कोरोना के चलते मजदूरों की रोजी-रोटी पर संकट है। कई मजदूरों ने मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र श्मशान घाट पर पैसे लेकर शवों को कंधा देने का काम भी शुरू कर दिया है। इन मजदूरों का मानना है कि परिवार कैसे चलेगा। इस लिए ऐसा काम करना पड़ रहा है, तो वहीं कुछ शराब के नशे के लिए भी ऐसा कर रहे हैं।
‘परिजनों को शव को कंधा देने की जरूरत पड़ती तो हम लोग जाते हैं’
मजदूरी करने वाले त्रिवेणी का कहना है कि पहले मजदूरी करते थे लेकिन कोरोना के चलते काम नहीं मिल रहा है। अब मुर्दा घाट तक पहुंचा रहे हैं। किसी को आवश्यकता होती है तो हम चार लोग जाते हैं। 1000 से 1500 रुपए घाट तक पहुंचाने का मिल जाता है। कोरोना से हम लोगों को डर नही लगता। मेहनत मजदूरी करते हैं। हम लोग यहीं मैदागिन स्टैंड पर ही रहते हैं। शराब पीकर मस्त रहते हैं। मणिकर्णिका श्मशान घाट पर शव को छोड़कर चले आते हैं।मजदूर बाबू काम नहीं होने की वजह से हरिश्चंद्र घाट के बाहर ही खड़ा रहता है। उसने बताया कि काम कहीं मिल नहीं रहा है। हम लोग शवों को कंधा देना शुरू कर दिए हैं। एक आदमी को 250 से 500 रुपए तक मिल जाता है। प्रत्यक्षदर्शी विशाल चौधरी ने बताया कि मजदूर लोग शवों को घाट तक पहुंचाते हैं। शवों के साथ आए लोग अक्सर यहां गाड़ी से आते हैं। कोरोना की वजह से परिवार के लोग कंधा नहीं देते हैं। तब यही मजदूर मदद करते हैं। 500 से 1000 रुपए तक भी कभी कभी मिल जाता है। मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र श्मशान पर रोज 100 से 150 शव आते हैं। कोरोना संक्रमितों का शव हरिश्चंद्र घाट पर ही जलता है।