रविवार को चिराग पासवान और राजद के दलित नेता श्याम रजक की मुलाकात हुई. माना जा रहा है कि बिहार की राजनीति के लिहाज से ये दो बड़े शिफ्ट हैं. दरअसल, राजनीतिक जानकार मानते हैं कि संकेतों में ही सही लेकिन पीएम मोदी ने पशुपति कुमार पारस को रामविलास पासवान का राजनीतिक उत्तराधिकारी मान लिया है. वहीं, चिराग पासवान का भी भाजपा (BJP) से मोहभंग हो गया है और वह नई सियासी जमीन की तलाश में शिद्दत से जुट गए हैं.
राजनीति के जानकार कहते हैं कि श्याम रजक और चिराग पासवान के बीच दिल्ली में मुलाकात के सियासी मायने इस बात से समझे जा सकते हैं कि श्याम रजक ने साफ तौर पर कहा कि मेरे उस परिवार से निजी ताल्लुकात हैं, इसलिए हम मिले. हां, हमारी मुलाकात के सियासी मायने भी हों, इसमें भी अचरज नहीं होना चाहिए. रजक ने यह भी दावा किया कि अब चिराग बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर की धारा पर ही चलेंगे. गोलवरकर की धारा पर वे अब कभी नहीं जाएंगे.
राजनीतिक जानकारों बताते हैं कि आशीर्वाद यात्रा के जरिये चिराग पासवान का पूरा फोकस अपने संगठन को तैयार करने में है. वहीं, लोजपा की दावेदारी की कानूनी जंग भी जारी है. वहीं, भाजपा नेताओं से अधिक भाव नहीं मिलने की सूरत में चिराग पासवान ने राजद नेता तेजस्वी यादव से संपर्क और संवाद तेज कर दिया है. जाहिर है बिहार के सियासी फलक में राजद और लोजपा के चिराग गुट के बीच सियासी आकर्षण दिखने लगा है.
सियासी जनाकार बताते हैं कि लालू प्रसाद यादव सियासत के मास्टर हैं और इसके लिए मास्टर प्लान तैयार कर चुके हैं. उन्हें यह पता है कि बदलती सियासत में दलित वोटों को साधने के लिए बिहार में चिराग पासवान को अपने साथ लाना जरूरी है. यह न वोट बैंक के लिहाज से अहम होगा बल्कि भाजपा और जदयू के खिलाफ लोगों का परसेप्शन बदलने के भी काम आएगा. वह यह भी जानते हैं कि अगर चिराग पासवान उनके साथ आ गए तो यह ताकत उनके बेटे तेजस्वी यादव को सहज ही सत्ता में पहुंचा सकती है.
चिराग-तेजस्वी मिले तो पारस के लिए क्या?
राजनीतिक के जानकार यह भी कहते हैं कि इसका फायदा चिराग पासवान भी उठाएंगे. क्योंकि चिराग को भी यह पता है कि उनके नाम के जुड़ने भर से ही दलित वोटों का सेंटिमेंट एकबारगी लालू प्रसाद कैम्प की ओर मुड़ सकता है. दूसरे चिराग को यह भी पता है कि राजद की मदद से ही वे केंद्रीय राजनीति से अपने चाचा पशुपति कुमार पारस के लिए वे मुश्किल खड़ी कर सकते हैं.
जल्द ही जमीन पर उतर सकती है दोस्ती की सियासत!
राजनीति के जानकार यह भी कहते हैं कि इसमें दोनों ही पक्षों को इसमें अपना-अपना फायदा नजर आ रहा है. यह भी साफ है कि एनडीए में छोटे भाई की भूमिका में सीएम नीतीश कुमार राजग सरकार में अब दमदार नजर नहीं आ रहे हैं. वहीं, महंगाई और कोरोना जैसे मुद्दों पर भाजपा की साख भी घटी है. ऐसे में यह आकर्षण और यह झुकाव कब गठबंधन में तब्दील होगा, इसके लिए सियासी जमीन तैयार करने की कवायद भी शुरू है. अब इंतजार इस बात का है कि यह कब धरातल पर उतरता है.