WHO के उस तरीके पर सवाल उठाए हैं जिसके जरिए देश में कोविड 19 की वजह से होने वाली मौतों का अनुमान लगाया जाता है. भारत की ओर से कहा गया है कि डब्लूएचओ द्वारा अपनाए गए गणित मॉडल को इतने विशाल देश और उसकी आबादी के लिए लागू नहीं किया जा सकता. 16 अप्रैल को न्यूयार्क टाइम्स में प्रकाशित लेख पर आपत्ति जताते हुए देश के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने डब्लूएचओ की प्रक्रिया प्रक्रिया पर चिंता जताई है.
इस मुद्दे पर भारत की विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) से लगातार गंभीर बातचीत होती आ रही है. मंत्रालय का कहना है संगठन जो विश्लेषण टियर-1 (Tier-1) देशों के संबंध में करता है, वही प्रक्रिया प्रक्रिया, टियर-2 (Tier-2) देशों के लिए भी अपनाई जाती है, जिसमें भारत जैसा विशाल देश भी शामिल है.
बयान में कहा गया है, ‘भारत की आपत्ति नतीजों से नहीं है बल्कि उसके लिए अपनाई गई कार्य-पद्धति से है. टियर-1 देशों के डाटा और भारत के 18 राज्यों के असत्यापित डाटा के इस्तेमाल से मृत्यु के आंकड़े के जो दो अनुमान निकाले गए हैं, वह बेहद भिन्न हैं और जरूरत से ज्यादा है. अनुमान में इतने फर्क की वजह से ही कार्य-पद्धति पर चिंता जताई जा रही है’.
भारत सरकार की आशंका
मंत्रालय के अनुसार भारत ने अन्य देशों के साथ मिलकर कई बार इस कार्य पद्धति को लेकर औपचारिक संपर्क किया है जिसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन को लिखी छह चिट्ठियां शामिल हैं. ये चिट्टियां 17 नवंबर 2021, 20 दिसंबर 2021, 28 दिसंबर 2021, 11 जनवरी 2022, 12 फरवरी 2022 और 2 मार्च 2022 को लिखी गई थीं. वहीं 16 दिसंबर 2021, 28 दिंसबंर 2021, 6 जनवरी 2022 और 25 फरवरी 2022 वर्जुअल बैठक हुई थी. एसईएआरओ की क्षेत्रीय वेबिनार 10 फरवरी 2022 को हुआ था. इस दौरान भारत ने चीन, ईरान, बांग्लादेश, सीरिया, इथियोपिया और मिस्र के साथ मिलकर अपने सवाल सामने रखे थे.
भारत सरकार ने रखा अपना पक्ष
बयान में कहा गया कि सवाल किए गए थे कि किस तरह ये सांख्यिकी मॉडल भारत जैसे विशाल देश का अनुमान लगाता है और किस तरह यही तरीका कम आबादी वाले देश के लिए भी फिट बैठ सकता है. जरूरी नहीं कि ट्यूनीशिया जैसे देश के लिए जो मॉडल फिट बैठे, वो सौ करोड़ से ज्यादा आबादी वाले भारत देश के लिए भी सही ही हो. मंत्रालय ने कहा कि अगर मॉडल सही और भरोसेमंद है तो क्यों न इसे सभी टिअर-1 देशों पर भी अपनाया जाए और उसके नतीजों को बाकी सदस्य देशों के साथ साझा किया जाए.
इस मॉडल में मासिक तापमान और मासिक औसत मौतों के बीच विपरीत संबंध दिखाया गया है जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. भारत के हर राज्य में मौसम का अपना एक अलग पैटर्न होता है. सरकार की ओर से कहा गया कि यही वजह है कि इन 18 राज्यों के असत्यापित डाटा को आधार बनार राष्ट्रीय स्तर के मृत्यु दर का अनुमान लगाना सांख्यिकी रूप से गलत हो सकता है.
भारत में उम्र और लिंग के आधार पर मृत्यु दर देखने के लिए इस संगठन ने सत्यापित डाटा वाले 61 देशों के उम्र और लिंग के तय मानकों को आधार बनाया. और फिर उसे भारत समेत अन्य देशों पर भी लागू कर दिया, जिससे भारत को आपत्ति है. वहीं आय को लेकर भी जो मानक तय किए गए हैं, वो भी भारत सरकार की नजर में एक ही लाठी से बैल हांकने जैसा है.
डब्लूएचओ ने क्या कहा
वहीं डब्लूएचओ का कहना है कि इन बिंदुओं को आधार बनाकर 90 देशों के सैंपल में जनवरी 2020 से जून 2021 तक के बीच का मृत्यु दर काफी हद तक सटीक आया है. हालांकि बताया गया है कि ये किस तरह सटीक है. इसके पीछे का जवाब संगठन द्वारा फिलहाल नहीं दिया गया है.
भारत का मामला अलग क्यों है?
बयान में कहा गया है कि भारत में कोविड पॉजिटिव दर कभी भी एक जैसी नहीं रही. लेकिन दर में इस तरह के बदलाव को मॉडल में किसी तरह की जगह नहीं दी गई है. यही नहीं, भारत ने कोविड टेस्ट को तभी तेज़ कर दिया था जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सलाह भी नहीं दी थी. इसी तरह स्कूल और दफ्तर बंद करने से लेकर सार्वजनिक कार्यक्रम बंद करने जैसे कदमों के असर को भारत जैसे देश में मापना मुश्किल है जहां नियमों को लेकर सख़्ती हर राज्य में अलग-अलग थी.
मंत्रालय की ओर से ये भी कहा गया है कि भारत, डब्लूएचओ के साथ मिलकर काम करने के लिए बिल्कुल तैयार है क्योंकि इस तरह के आंकड़े नीतिगत स्तर पर बेहद मददगार साबित होते हैं. लेकिन भारत चाहता है कि इस प्रक्रिया को लेकर हर तरह की पारदर्शिता और इसके सही होने के सबूत की आवश्यकता है ताकि नीति निर्माता बिना झिझक इसका इस्तेमाल कर सकें. साथ ही ये भी कहा गया कि न्यूयॉर्क टाइम्स ने भारत के संदर्भ में कोविड से होने वाली मौतों के कथित आंकड़े तो जुगाड़ लिए लेकिन अन्य देशों के बारे में अभी तक कुछ नहीं जान पाया.