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केंद्र सरकार के निजीकरण की नीति में भारतीय आयुध कारखाने की जमीन कौड़ियों के दाम में बेचने की तैयारी

मोदी सरकार के निजीकरण की नीति की मार हर ओर पडना शुरू हो चुका है, रेल कारखाना , LIC हवाई जहाज पुरातत्व विरासत और अब जमीने भी बिकने को तैयार हैं ,आज इसी क्रम में भारतीय आयुध कारखाना कोलकाता के काशीपुर का बिकने जा रहा है जिस पर अब केंद्र सरकार की नजर है और केंद्र सरकार इसे कौड़ियों के दाम में बेचने को भी तैयार हैं ,Government Want To Sell Defence Ministry Precious Land And Ordnance Factory  Boards To Corporates At Throw Away Prices - निजीकरण की मार: रक्षा मंत्रालय  की जमीन और आयुध कारखानों को कौड़ियों केकोलकाता के काशीपुर में 1801 यानी 220 साल पहले शुरू हुई गन कैरिज एजेंसी का नाम क्या अब समाप्त हो जाएगा। आयुध निर्माण कंपनियों पर किसकी नजर है? आखिर ऐसी क्या मजबूरी आ गई है कि केंद्र सरकार रक्षा मंत्रालय की जमीन और आयुध फैक्ट्रियां, कोड़ियों के दाम बेचने जैसे प्रपोजल तैयार कर रही है। क्या सरकार आयुध निर्माणियों को बेचकर अपना घाटा पूरा करना चाहती है।Corporatisation of Ordnance Factories Against Country's Defence  Preparedness: Unions | NewsClick
अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ के महासचिव सी. श्रीकुमार ने अमर उजाला डॉट कॉम के साथ बातचीत में ऐसे कई सवाल दागे हैं। उन्होंने कहा, पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर इस सौदे के खिलाफ थे, जबकि अब मौजूदा रक्षा मंत्री से अभी तक फेडरेशन के प्रतिनिधियों की बातचीत नहीं हो पाई है। आयुध कारखानों की जमीन दो लाख करोड़ रुपये की है, जबकि सरकार अपने चहेते उद्योगपतियों को 62 हजार एकड़ जमीन कौड़ियों के भाव दिलाने के लिए इसकी कीमत 72 हजार करोड़ रुपये लगवा रही है। रक्षा मंत्रालय की जमीन पर अतिक्रमण हो रहा है। पिछले तीन वर्षों में रक्षा मंत्रालय की 47.579 एकड़ भूमि पर कब्जा होने की बात सामने आई है। कुछ जगह पर लोगों ने वहां पक्के ठिकाने तक बना लिए हैं।Optimisation of Ordnance Factory Board - Chanakya Forum Chanakya Forumएआईडीईएफ के महासचिव सी.श्रीकुमार बताते हैं, सरकार ने भारतीय आयुध कारखानों को बेचने की धुन पाल रखी है। उसे यह नहीं मालूम कि इसका फायदा या नुकसान क्या है, सरकार को तो बस ये धरोहर बेचनी है। देश में 41 आयुध निर्माणियां हैं, सात संगठन हैं। इनमें कोलकाता के अलावा चेन्नई, मुंबई, जबलपुर, आयुध निर्माणी मेदक, आयुध निमाणी बड़माल, बलांगीर और आयुध निर्माणी कारखाना, खडकी पुणे आदि शामिल हैं।

इन सभी आयुध निर्माण कारखानों की जमीन देखें तो वह 62 हजार एकड़ से अधिक है। सरकार की मंशा है कि इस जमीन को कौड़ियों के भाव बड़े उद्योगपतियों को दे दिया जाए। ये देश की सुरक्षा के लिए ठीक नहीं है। इन आयुध निर्माण कारखानों ने सेना, अर्धसैनिक बलों और पुलिस को बड़े पैमाने पर गोला बारुद और दूसरा साजो सामान सप्लाई किया है। देश के अलग-अलग ऑर्डिनेंस कारखानों में 80 हजार से ज्यादा कर्मचारी काम कर रहे हैं। इनमें बहुत से कारखाने ऐसे हैं, जिसके लिए किसानों और आदिवासियों ने अपनी जमीन दी है।Group of Ministers to take call on corporatisation of ordnance factories -  The Hindu BusinessLine

राज्य सरकारों ने भी इन कारखानों की खातिर भूमि उपलब्ध कराई है। अब केंद्र सरकार इस जमीन को बेचकर अपना घाटा पूरा करने की रणनीति तैयार कर रही है। बतौर सी. श्रीकुमार, आयुध निर्माणी मेदक और आयुध निर्माणी बड़माल के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जमीन दिलाई थी।

