मायावती के बेहद करीबी माने जाने वाले सतीश मिश्रा ने बड़ा दावा करते हुए कहा की 2022 में होने वाले चुनाव में बसपा बिना गठबंधन के सरकार बनाएगी, उनका दावा है कि उनकी पार्टी राज्य में स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाएगी. पार्टी सुप्रीमो मायावती के करीबी विश्वासपात्र माने जाने वाले मिश्रा ने पीटीआई को दिए एक साक्षात्कार में बताया कि बहुजन समाज पार्टी किसी अन्य पार्टी के साथ कोई गठबंधन नहीं करेगी. बकौल मिश्रा, “हम न तो किसी अन्य पार्टी के साथ गठबंधन करेंगे और न ही समर्थन लेंगे. हम विपक्ष में बैठना पसंद करेंगे
बसपा महासचिव ने कहा, “बसपा 2022 में पूर्ण बहुमत के साथ अपनी सरकार बनाएगी. चुनाव के बाद भी किसी भी अन्य परिस्थिति में हम कभी भी भाजपा के साथ नहीं जाएंगे और यह 200 प्रतिशत अंतिम फैसला है.” याद रखने की बात यह है कि बसपा ने देश के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी दोनों के साथ अलग-अलग मिलकर पहले भी सरकारें बनाई हैं.
क्या कहता है गठबंधन का इतिहास?
1993 में, बसपा ने सपा के साथ गठजोड़ किया था और उस दौरान मुलायम सिंह यादव ने सरकार का नेतृत्व किया था. 1995 में, सपा गठबंधन से बाहर हो गई थी और मायावती कुछ महीनों के लिए भाजपा के समर्थन से सीएम बनी थीं. वर्ष 1997 और 2002 में एक बार फिर बसपा ने भाजपा के साथ मिलकर गठबंधन सरकार बनाई थी.
क्या है बसपा का जातिगत गणित?
2007 में, दलित-ब्राह्मण कॉम्बिनेशन पर भरोसा करते हुए बसपा ने 403 सदस्यीय विधानसभा में 206 सीटें जीतकर अपने दम पर सरकार बनाई. बसपा एक बार फिर इस विजयी “दलित-ब्राह्मण” संयोजन को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रही है और अपनी इस कवायद के तहत वह राज्य भर में ‘ब्राह्मण सम्मेलनों’ की एक शृंखला आयोजित कर रही है. उत्तर प्रदेश में दलितों की आबादी राज्य की कुल आबादी की अनुमानित 20 प्रतिशत है, जबकि ब्राह्मणों की जनसंख्या 13 प्रतिशत है.
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बसपा के ब्राह्मण चेहरे मिश्रा ने साफ कहा, “बसपा ने ट्रेंड शुरू किया और सभी पार्टियां उसी तर्ज पर ब्राह्मणों को लुभाने का लक्ष्य बना रही हैं. लेकिन 80 फीसदी ब्राह्मण हमारे साथ हैं.” एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी के संदर्भ में उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में चुनाव के समय मुसलमानों को लुभाने के लिए दूसरे राज्यों से नेताओं के आने की पुरानी रवायत है. उन्होंने कहा कि ये नेता मुस्लिम समुदाय को “गुमराह” करने के अपने प्रयास में सफल नहीं होंगे.
ये रहे मिश्रा के खास दावे
* न केवल ब्राह्मण बल्कि अन्य सभी जातियों और धार्मिक समूहों के सदस्य जिन्हें मायावती सरकार का प्रत्यक्ष अनुभव है, वे इस बार पार्टी का समर्थन कर रहे हैं.
* पार्टी 2007 के चुनावों में अपने प्रदर्शन को भी पार कर जाने के लिए पूरी तरह तैयार है.
* मुसलमान पहले ही मायावती सरकार देख चुके हैं और उन्हें पता है कि वे उस वक्त कितने सुरक्षित थे.
* कुछ छोटे दल भाजपा द्वारा प्रायोजित हैं और वे अपनी जाति के वोट में कटौती करने के लिए चुनाव के समय अचानक सामने आते हैं, लेकिन इसका कोई असर नहीं होगा.
* जिन नेताओं को बहन जी ने सम्मानजनक पद दिए और उन्होंने बदले में धोखा दिया, उनके लिए घर वापसी की कोई संभावना नहीं है. अन्य दलों के नेता बहुजन समाज पार्टी में शामिल होना चाहते हैं, तो उनका स्वागत है.”
गौरतलब है कि बसपा ने जुलाई में विधानसभा में पार्टी के नेता लालजी वर्मा और वरिष्ठ नेता राम अचल राजभर को निष्कासित कर दिया था. इसी संदर्भ में मिश्रा ने साफ तौर पर कहा कि पार्टी को धोखा देने वाले नेताओं के लिए अब पार्टी में कोई जगह नहीं होगी.