बिहार… यानी उत्तर भारत का एक सबसे मुखर राज्य. बीते दिनों जाति जनगणना की रिपोर्ट सामने आने के बाद यह राष्ट्रीय स्तर पर एक बार फिर चर्चा में है. राज्य सरकार ने पिछले दिनों सभी जातियों की आबादी की रिपोर्ट सार्वजनिक की थी. अब उसने आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट भी सार्वजनिक कर दी है. इस रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. बिहार की सामाजिक स्थिति को करीब से जानने वालों को पता होगा कि इस रिपोर्ट के आने से पहले तक सभी लोग यही मानते थे कि यहां अगड़े समाज की भूमिहार जाति के लोग सबसे प्रभावशाली हैं. उनके पास अच्छी मात्रा में जमीन है. लेकिन, यह पूरा सच नहीं है. खैर, हम आज भूमिहार समाज की बात नहीं कर रहे हैं. बीते करीब तीन दशक में बिहार में एक और जाति का उभार हुआ है. दरअसल, 1990 के दशक में मंडल राजनीति ने इस जाति को राजनीतिक ताकत दी. संख्या बल में यह जाति सबसे आगे हैं. बिहार की जनगणना रिपोर्ट के मुताबिक राज्य की कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी 14.26 फीसदी है. संख्या बल में यह राज्य की सबसे मजबूत जाति है. लेकिन, आर्थिक सर्वेक्षण में इनकी स्थिति बेहद नाजुक बताई गई है.
दरअसल, हम बात कर रहे हैं राज्य में राजनीतिक रूप से सबसे प्रभावी जाति यादव समाज की. आर्थिक सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक यादव समुदाय की स्थिति बेहद नाजुक है. 35.87 फीसदी यादव परिवार गरीब हैं. सबसे बुरा हाल सरकारी नौकरियों को लेकर है. इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद यादव समुदाय के पास केवल 1.55 फीसदी सरकारी नौकरी है. इनकी तुलना में ओबीसी की कई अन्य जातियां संख्या बल में इनसे बहुत कम होने के बावजूद सरकारी नौकरियों में ठीक-ठाक संख्या में हैं.
बिहार में यादव समाज के बाद ओबीसी की दो अन्य प्रमुख जातियां हैं कुर्मी और कोइरी. सांस्कृतिक और परंपरागत रूप ये दोनों जातियां काफी करीब हैं. दोनों खेतिहर जातियां हैं. राज्य में कुर्मी की आबादी केवल 2.87 फीसदी है. वहीं कोइरी-कुशवाहा की आबादी 4.2 फीसदी है. ये दोनों जातियां पढ़ाई-लिखाई और जमीन पर मालिकाना हक के मामले में भी ठीक-ठीक हैसियत रखती हैं. इनके पास क्रमशः 3.11 और 2.04 फीसदी सरकारी नौकरियां हैं.
सामान्य वर्ग में कायस्थ सबसे आगे
सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी की बात की जाए तो सामान्य वर्ग में कायस्थ समाज सबसे आगे है. सामान्य वर्ग में ब्राह्मण, भूमिहार, कायस्थ और राजपूत जाति के लोग आते हैं. कायस्त समाज का आबादी केवल 0.6 फीसदी है लेकिन सरकारी नौकरी में उनकी हिस्सेदारी 6.68 फीसदी है. यानी आबादी से हिसाब से करीब 10 गुना अधिक. इसके बाद भूमिहार समाज आता है. उनकी आबादी 2.86 फीसदी है, लेकिन सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी 4.99 फीसदी है. फिर आते हैं ब्राह्मण. इनकी आबादी 3.65 फीसदी और सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी 3.6 फीसदी है. चौथे स्थान पर राजपूत हैं. इनकी आबादी 3.45 फीसदी और सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी 3.81 फीसदी है
बीसी समाज में कर्मी अगड़े
बिहार में पिछड़ा वर्ग यानी बीसी समाज राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से काफी प्रभावी है. इसमें चार प्रमुख जातियां हैं- कुर्मी, कोइरी, यादव और बनिया. 1990 के दशक के बाद इनका प्रभाव काफी बढ़ा है. मंडल आंदोलन और ओबीसी आरक्षण का इस समुदाय ने सबसे अधिक फायदा उठाया है. हालांकि नॉन क्रीमी लेयर आरक्षण के प्रावधान के कारण इनमें आर्थिक रूप से समृद्ध लोग आरक्षण के फायदे से वंचित हो रहे हैं. राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राज्य के फर्स्ट फैमिली के रूप में चर्चित पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव का परिवार इसी वर्ग है. तीन दशक से अधिक समय से राज्य पर इन्हीं दोनों पर शासन है. नीतीश ने खुद को कुर्मी-कोइरी समाज के नेता के रूप में स्थापित किया है. वहीं लालू यादव राज्य ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर यादव समाज के प्रभावी नेता हैं. राज्य में ये दोनों प्रभावी जाति वर्ग हैं. लेकिन, कुर्मी-कोइरी की स्थिति यादव समाज की तुलना में काफी बेहतर दिखती है.