मेरठ. विभिन्न पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व पर जब हम बात करते हैं तो विभिन्न क्षेत्रों में गंगा को अनेकों नाम से पुकारा जाता है. कुछ इसी तरह का उल्लेख मेरठ के हस्तिनापुर में भी देखने को मिलता है, जहां महाभारत काल में बूढ़ी गंगा धार्मिक दृष्टि से काफी महत्व रखती थी. विभिन्न पूजा अर्चना करने से पहले बूढ़ी गंगा में ही स्नान किया जाता था. महाभारत कालीन इतिहास की बात करते हैं तो हस्तिनापुर में जो कर्ण मंदिर बना हुआ है. उसके पास ही कर्ण घाट भी था. जिसमें स्नान करने के पश्चात कुलदेवी की पूजा आराधना करते हुए अपनी प्रजा में सवा मन प्रतिदिन दान किया करते थे.
इसी तरह का उल्लेख पांचो पांडव मंदिर के समीप भी मिलता है. उसके पास से ही बूढ़ी गंगा की अभिरल धारा बहा करती थी. जो द्रोपदी घाट तक पहुंचती थी. आज कर्ण घाट पर भले ही आपको घाट ना देखने को मिले. लेकिन द्रौपदी मंदिर में आज भी वह घाट बना हुआ है, जिसके पास से बूढ़ी गंगा होकर अब भी गुजरती है. जहां सबसे ज्यादा निर्मल जलधारा देखने को मिल रही है
संयुक्त राष्ट्र संघ का भी मिला साथ
हस्तिनापुर के विभिन्न पहलुओं पर रिसर्च करने वाले और बूढ़ी गंगा के जीर्णोद्धार कार्य में लगे हुए शोभित विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रो. प्रियंक भारती बताते हैं कि उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के निर्देश अनुसार काफी हद तक प्रशासन द्वारा बूढ़ी गंगा के जीणो धार को लेकर कार्य किए गए हैं. अब इसमें संयुक्त राष्ट्र संघ की नेचुरल एवं हेरिटेज संस्था का भी साथ मिला है.
द्रोपदी बूढ़ी गंगा की निर्मल धारा
संभावनाएं जताई जा रही है कि जो हस्तिनापुर का अस्तित्व बूढ़ी गंगा के माध्यम से हुआ करता था. वह जल्द ही देखने को मिलेगा. वह बताते हैं कि विभिन्न ऐतिहासिक पौराणिककिताबों में इसका उल्लेख मिलता है कि पांचो पांडव, राजा कर्ण, द्रोपदी बूढ़ी गंगा की निर्मल धारा में स्नान करने की पश्चात पूजा अर्चना किया करते थे. बताते चलें कि हस्तिनापुर की में जो बैराज से निर्मल होकर एक गंगा बह रही है. इस गंगा में यह बूढ़ी गंगा भी जाकर मिलती थी. लेकिन अब इस गंगा का स्वरूप उसे हिसाब से देखने को नहीं मिलता. जो पहले मुजफ्फरनगर से लेकर हस्तिनापुर के विभिन्न क्षेत्रों में देखने को मिलता था.