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US Nepal Tension: नेपाल में ड्रैगन की कूटनीतिक चाल से बौखलाया अमेरिका, जानें क्‍या है बाइडन प्रशासन की बड़ी चिंता?

नई दिल्‍ली। नेपाल में एक बार फ‍िर सियासी पारा चढ़ा हुआ है। नेपाल में जारी राजनीतिक बवाल के केंद्र में चीन और अमेरिका है। नेपाल की सत्‍तारूढ़ शेर बहादुर देऊबा सरकार में साझीदार कम्‍युनिस्‍ट पार्टी आफ नेपाल (माओवादी सेंटर) के नेता पुष्‍प कमल दहल ‘प्रचंड’ ने चेतावनी दी है कि वह सरकार से अलग हो जाएंगे। प्रचंड ने देऊबा सरकार को यह धमकी ऐसे समय पर दी जब वह कुछ घंटे बाद ही अमेरिका के मिलेनियम चैलेंज कारपोरेशन (एमसीसी) को लागू करने के लिए संसद में इसे पेश करने जा रही थी। हाल में अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों पर पुनर्विचार करने की धमकी के बाद नेपाल की चिंता गहरा गई थी। आखिर दक्षिण एशिया का यह छोटा-सा मुल्‍क क्‍यों सुर्खियों में है। चीन और अमेरिका की नजरों में क्‍यों चढ़ा नेपाल? इसके क्‍या बड़े निहितार्थ हैं? नेपाल में चीन और अमेरिका के दखल का भारत पर क्‍या असर पड़ेगा?

1- दरअसल, एमसीसी के तहत अमेरिका सरकार नेपाल को 50 करोड़ डालर की मदद देना चाहती है, लेकिन नेपाल का चीन समर्थक धड़ा इसका विरोध कर रहा है। सीपीएन माओवादी के संसद में नेता देव प्रसाद गुरुंग ने कहा कि अगर सरकार इसे लागू करने का प्रयास करती है तो उनकी पार्टी सरकार के साथ गठबंधन समाप्‍त कर देगी। बता दें कि 50 करोड़ डालर की अमेरिकी मदद के जरिए नेपाल में सड़कों की गुणवत्‍ता को सुधारा जाना है। इसके अतिरिक्‍त नेपाल में बिजली की उपल‍ब्‍धता को बढ़ाना है और नेपाल तथा भारत के बीच बिजली का व्‍यापार किया जाना है।

2- एमसीसी को नेपाल में राजनीति सियासत गरम है। इसकी आंच नेपाल की सरकार तक पहुंच रही है। खास बात यह है कि इसे लागू करने के लिए उसे संसद में पास कराया जाना जरूरी है। उधर, सरकार में शामिल प्रचंड की पार्टी ने पीएम देऊबा से कहा है कि वह इस अमेरिकी सहायता पर अपने सहयोगी दलों के साथ आम सहमति बनाए। इसके पूर्व अमेरिका ने एमसीसी को लेकर नेपाल को धमकी दी थी। बाइडन प्रशासन ने कहा कि नेपाल 28 फरवरी तक मिलेनियम चैलेंज कारपोरेशन के तहत प्रस्तावित अनुदान सहायता समझौते की पुष्टि करे। यदि नेपाल 50 करोड़ अमेरिकी डालर की सहायता स्वीकार नहीं करता है तो वह उसके साथ अपने संबंधों की समीक्षा करेगा और ऐसा मानेगा कि यह समझौता चीन की वजह से विफल हो गया।

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3- वर्ष 2020 में शेर बहादुर देऊबा ने अमेरिका को आश्‍वासन दिया है कि वह संसद के वर्तमान शीतकालीन सत्र में ही एमसीसी को अपनी अनुमति दे देगा। उधर, प्रचंड और उनके समर्थकों का कहना है कि यह अमेरिकी सहायता देश के संविधान को कमजोर करेगा जो उसकी हिंद-प्रशांत रणनीति का हिस्‍सा है। उनका यह भी कहना है कि अमेरिका नेपाल की जमीन का इस्‍तेमाल चीन के खिलाफ कर सकता है। बता दें कि नेपाल और अमेरिका ने 2017 में एमसीसी समझौते पर हस्ताक्षर किए थे

श्रीलंका ने एमसीसी प्रस्‍ताव को खारिज कर दिया था

अमेरिका नेपाल के इस फैसले से इसलिए भी बौखलाया है क्‍यों इसके पूर्व पिछले वर्ष श्रीलंका ने भी एमसीसी समझौते को चीन के दबाव में खारिज कर दिया था। इसके बाद अमेरिका ने श्रीलंका में अपनी प्रस्‍तावित 48 करोड़ डालर की सहायता को रद कर दिया था। एमसीसी के तहत 30 देश दुनियाभर में भागीदार बने हैं और अब तक 13 अरब 50 करोड़ डालर की सहायता दी गई है। वहीं चीन इस अमेरिकी सहायता का विरोध कर रहा है। देश के कई हिस्‍से में एमसीसी को लेकर प्रदर्शन भी किए जा रहे हैं।

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