नई दिल्ली। यूक्रेन पर रूस के हमले की चार दिन हो चुके हैं। यूक्रेन पर अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहा है। रूसी सेना यूक्रेन की राजधानी कीएव तक पहुंच चुकी है। हालांकि, अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस युद्ध के बाद इस जंग की तस्वीर क्या होगी? रूस के लिए सबसे बड़ा इनाम कीएव यानी युक्रेन की राजधानी है। यह एक ऐसा शहर है जहां अभी लड़ाई जारी है। नाटो व अमेरिका की सबसे बड़ी चिंता क्या है। नाटो को किस बात का भय सता रहा है।
1- यूक्रेन के पूर्वी हिस्से में आठ साल तक रूस समर्थित अलगाववादियों से लड़ने के बाद अब यूक्रेन को परमाणु संपन्न पड़ोसी देश की गोलीबारी, बमबारी और राकेट हमलों को झेलना पड़ रहा है। प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि यूक्रेन एक ऐसा देश है जिसने 1991 में रूस से आजादी के लिए बड़े पैमाने पर मतदान किया था। उसने अपने परमाणु हथियारों का भी त्याग तक कर दिया था। अब अगर रूस इस देश को पूरी तरह से अपने अधीन कर लेता है तो फिर से यूक्रेन तीन दशक पहले वाली स्थिति में चला जाएगा
2- नेटो के रक्षा प्रमुखों ने जुलाई 2021 में दिए पुतिन के भाषण के अर्थ को फिर से समझने की कोशिश की है। उनका मानना है कि नाटो को अपने सदस्य देशों की पूर्वी सीमाओं को तुरंत मजबूत करने की जरूरत है। ऐसा न हो कि पुतिन पोलैंड, लिथुआनिया, लात्विया और एस्टोनिया जैसे देशों को अपना अगला निशाना बनाने की कोशिश में जुट जाएं।
3- प्रो. हर्ष वी पंत का कहना है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पश्चिम की तरफ झुकाव रखने वाले अपने पड़ोसी देशों पर कब्जे को लेकर अपने डिफेंस चीफ की योजना का महीनों निगरानी के बाद जंग का ऐलान किया है। इस योजना के अनुसार यूक्रेन पर आक्रमण उत्तर, पूर्व और दक्षिण तीन तरफ से किया जाता है। आर्टिलरी और मिसाइल हमले के जरिए प्रतिरोध को कम किया जाता है, जिसके बाद पैदल सेना और टैंक रणभूमि में उतारे जाते हैं।
4- राष्ट्रपति पुतिन की चाहत होगी कि जल्द से जल्द यूक्रेन की जेलेंस्की सरकार को आत्मसमर्पण करें और उसकी जगह रूस की तरफ झुकाव रखने वाली एक सरकार को सत्ता सौंपी जाए। इसका मकसद देश में राष्ट्रीय प्रतिरोध के लंबे अभियान को गति देने से रोकना भी है। प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि कीएव पर सफलतापूर्वक कब्जा रूस के लिए सैन्य और राजनीतिक सफलता साबित होगा, जिसका रणनीतिक प्रभाव भी पड़ेगा।
इस जंग में नाटो की भूमिका
इस जंग में नाटो जानबूझकर यूक्रेन की भूमि में नहीं है। हालांकि, यूक्रेन की तरफ से लगातार मदद की अपील की गई, लेकिन नाटो ने यूक्रेन में सेना भेजने से साफ तौर पर इन्कार कर दिया है। नाटो का तर्क यह है कि चूंकि यूक्रेन नाटो का सदस्य देश नहीं है, इसलिए नाटो की सेना उसकी सैन्य मदद नहीं कर सकती। नाटो रूस के साथ जंग नहीं छेड़ना चाहता है। अगर रूस इस हमले के बाद यूक्रेन पर लंबे समय तक कब्जा रखता है तो पश्चिमी देश यूक्रेन में विद्रोहियों का समर्थन कर सकते हैं। अमेरिका ने 1980 के दशक में अफगान मुजाहिदीनों का समर्थन किया था। यह भी जोखिम के बिना नहीं होगा, क्योंकि ऐसा हुआ तो पुतिन किसी न किसी तरह की जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं।