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कोरोना कालः सदी की सबसे दर्दनाक दूरियां, असहाय मौतें और अधूरी अंतिम यात्राएं

अपने पिता की उंगली को छोड़कर खुद चलने लायक हुए इस 9 साल के बच्चे को अंदाज़ा भी नहीं था कि पिता की वो उंगली, जिसे पकड़कर उसे दुनिया के अभी बहुत सारे पहलू देखने और समझने थे, सदा के लिए छूट गई है. कोरोना काल का सबसे बुरा पहलू है एकांत की घुटन भरी मौत. एक आखिरी स्पर्श, एक आखिरी शब्द, एक आखिरी विदाई… कुछ भी नहीं करने देता कोरोना. मौत के इस नए नाम ने कैसे अधूरे कर दिए हैं अंतिम संस्कार, देखिए, आजतक की यह विशेष पेशकश. (चित्र में गुवाहाटी के एक कोरोना संक्रमित पिता का अंतिम संस्कार करता उनका 9 वर्ष का बेटा. एजेंसी-एपी. संपादन- पाणिनि आनंद)

 

मौत कई बहानों से आती है. लेकिन जाते हुए लोगों को प्रायः अपनों के हाथ थामें रहते हैं. परिवार, परिजनों का पूरा मनोविज्ञान ही यही है कि वो कष्ट में आसपास हों, दर्द बांटें, देखभाल करें. कोरोना ने लोगों के इस हज़ारों साल पुराने सिस्टम को ध्वस्त कर दिया है. एक ऐसी विवशता है जिसमें सामने बंद होती आंखों में आखिरी बार अपनों का अक्स तक नहीं नसीब हो पाता. (दिल्ली के एक अस्पताल के आईसीयू में कोरोना मरीज़ की मदद करते स्वास्थ्यकर्मी. एजेंसी-रायटर्स)

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