सरकारी संपत्ति में हिस्सेदारी बेचकर देश चलने वाली बात लोगो के समझ से बाहर हो रही है ये तो बात हुई की अपना कटोरा किराये पर देकर हाथ फैलाकर भीख माँगना ,सरकार अभी इसी नीतियों पर चल रही है ,सरकारी कंपनी ,रेलवे, हवाई अड्डा ,स्टेडियम सब गिरवी रख देश रहा है हालांकि पिछले 7 सालों में ही ये नौबत आई ,बेरोजगारी बढ़ी,अर्थवयवस्था गिरती गई महंगाई चरम पर है लेकिन सरकार नाम बदलने और हल्ला करने में मशगूल है ,और अगर विपक्षी पार्टियाँ सवाल उठती है तो गलत क्या है ,देश क्यों न पूछे की सरकारी संसाधनों में निजी हिस्सेदारी क्यों दी जा रही है आज तक ऐसी नौबत नहीं आई तो पिछले 7 सालो में ही क्यों ,लेकिन इसपर भी अगर कोई मिडिया, कोई नेता बोलता है तो तुरंत उन्हें पकिस्तान और आज का नया ट्रैंड अफगानिस्तान भेज दो कहने लगते है, इसका मतलब की इस सरकार को लोग चुपचाप तमाशा देखे कोई कुछ न बोले , साहेब देश प्रधानमंत्री चुना है आराध्य नहीं ,जिसके बारे में जाए – लेखक वंशीधरमिश्रा
खैर बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी राजद के नेता तेजस्वी ने भी इस मुद्दे पर सवाल खड़ा करते हुए कहा की तेजस्वी यादव ने अपने ट्वीट में लिखा, ‘भारत एक अत्यंत सामाजिक-आर्थिक असमानता वाला देश है. अगर निजी क्षेत्र (जिसका एकमात्र उद्देश्य लाभ कमाना होता है) के हाथों में ही सबकुछ बेच दिया जाएगा तो कमजोर वर्गों के हितों की रक्षा कौन करेगा? शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, नौकरी…सबकुछ कमजोर वर्गों की पहुंच से बाहर हो जाएगा!’
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तेजस्वी ने अपने अगले ट्वीट में लिखा, ‘केंद्र में बैठे नीम हकीमों ने अच्छी खासी दौड़ रही अर्थव्यवस्था को इतना बीमार कर दिया है कि अब इसका रेंगना भी दूभर हो गया है. अब इसे जिंदा रखने के लिए इसी के अंग काट-काट कर देश की संपत्ति ये झोलाछाप निजी हाथों में बेच रहे हैं. आंगन बेचकर किसी तरह घर चलाना कौन सी काबिलियत है साहब?’
हाइवे, रेलवे, एविएशन और टेलीकॉम जैसी सरकारी संपत्ति में हिस्सेदारी बेचने पर तेजस्वी यादव ने केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा किया.
दरअसल, केंद्र सरकार का मानना है कि एनएमपी के तहत वित्त वर्ष 2022 से वित्त वर्ष 2025 तक यानी 4 सालों में केंद्र सरकार की मुख्य संपत्तियों के माध्यम से 6 लाख करोड़ रुपए निवेश संभावनाओं का अनुमान है. ऐसे में देश की अर्थव्यवस्था फिर से रफ्तार पकड़ पाएगी, लेकिन केंद्र के इस फैसले पर विपक्ष लगातार हमलावर है