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5 राज्यों के चुनावों के बाद मार्च में होगा MSP के लिए समिति गठन

भारत सरकार MSP तय करने के लिए समिति बनाएगी। समिति का गठन 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद होगा। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने राज्यसभा में कहा कि MSP कमेटी में किसान संघों के सदस्य, वैज्ञानिक, विशेषज्ञ और लाभार्थी होंगे। नवंबर 2021 में केंद्र सरकार के तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने के बाद किसान MSP की मांग पर अड़ गए थे।

पिछले 7 सालों से MSP पर दोगुने दाम दिए: तोमर

नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि 2018-19 से पहले ऐसा कोई प्रावधान नहीं था कि MSP को किसानों के लिए लाभकारी बनाया जाए। स्वामीनाथन समिति की अनुशंसा में भी 14-15 अनुशंसाएं ऐसी थीं जिन्हें जीओएम ने उपयुक्त नहीं पाया। एक अनुसंशा यह भी थी कि MSP पर 50% मुनाफा जोड़कर घोषित किया जाए, इसे नहीं माना गया था। प्रधानमंत्री ने 2018-19 में इसे स्वीकार किया और अब MSP बढ़कर मिल रही है। पिछले 7 सालों से MSP पर पहले से दोगुने दाम दिए गए हैं। बजट में भी 2 लाख 37 हजार करोड़ रुपए किसानों को लाभकारी मूल्य के लिए दिए जाने का प्रावधान है।

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क्या है फसलों पर मिलने वाली MSP

MSP यानी मिनिमम सपोर्ट प्राइस या फिर न्यूनतम समर्थन मूल्य। केंद्र सरकार फसलों की एक न्यूनतम कीमत तय करती है, इसे ही MSP कहा जाता है। अगर बाजार में फसल की कीमत कम भी हो जाती है, तो भी सरकार किसान को MSP के हिसाब से ही फसल का भुगतान करेगी। इससे किसानों को अपनी फसल की तय कीमत के बारे में पता चल जाता है कि उसकी फसल के दाम कितने चल रहे हैं। ये एक तरह फसल की कीमत की गारंटी होती है।

कौन तय करता है MSP?

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फसलों की MSP कमीशन फॉर एग्रीकल्चरल कॉस्ट्स एंड प्राइसेस (CACP) तय करता है। आयोग समय के साथ खेती की लागत और बाकी पैमानों के आधार पर फसलों की कम से कम कीमत तय करके अपने सुझाव सरकार के पास भेजता है।

MSP तय कैसे की जाती है?

MSP कैलकुलेट करने के लिए 3 अलग-अलग वेरिएबल का प्रयोग किया जाता है। इसमें A2, A2+FL और C2 शामिल हैं।

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A2 में उन खर्चों को गिना जाता है, जो किसान अपनी जेब से देता है। जैसे कि खाद बीज, बिजली, पानी और मजदूरी पर किया गया खर्च। इसे इनपुट कॉस्ट भी कहा जाता है। मोटे तौर पर बुआई से लेकर कटाई तक का खर्च इसमें आता है।
A2+FL में बुआई से लेकर कटाई तक के सारे खर्च के साथ फैमिली लेबर को भी जोड़ा जाता है। फैमिली लेबर यानी किसान के परिवार के सदस्यों ने खेती में जो कामकाज किया उसकी मजदूरी। अगर खेती का काम किसान मजदूरों से करवाता तो उन्हें मजदूरी देनी पड़ती। इसी तरह अगर घर के सदस्य भी खेत में काम कर रहे हैं, तो उन्हें भी मजदूरी देनी चाहिए।
C2 में बुआई से लेकर कटाई तक के खर्च के साथ ही जमीन का किराया और उस पर ब्याज को शामिल किया जाता है। साथ ही इसमें उस पूंजी के ब्याज को भी शामिल किया जाता है, जो किसान ने मशीन की खरीदी पर लगाई है। मोटे तौर पर समझें, तो इसमें खेती के खर्चों के अलावा जमीन और पूंजी के ब्याज को भी तय किया जाता है।
किसानों को किन फसलों पर मिलती है MSP?

सरकार अनाज, दलहल, तिलहन और बाकी फसलों पर MSP देती है।
अनाज वाली फसलें: धान, गेहूं, बाजरा, मक्का, ज्वार, रागी, जौ।
दलहन फसलें: चना, अरहर, मूंग, उड़द, मसूर।
तिलहन फसलें: मूंग, सोयाबीन, सरसों, सूरजमुखी, तिल, नाइजर या काला तिल, कुसुम।
बाकी फसलें: गन्ना, कपास, जूट, नारियल।
सरकार अभी किस हिसाब से देती है MSP?

सरकार अभी A2+FL फार्मूले के आधार पर ही MSP दे रही है।
MSP पर किसानों की क्या मांग है?

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किसान मांग कर रहे है कि उन्हें MSP C2+FL फॉर्मूले पर दी जाए।
किसानों की मांग है कि सरकार MSP से कम कीमत पर फसल की खरीदी को अपराध घोषित करे और MSP पर सरकारी खरीद लागू रहे।
साथ ही दूसरी फसलों को भी MSP के दायरे में लाया जाए। हालांकि, केंद्र सरकार के कई मंत्री और खुद प्रधानमंत्री भी ये बात कह चुके हैं कि MSP की व्यवस्था जारी रहेगी, लेकिन किसान संगठन चाहते हैं कि ये बात कानून में शामिल की जाए।

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