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थल सेना, वायु सेना और जल सेना से जुड़ी किसी भी आयुध निर्माणी का निजीकरण नहीं किया जाना चाहिए। सरकार ने जिस कंसलटेंट से इस जमीन का दाम तय कराया, उसने तो हद ही कर दी। कंसलटेंट ने सभी आयुध निर्माणी कारखानों की जमीन की कुल कीमत 72 हजार करोड़ रुपये लगाई है, जबकि मार्केट वेल्यू दो लाख करोड़ रुपये से अधिक है।Employees of ordnance factories support strike - The Hindu

पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर इसीलिए इस सौदे के खिलाफ थे। देश की तीन प्रमुख ट्रेड यूनियन, अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (एआईडीईएफ), भारतीय राष्ट्रीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (आईएनडीडब्ल्यूएफ) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े भारतीय मजदूर संगठन समर्थित भारतीय प्रतापी मजदूर संघ (बीपीएमएस) भी इसके विरोध में उतरे हैं।

सी.श्रीकुमार कहते हैं कि अब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मिलने का समय मांग रहे हैं, तो वहां से कोई जवाब नहीं आ रहा। ऐसा संभावित है कि रक्षा मंत्रालय के टॉप अफसर सरकार को गलत सलाह दे रहे हैं। एक शीर्ष अफसर की नियुक्ति तो इन्हीं कार्यों के लिए हुई है। आयुध निर्माणी कारखाने एवं उनकी जमीन बेचने और सेना के जवानों की पेंशन कैसे खत्म हो, ऐसे प्रपोजल तैयार करने के लिए ही वह अधिकारी नियुक्त किया गया है।Ordnance Factory Board to be made 100% govt equity firm

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वित्त मंत्रालय ने प्रपोजल दिया कि यह जमीन बेचने से जो पैसा आएगा, वह 50 फीसदी सेना के उपकरण आदि खरीदने में खर्च होगा और बाकी का पैसा सरकार ले लेगी। एआईडीईएफ के पदाधिकारी का कहना है कि पीएमओ ने इस प्रपोजल को ठीक नहीं बताया। अब नया प्रपोजल तैयार किया जा रहा है। रक्षा मंत्रालय ने इस बाबत कहा था कि ओएफबी यानी आयुध निर्माणी बोर्ड को रक्षा मंत्रालय के अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) के साथ सम्मिलित किया जाएगा। यह ओएफबी के हित में है क्योंकि इससे इन्हें परिचालन स्वतंत्रता और लचीलापन प्रदान होगी। लेकिन वर्तमान में इसका अभाव महसूस किया जा रहा है। श्रमिकों के हितों को लेकर जो निर्णय लेंगे, उनमें पर्याप्त रूप से सुरक्षा की भावना रहेगी।Now OFRC Will Recuit Employee In Ordnance Factory - अब OFRC करेगा आयुध  निर्माणियों में भर्तियां | Patrika News

दूसरी तरफ विभिन्न राज्यों में रक्षा मंत्रालय की जमीन पर कब्जा हो रहा है। लंबे समय तक इन जमीनों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जाता। कई जगहों पर लोगों ने रक्षा मंत्रालय की जमीन पर कामधंधा शुरू कर रखा है। पिछले तीन वर्षों में रक्षा मंत्रालय की 47.579 एकड़ भूमि पर कब्जा होने की बात सामने आई है। इस दौरान 174.3172 एकड़ भूमि पर हुआ कब्जा हटाया भी गया है। रक्षा मंत्रालय जब एक जगह से अवैध निर्माण/अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई करता है तो दूसरी जमीन पर कब्जा होने की सूचना मिल जाती है।Ordnance factory explosion exposes untrained casual workers, use of ancient  equipment | Hindustan Times

साल 2017, 2018, 2019 व फरवरी 2020 तक रक्षा मंत्रालय की जमीन पर अवैध निर्माण/अतिक्रमण की बात करें तो इसमें हरियाणा टॉप पर रहा है। इस अवधि के दौरान कुल 47.579 एकड़ भूमि पर कब्जे की बात सामने आई थी, जिसमें से हरियाणा में 17.628 एकड़ जमीन पर अतिक्रमण हुआ है। मुख्य तौर पर दिल्ली में 4.069 एकड़, गुजरात 0.009, हिमाचल प्रदेश 0.014, जम्मू कश्मीर 0.351, कर्नाटक 0.413, केरल 0.063, मध्यप्रदेश 2.627, महाराष्ट्र 6.042, पंजाब 1.468, राजस्थान 3.325 और पश्चिम बंगाल में 2.01 एकड़ जमीन पर कब्जा हुआ है।

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