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तेज गर्मी और जलवायु परिवर्तन के कारण इन साल पड़ सकता सूखा

चिलचिलाती गर्मी जलवायु परिवर्तन के वजह से इस बार सूखा का अनुमान है जलवायु परिवर्तन के लगातार प्रतिकूल प्रभाव पड़ने के कारण दुनिया गर्म हो रही है, इससे बार-बार बाढ़ और सूखे की स्थिति उत्पन्न हो रही है। वैज्ञानिकों ने चेताया है कि अब दुनिया में अचानक आने वाली बाढ़ की तरह सूखे भी अचानक दस्तक देंगे और ये महज पांच दिनों में 33 से 46 फीसदी तक तबाही मचा सकते हैं।

वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस तरह के सूखे केवल थोड़ी सी ही गर्मी बढ़ने से पैदा हो जाते हैं। पिछले दो दशकों में इसकी रफ्तार में वृद्धि हुई है। साल 2012-13 में उत्तरी अमेरिका, मध्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, चीन और अफ्रीका जैसे देशों में यह देखा गया है। ‘नेचर कम्यूनिकेशन्स’ जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार अब तक ऐसे सूखे दक्षिण पूर्व एशिया, पूर्वी एशिया, अमेजन बेसिन, पूर्वी उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी दक्षिण अमेरिका में मुख्यतया देखे जाते हैं।

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शोधकर्ताओं का कहना है कि और ज्यादा निगरानी और अवलोकन इनका पूर्वानुमान लगाने में मददगार होगा। यह दुनिया भर में बदलते जलवायु के स्वरूप के लिहाज से भी बहुत जरूरी है। हांगकांग पॉलिटेक्निक यूनिवर्सिटी में किए गए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बताया कि इस विषय पर बहुत कम अध्ययन हुए हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, अचानक आने वाले सूखे के बारे में वैश्विक तस्वीर स्पष्ट होना बहुत जरूरी है। ताकि जिससे इसके विकास और स्वरूपों की जानकारी मिल सके और पता चल सके कि ये वैश्विक स्तर पर कैसे विकसित हो रहे हैं। इसके लिए शोधकर्ताओं ने 21 साल के हाइड्रोक्लाइमेट आंकड़ों का अध्ययन किया।

बढ़ती जा रही है रफ्तार
शोधकर्ताओं ने साल 2000 से 2020 तक दुनिया भर में मिट्टी में नमी की जानकारी एकत्रित कर हाइड्रोक्लाइमेट के आंकड़े जुटाए। आंकड़ों के मुताबिक, अचानक आने वाले सूखे संख्या में तो नहीं बढ़ रहे हैं, लेकिन इनकी गति समय के सात साथ और भी तेज होती जा रही है। पिछले 20 वर्षों में 33 से 46 प्रतिशत तक के इस तरह के सूखे पांच दिनों में आने लगे हैं।
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क्या होती है दर
सामान्यत: 30 प्रतिशत से ज्यादा सूखे केवल 5 दिन में पनप जाते हैं। वहीं दूसरी तरफ सामान्य सूखा पनपने में पांच से छह महीने का समय लेता है, जो जलवायु के विभिन्न कारकों के संयुक्त प्रभाव के कारण पनपता है। वहीं वायुमंडल में नमी की कमी, उच्च तापमान, कम बारिश और उच्च वाष्प दबाव की कमी की कारण जमीन से नमी कम होने लगती है।

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