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पितरों के पिंडदान के लिए गया में 14 वें दिन मनाई जाती है ‘पितरों की दीपावली’, जानिए क्या है मान्यता

गया. इस साल श्राद्धपक्ष 10 सितंबर को शुरू हुआ था, जिसका समापन 25 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या के साथ होगा. पितृपक्ष में पितरों का पिंडदान करने तथा मोक्ष दिलाने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु गया जी पहुंच रहे हैं. गया में चल रहे पितृपक्ष मेला अब समाप्त होने को है. मेले में अब सिर्फ एक दिवसीय तथा 17 दिवसीय पिंडदान करने वाले श्रद्धालुओं को देखा जा सकता है. आज पितृपक्ष का 14वां दिन है. ऐसा माना जाता है कि आज के दिन फल्गु नदी के जल और दूध से तर्पण किया जाता है, जिससे पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. सुबह नित्यकर्म कर फल्गु नदी में स्नान कर नदी में दूध से तर्पण करना चाहिए. तर्पण के बाद विष्णुपद मंदिर स्थित गदाधर भगवान को पंचामृत से स्नान करवाना चाहिए. उसके विष्णुपद की पूजा कर संध्या बेला में दीप दान करना चाहिए.

14वें दिन शाम को विष्णुपद फल्गु नदी के किनारे पितृ दीपावली मनाए जाने की परंपरा है. इस दौरान पितरों के लिए दीप जलाकर आतिशबाजी की जाती है. दीपदान के अवसर पर विष्णुपद तथा देवघाट को दीयों से सजाया जा रहा है. ऐसा माना जाता है कि आज के दिन दीपदान करने से पितरों के स्वर्ग जाने का मार्ग प्रकाशमय हो जाता है.Pitra Deepawali celebration in gaya | बिहार: गया में श्रद्धालुओं ने मनाई  पित्र दीपावली, पितरों के लिए जलाए गए दीप | Hindi News, बिहार एवं झारखंड

ऐसा कहा जाता है कि वर्षा ऋतु के अंत में आश्विन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को यमराज अपने लोक को खाली कर कर सभी को मनुष्य लोक में भेज देते हैं. मनुष्य लोक में आए प्रेत एवं पितर भूख से दुखी अपने पापों का कीर्तन करते हुए अपने पुत्र एवं पौत्र से मधु युक्त खीर खाने की कामना करते हैं. अतः उनके निमित ब्राह्मणों को खीर खिलाकर तृप्त करना चाहिए.यहां युधिष्ठिर ने महाभारत के युद्ध में मारे गए अपने स्वजनों का किया था  कर्म, श्रद्धालु अपने अनजाने पूर्वजों का भी श्राद्ध करते हैं | Donated Pind  ...

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भगवान विष्णु की नगरी है गया
गया को भगवान विष्णु की नगरी और मोक्ष की भूमि कहा जाता है. गरुड़ पुराण के अनुसार, गया में श्राद्ध पितरों को सीधे स्वर्ग के दरवाजे पर ले जाता है. यहां पितरों का श्राद्ध और दान धर्म के कार्य करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.ऐसा कहते हैं कि यहां भगवान विष्णु स्वयं पितृ देव के रूप में विराजमान रहते हैं, इसलिए इसे पितरों का तीर्थ भी कहा जाता है.

 

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