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पद्मश्री सम्मान से सम्मानित भिखारी ठाकुर के साथी और ‘लौंडा नाच’ को वर्तमान समय तक जीवित रखने वाले रामचंद्र मांझी का निधन

छपरा. ‘भोजपुरी का शेक्सपियर’ कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर के साथी और ‘लौंडा नाच’ को वर्तमान समय तक जीवित रखने वाले आखिरी लोक कलाकार रामचंद्र मांझी का बीमारी के बाद निधन हो गया. भिखारी ठाकुर के नाटक मंडली के सदस्य रहे रामचंद्र मांझी के निधन से सारण जिला समेत पूरे बिहार में शोक की लहर दौड़ गई है. सांसद राजीव प्रताप रूडी और सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल और कला संस्कृति मंत्री जितेंद्र राय समेत तमाम हस्तियों ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है.

गौरतलब है कि रामचंद्र मांझी भिखारी ठाकुर के मण्डली के आखिरी व्यक्ति बचे थे. उन्होंने बुधवार की रात पटना के  IGIMS में आखिरी सांस ली. बताया जा रहा है कि पिछले कई दिनों से वे जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे थे. रामचंद्र मांझी को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया था. यह सम्मान सिर्फ 84 वर्षीय रामचन्द्र मांझी जी का ही नहीं था, बल्कि पूरे सारण  जिला और  पूरे भोजपुरिया समाज था. इससे सबने खुद को गौरवान्वित महसूस किया था.पद्मश्री रामचंद्र मांझी का निधन, लौंडा नाच के लिए थे मशहूर - Live Cities

सारण के तुझारपुर गांव में जन्मे रामचंद्र माझी ने लगभग 10 वर्ष के उम्र से ही अदाकारी शुरू कर दी थी. शीघ्र ही ये प्रसिद्ध लोक कलाकार भिखारी ठाकुर के सम्पर्क में आ गए. भिखारी ठाकुर के देहांत के बाद भी उनकी परम्परा को जीवित रखने का श्रेय रामचंद्र मांझी जी को जाता है. 2017 में इन्हें संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है. ये उम्र के आखिरी पड़ाव पर भी ‘बिदेशिया’ और ‘बेटी-बेचवा’ के प्रसंग से दर्शकों को भावविभोर कर देते थे.

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Disciple Of Bhikhari Thakur 95 Year Old Ramchandra Manjhi One Of Recipient  Of Padm Shree, Know About His Special Dance Which Made Him Popular For  Decades Ann | भिखारी ठाकुर की विदेशियाबता दें कि ‘लौंडा नाच’ भोजपुरिया समाज में बहुत प्रसिद्ध रहा है. रामचंद्र मांझी को जब पद्म श्री सम्मान मिला तो इसे पूरे बिहारवासियों और भोजपुर क्षेत्र के रहने वालों का सम्मान माना गया. माना जाता है कि इस सम्मान को दिलाने में  ‘लौंडा नाच’ पर काम करने वाले अध्येता व व्याख्याता जैनेंद्र दोस्त का बड़ा योगदान रहा है. उन्होंने दस्तावेजीकरण के साथ सार्थक पहल की; तब कहीं जाकर अपने बुजुर्ग अभिभावक को यह सम्मान मिला.

 

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