल नहीं चुन सकेंगे। किसी भी कक्षा में स्कूल बदलने का विकल्प नहीं मिलेगा। यह आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों और उनके बच्चों के साथ अन्याय है। सरकार बिना देरी के लिए अपना फैसला वापस ले।