28 फरवरी यानी आगामी रविवार को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत के केंद्र मेरठ में बड़ी किसान महापंचायत कर पार्टी अपनी मजबूती का संकेत देना चाहती है। पार्टी इसके लिए जाट नेेताओं को साधने की कोशिश कर रही है। वर्ष 2012 में अपनी स्थापना के बाद से ही आम आदमी पार्टी उत्तर प्रदेश में अपना राजनीतिक भविष्य तलाश करने की कोशिश करती रही है। पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल और उस समय पार्टी के बड़ेचेहरे कुमार विश्वास तक ने चुनाव लड़कर अपनी किस्मत आजमाने की कोशिश भी की, लेकिन उन्हें जनता का साथ नहीं मिला। अब कृषि कानूनों के खिलाफ उपजे किसानों के गुस्से के सहारे पार्टी उत्तर प्रदेश में अपनी जमीन तलाशने की कोशिश कर रही है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रविवार को दिल्ली विधानसभा में किसान नेताओं के साथ मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद उन्होंने कहा कि नए कृषि कानून किसानों के लिए ‘डेथ वारंट’ हैं और अन्नदाताओं के हक में इन कानूनों को तत्काल वापस लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह लोकतांत्रिक देश है और यहां की कोई भी सरकार अपने लोगों की बात सुनने से इनकार नहीं कर सकती। सरकार को किसानों की बात सुनकर उनके हित में इन कानूनों को तत्काल वापस लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि मेरठ की महापंचायत में भी यही मांग दुहराई जाएगी।
किसान नेता भी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मिलकर बहुत खुश हुए। किसान नेताओं ने कहा कि अरविंद केजरीवाल ने आज उन्हें वो सम्मान दिया, जो आज तक किसी सरकार ने नहीं दिया। किसानों ने कहा कि एक तरफ केंद्र सरकार है, जो उनकी बात सुनने को तैयार नहीं है, तो दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल हैं ,जिन्होंने न सिर्फ किसानों के हक में लगातार आवाज उठाई, बल्कि आज विधानसभा के अंदर उन्हें बुलाकर उनका सम्मान किया। किसान नेताओं ने कहा कि यह मुलाकात भगवान कृष्ण के द्वारा सुदामा को अपने घर बुलाकर सम्मान देने जैसी थी।
आम आदमी पार्टी सांसद संजय सिंह ने कहा कि राजनीति पूरी तरह से अलग चीज है। हर मुद्दे को राजनीतिक दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए। लेकिन आज जब देश का किसान परेशान है और उसका भविष्य, उसकी आजीविका संकट में है, आम आदमी पार्टी चुप नहीं रह सकती। उन्होंने संसद में भी इसके खिलाफ आवाज उठाई थी। उन्होंने कहा कि महापंचायत के दौरान भी किसानों के हक की आवाज उठाई जाएगी। केंद्र सरकार को यह समझना पड़ेगा कि कोई भी कानून देश की जनता पर थोपा नहीं जा सकता।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत आसान नहीं है। किसानों, जाटों, मुसलमानों और दलित समुदाय की बहुसंख्यक आबादी वाले इस क्षेत्र पर पहले कांग्रेस की पकड़ हुआ करती थी, जो बदले समय में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के पास चली गई। 2013 में हुए सांप्रदायिक विवाद के कारण 2014, 2017 और 2019 के चुनावों में भाजपा को इस क्षेत्र में एक तरफा लाभ मिला। लेकिन अब किसान आंदोलन में यह ध्रुवीकरण बिखरता दिख रहा है। नए समीकरणों का लाभ लेने के लिए कांग्रेस, सपा, बसपा और आरएलडी जैसे मजबूत दावेदार हैं। ऐसे में आम आदमी पार्टी के लिए यहां की राह आसान रहने वाली नहीं है।