Bihar Politics: बिहार में राजनीतिक घुड़दौड़ शुरू हो गई है. हर दल और हर गठबंधन में दौरों का दौर चल रहा है. एनडीए में तो दौरों का साझा प्रयास दिख रहा है, लेकिन महागठबंधन में सब अकेले-अकेले दौरे कर रहे. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव कार्यकर्ताओं से मिलने के बहाने पूरा बिहार घूम आए. सीपीआई (एमएल) नेता बिहार बदलो अभियान के लिए जिलों में घूम रहे हैं. वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी की निषाद आरक्षण यात्रा लोकसभा चुनाव के पहले से ही अनवरत जारी है. कांग्रेस ने चुनाव के लिए उपयोगी दो बड़े आयोजन पखवाड़े भर के अंतराल पर पटना में कर लिए. इन कार्यक्रमों में शिरकत कर राहुल गांधी ने सुस्त पड़ी बिहार कांग्रेस को थोड़ी हिम्मत दी है. हालांकि राहुल ने दोनों मौकों पर जिस तरह की बात कही, उससे महागठबंधन को फायदे के बजाय नुकसान अधिक होने का खतरा है. राहुल ने महागठबंधन सरकार की ऐतिहासिक उपलब्धि जाति सर्वेक्षण को खारिज कर दिया है
हाल के महीनों में एनडीए नेताओं के कम से पांच दौरे हुए हैं. सबसे पहले केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने हिन्दू स्वाभिमान यात्रा निकाली. हालांकि कि जेडीयू की आपत्ति पर भाजपा ने उनकी यात्रा से पल्ला झाड़ लिया था. प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने उसे उनकी निजी यात्रा बता दी. उसके बाद जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव मनीष वर्मा पुराने कार्यकर्ताओं को जोड़ने निकले. हालांकि बीच में ही उनकी यात्रा विवादों में फंस गई. फिर एनडीए में शामिल पार्टियों के प्रमुख साझा यात्रा पर जिलों में गए. अब सभी 38 जिलों में एनडीए के मंत्रियों ने दौरा शुरू किया है. नीतीश कुमार की बतौर सीएम प्रगति यात्रा चल ही रही है. अब तो पीएम नरेंद्र मोदी भी 24 फरवरी को बिहार आ रहे हैं.
महागठबंधन के भी दौरे
महागठबंधन की बात करें तो वहां भी यात्राओं का दौर चल रहा है. पर, एनडीए जैसा साझा प्रयास वहां नहीं दिखता. हालांकि अलग-अलग उनके प्रयासों का मकसद एक ही है- एनडीए से सत्ता छीनना. तेजस्वी लगातार यात्रा पर रहे हैं. सीपीआई (एमएल) का बदलो बिहार कार्यक्रम चल रहा है. मार्च में पटना में बड़े आयोजन के साथ इसकी पूर्णाहुति होनी है. मुकेश सहनी निषाद आरक्षण यात्रा पर हैं. कांग्रेस से राहुल ने पखवाड़े भर में दो दौरे किए. कांग्रेस को छोड़ कर बाकी सभी की यात्राओं में महागठबंधन सरकार के 17 महीने के कार्यकाल की उपलब्धियां सबने बताई. सरकारी नौकरी से जाति सर्वेक्षण तक को महागठबंधन सरकार की बड़ी उपलब्धि के रूप में सबने रेखांकित किया. सिर्फ कांग्रेस नेता राहुल गांधी ही ऐसे रहे, जिन्होंने अपनी ही सरकार के कार्यकाल की जाति सर्वेक्षण की रिपोर्ट को फर्जी बता कर बड़ी उपलब्धि पर पानी फेर दिया.