News Times 7
Other

निजीकरण के हालात देश में आखिर क्यों, जानिए किन-किन क्षेत्रों में होगा निजीकरण और सरकार का लक्ष्य क्या है?

2014 के बाद से देश निजीकरण की ओर चल पड़ा है नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद से सार्वजनिक क्षेत्र को निजीकरण की ओर करने का जो जोरदार प्रयास और सरकार का समर्थन किया जा रहा है उसकी में हम यह देखनी की जरुरत है कि सरोजिनी क्षेत्रों में विकास की हुई कंपनियां क्या निजी क्षेत्र में उतना विकास कर पाएंगी या उससे कितना प्रभाव व्यपार और लोगों की आमदनी पर पड़ेगा, इस समय केंद्र सरकार विनिवेश पर ज्यादा ध्यान दे रही है। सरकारी बैंकों में हिस्सेदारी बेचकर सरकार राजस्व को बढ़ाना चाहती है। Bank Privatisation: बैंकिंग रिफॉर्म या पैसों की जरूरत? फिलहाल चर्चा में हैं  ये दो बैंक |Bank Privatisation decision is banking reform or disinvestment  target, these 2 banks in discussion | TV9 ...
वर्ष 1991-92 में सरकार ने विनिवेश द्वारा 2500 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा था। सरकार उस लक्ष्य से 3040 करोड़ अधिक जुटा पाने में सफल रही।
वर्ष 2013-14 में लक्ष्य तो लगभग 56,000 करोड़ के विनिवेश का था, पर उपलब्धि लगभग 26,000 करोड़ की रही।
सरकार साल 2017-18 में एक लाख करोड़ तो इसके एक साल बाद 80,000 करोड़ के लक्ष्य की तुलना में 85,000 करोड़ जुटाने में कामयाब रही थी।
सरकार ने 2021-22 में विनिवेश से 1.75 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है। 
इससे पहले 2019-20 के अंतरिम बजट के दौरान, सरकार ने कहा था कि विनिवेश के जरिए उनका 90 हजार करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य है। बाद में सरकार ने इस लक्ष्य को बढ़ाकर 1.05 लाख करोड़ रुपये कर दिया था।
बीते वित्तीय वर्ष में सरकार का यह अभियान औंधे मुंह गिरा। कोरोना महामारी के कारण सरकार महज 19,499 करोड़ ही जुटा पाई।निजीकरण के विरोध में विपक्ष के साथ सरकारी कर्मचारियों का सड़क पर फूट सकता है  गुस्सा - Lokaarpan News - Uttarakhand Latest News | Uttarakhand Hindi News
क्या कहते हैं आलोचक?
इस प्रक्रिया के आलोचकों का कहना है कि सार्वजनिक उपक्रमों की परिसंपत्तियों को औने-पौने दामों में निजी व्यापारियों को बेचा जा रहा है। दूसरे शब्दों में, इस प्रक्रिया से सरकार को बहुत घाटा उठाना पड़ रहा है। साथ ही, विनिवेश से प्राप्त राशि का उपक्रमों के विकास के लिए प्रयोग नहीं किया गया, न ही इसे सामाजिक आधारिक संरचनाओं के निर्माण पर खर्च किया गया। यह राशि सरकार के बजट के राजस्व घाटे को कम करने में ही लग गई।
सरकार 300 से 23 करना चाहती है सरकारी कंपनियों की संख्या
सरकार ने इस मामले में एक दीर्घकालीन रणनीति तैयार की है। इसके तहत सरकारी क्षेत्र से जुड़ीं कंपनी, पीएसयू और अन्य संस्थानों को दो हिस्से में बांटा गया है। एक हिस्सा वह है जिसमें कंपनियों और पीएसयू का सरकार 51 फीसदी हिस्सा बेच चुकी है। सरकार की योजना अगले तीन सालों में इनका पूर्ण निजीकरण करने का है। सरकार ने फिलहाल कुछ कंपनियों, पीएसयू और संस्थानों को रणनीतिक क्षेत्र में शामिल किया है। इनमें परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष, रक्षा, ट्रांसपोर्ट, ऊर्जा, वित्तीय सेवा जैसे विभाग शामिल हैं। सरकार इस क्षेत्र को निजीकरण और विनिवेश से फिलहाल दूर रखेगी। इसके अलावा सरकारी क्षेत्र की 300 कंपनियां, पीएसयू और सरकारी उपक्रमों में से अधिकतम का पूर्ण निजीकरण या इनका ज्यादा से ज्यादा हिस्सा बेचने का है। सरकार की योजना रणनीतिक क्षेत्र से जुड़ी सरकारी कंपनियों की संख्या तीन साल में 300 से घटाकर 23 करने की है। 4 Mid-sized Government Banks Shortlisted For Privatisation: Report - जल्द  हो सकता है इन चार बैंकों का निजीकरण, जानिए क्या है सरकार की योजना - Amar  Ujala Hindi News Live

