श्रीलंका पीपुल्स पार्टी (एसएलपीपी) के 74 वर्षीय नेता महिंदा राजपक्षे ने रविवार को चौथी बार देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली.
श्रीलंका की नौवीं संसद के लिए उत्तरी कोलंबो के उप-नगर केलानिया में मौजूद ऐतिहासिक बौद्ध मंदिर ‘राजमहा विहार’ में शपथ ग्रहण कार्यक्रम आयोजित किया गया.
महिंदा राजपक्षे के छोटे भाई और श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाभाया राजपक्षे ने उन्हें प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई. इसके बाद दोनों भाईयों ने साथ में राजमहा विहार में प्रार्थना की.
इस पूरे कार्यक्रम को श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटभाया राजपक्षे के आधिकारिक फ़ेसबुक पेज से लाइव प्रसारित किया गया. इस अवसर पर पूरा राजपक्षे परिवार राजमहा विहार में मौजूद था.
बीते दो दशक से राजपक्षे परिवार की श्रीलंका की राजनीति पर अच्छी पकड़ रही है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ‘अब श्रीलंका की सत्ता पर उनकी पकड़ और मज़बूत हो जाएगी.’
उनकी पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन ने श्रीलंका के आम चुनाव में दो-तिहाई बहुमत हासिल कर शानदार जीत दर्ज की है. श्रीलंका में 68 लाख मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया और मतदान प्रतिशत 59.9 रहा था.
माना जा रहा है कि ‘सत्ता पर राजपक्षे परिवार की पकड़ और मजबूत करने को लेकर संविधान संशोधन के लिये यह दो-तिहाई बहुमत महत्वपूर्ण साबित होगा.’
स्थानीय मीडिया के अनुसार, सोमवार को श्रीलंका में नए मंत्रिमंडल के सदस्यों का शपथग्रहण कार्यक्रम होगा जिसके बाद राज्य एवं उप-मंत्री शपथग्रहण करेंगे. नव निर्वाचित सरकार ने मंत्रिमंडल में मंत्रियों की संख्या 26 तक सीमित रखने का निर्णय लिया है.
हालांकि 19वें संविधान संशोधन के प्रावधानों के तहत इसे बढ़ाकर 30 किया जा सकता है.
चाहने वाले महिंदा राजपक्षे को ‘किंग’ भी कहते हैं
महिंदा राजपक्षे 2005 से 2015 के बीच क़रीब एक दशक तक देश के राष्ट्रपति रह चुके हैं.
महिंदा राजपक्षे और उनके भाई गोटाभाया राजपक्षे को एक समय में चीन का क़रीबी बताया जाता था. कहा ये भी जाता है कि उनके पश्चिमी देशों के साथ संबंध अच्छे नहीं हैं.
लेकिन राजनीतिक विश्लेशकों की राय है कि श्रीलंका की विदेश नीति में लगातार बदलाव देखने को मिल रहा है और श्रीलंका अब भारत के साथ संबंध बेहतर बनाने की कोशिश कर रहा है.
महिंदा राजपक्षे काफ़ी मिलनसार शख़्स बताये जाते हैं, उनकी भाषण शैली अन्य नेताओं से अलग है. वो बहुसंख्यक सिंहली जनता के बीच लंबे वक़्त से लोकप्रिय रहे हैं और उनके कई चाहने वाले उन्हें ‘किंग’ भी पुकारते हैं.
पुरानी बात नहीं है जब सरकारी टेलीविज़न पर एक गीत के ज़रिए लोगों को यह बताने की कोशिश की गई कि ‘किंग’ ने किस तरह से देश को तमिल विद्रोहियों से बचाया था.
एलटीटीई चरमपंथियों के ख़िलाफ़ जंग के दौरान कुछ लोग उनके लिए कविताएं और गीत लिखा करते थे जिनमें उन्हें ‘राजा’ कहकर संबोधित किया जाता था.
हालांकि, 2009 में ख़त्म हुए श्रीलंकाई गृह युद्ध के दौरान उनपर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगे जिन्होंने आज तक उनका पीछा नहीं छोड़ा. श्रीलंका में गृह युद्ध में हज़ारों आम लोग मारे गए थे.
राजपक्षे परिवार के उत्तराधिकारी और महिंदा राजपक्षे के बेटे नमल राजपक्षे को भी पाँच अगस्त को हुए आम चुनाव में हम्बनटोटा से जीत मिली है.
संवैधानिक बदलाव
राष्ट्रपति गोटाभाया राजपक्षे ने एसएलपीपी के टिकट पर नवंबर 2019 में हुआ राष्ट्रपति चुनाव जीता था. जब उन्होंने राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी, तब ही महिंदा राजपक्षे के चौथी बार देश का प्रधान
मंत्री बनने का मौक़ा मिलने की उम्मीद बढ़ गई थी.
संसदीय चुनाव में उन्हें 150 सीटों की ज़रूरत थी जो संवैधानिक बदलावों के लिये ज़रूरी है. इनमें संविधान का 19वाँ संशोधन भी शामिल है जिसने संसद की भूमिका मज़बूत करते हुए राष्ट्रपति की शक्तियों पर नियंत्रण लगा रखा है.
संविधान में संशोधन की संभावनाओं पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एसएलपीपी अध्यक्ष जी एल पेइरिस ने शुक्रवार को कहा कि ‘काफ़ी विचार-विमर्श के बाद इसे किया जाएगा.’
एस संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा, “स्पष्ट रूप से, कुछ संशोधन की ज़रूरत तो है, लेकिन जब देश के शासन की बात आती है तो इसे इस तरीक़े से नहीं किया जा सकता.”
श्रीलंका के संसदीय चुनाव में सबसे बड़ा झटका पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की यूनाटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) को लगा है जो सिर्फ़ एक सीट ही जीत सकी.
देश की सबसे पुरानी पार्टी 22 ज़िलों में एक भी सीट जीत पाने में नाकाम रही है.
चार बार प्रधानमंत्री रहे इसके नेता को 1977 के बाद पहली बार शिकस्त का सामना करना पड़ा है.