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शिवसेना के चुनाव चिन्ह और भवन का कौन है असली मालिक? जानें कैसे

मुंबई. महाराष्ट्र में अब एक बार फिर सियासी पारा चढ़ चुका है. चुनाव आयोग द्वारा शिंदे गुट को शिवसेना का चुनाव चिन्ह और नाम मिलने के बाद से महाराष्ट्र की राजनीति में बयानबाजी और आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है. इस बीच अब खबर आ रही है कि शिंदे गुट शिवसेना भवन पर भी अपना दावा कर सकता है. हालांकि ये सबके मन में सवाल है कि शिंदे गुट को नाम और निशान मिलने के बाद शिवसेना भवन पर किसका अधिकार होगा.

शिंदे गुट को मिल सकता है शिवसेना भवन
बता दें कि शिवसेना भवन आधिकारिक तौर पर शिवसेना का दफ्तर है और सभी बैठकें यहीं होती हैं. यह ठाकरे फैमिली की निजी प्रॉपर्टी नहीं है. बल्कि दफ्तर के नाम पर रजिस्टर्ड है. इस स्थित में एकनाथ शिंदे गुट के शिवसेना भवन मिल सकता है. उद्धव ठाकरे अपने सभी विधायकों व सांसदों के साथ आज  दोपहर 1 बजे मातोश्री पर बैठक करेंगे. इस बैठक में आगे की रणनीति पर चर्चा होगी. निर्वाचन आयोग ने शुक्रवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले समूह को ‘शिवसेना’ नाम और उसका चुनाव चिह्न ‘तीर-कमान’ आवंटित किया. इसे उद्धव ठाकरे के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है.

सीएम शिंदे को 55 में से 40 विधायकों का था समर्थन
तीन सदस्यीय आयोग ने शिंदे द्वारा दायर छह महीने पुरानी याचिका पर सर्वसम्मत आदेश में कहा कि वह विधायक दल में पार्टी की संख्या बल पर निर्भर था, जहां मुख्यमंत्री को 55 में से 40 विधायकों और 18 में से 13 लोकसभा सदस्यों का समर्थन हासिल था. आदेश में, तीन सदस्यीय आयोग ने ठाकरे गुट को शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नाम और ‘मशाल’ चुनाव चिह्न को बनाए रखने की अनुमति दी, जो उसे राज्य में विधानसभा उपचुनावों के समाप्त होने तक एक अंतरिम आदेश में दिया गया था.

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सीएम शिंदे ने चुनाव आयोग के फैसले को लोगों की जीत बताई
इस बीच महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने निर्वाचन आयोग द्वारा उनके धड़े को वास्तविक शिवसेना के रूप में मान्यता दिए जाने के फैसले को सचाई एवं लोगों की जीत बताया. उन्होंने आयोग के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए संवाददाताओं से कहा, ‘मैं निर्वाचन आयोग को धन्यवाद देता हूं. लोकतंत्र में बहुमत का महत्व होता है. यह सच्चाई और लोगों की जीत है और साथ ही यह बालासाहेब ठाकरे का आशीर्वाद भी है. हमारी शिवसेना वास्तविक है.’ यह पहली बार है जब ठाकरे परिवार ने 1966 में बालासाहेब ठाकरे द्वारा स्थापित पार्टी का नियंत्रण खो दिया है.

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