इसलिए दिया साफ संदेश
संसद के बजट सत्र के दौरान प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री समेत कई मंत्रियों ने खुलकर विनिवेश और निजीकरण की वकालत की। खुद पीएम ने कहा कि निजी क्षेत्र को साथ लाए बिना अर्थव्यवस्था का कल्याण संभव नहीं है। इससे पहले किसी भी सरकार ने विनिवेश और निजीकरण की इतनी खुली वकालत नहीं की। दरअसल पूरी सरकार विनिवेश और निजीकरण के पक्ष में माहौल बना रही है क्योंकि बीते तीन दशकों में साल 2017-18 और 2018-19 के इतर कभी विनिवेश के माध्यम से धन जुटाने का लक्ष्य हासिल नहीं कर पाई।

इन कंपनियों में हिस्सेदारी बेचेगी सरकार
भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल)
एयर इंडिया
शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया
कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया
आईडीबीआई बैंक
बीईएमएल
पवन हंस
नीलाचल इस्पात निगम Many Maharatna, Navaratna Companies May Not Be PSUs Anymore - केंद्र के इस  फैसले से छिन जाएगा कई महारत्न, नवरत्न कपंनियों से पीएसयू का तमगा | Patrika  News
देश को क्यों पड़ी निजीकरण की जरूरत? 
वर्ष 1991 में भारत को विदेशी कर्ज के मामले में संकट का सामना करना पड़ा। सरकार अपने विदेशी कर्ज का भुगतान करने की स्थिति में नहीं थी। पेट्रोल आदि आवश्यक वस्तुओं के आयात के लिए सामान्य रूप से रखा गया विदेशी मुद्रा रिशर्व 15 दिनों के लिए आवश्यक आयात का भुगतान करने योग्य भी नहीं बचा था। इस संकट को आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि ने और भी गहन बना दिया था। इन सभी कारणों से सरकार ने कुछ नई नीतियों को अपनाया और इसने हमारी विकास रण-नीतियों की संपूर्ण दिशा को ही बदल दिया।निजीकरण समस्या का हल नहीं, सार्वजनिक बैंकों के प्रशासन में व्यापक सुधार की  जरूरत

Advertisement

इस वित्तीय संकट का वास्तविक स्रोत 1980 के दशक में अर्थव्यवस्था में अकुशल प्रबंधन था। सामान्य प्रशासन चलाने और अपनी विभिन्न नीतियों के क्रियान्वयन के लिए सरकार करों और सार्वजनिक उद्यम आदि के माध्यम से फंड जुटाती है। जब व्यय आय से अधिक हो तो सरकार बैंकों, जनसामान्य तथा अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से उधार लेने को बाध्य हो जाती है। इस प्रकार वह अपने घाटे का वित्तीय प्रबंध कर लेती है। कच्चे तेल आदि के आयात के लिए हमें डॉलर में भुगतान करना होता है और ये डॉलर हम अपने उत्पादन के निर्यात द्वारा प्राप्त करते हैं।विभिन्न सरकारी उपक्रम कौन से हैं जिनका मोदी सरकार निजीकरण करना चाहती है? -  Quora

इस अवधि में सरकार की विकास नीतियों की आवश्यकता रही क्योंकि राजस्व कम होने पर भी बेरोजगारी, गरीबी और जनसंख्या विस्पफोट के कारण सरकार को अपने राजस्व से अधिक खर्च करना पड़ा। यही नहीं, सरकार द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रमों पर होने वाले व्यय के कारण अतिरिक्त राजस्व की प्राप्ति भी नहीं हुई। इन सब कारणों को देखते हुए भारत ने नई आर्थिक नीति की घोषणा की। इस नई आर्थिक नीति में व्यापक आर्थिक सुधारों को सम्मिलित किया गया। इस दृष्टि से सरकार ने अनेक नीतियां प्रारंभ कीं। इनके तीन उपवर्ग हैं- उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण।रेलवे का निजीकरणः क्या फ़ायदे का सौदा साबित हो पाएगा? - BBC News हिंदी
वायपेयी के नेतृत्व में इन कंपनियों का हुआ निजीकरण
साल 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में बनाए गए विनिवेश मंत्रालय ने वायपेयी के नेतृत्व में भारत एल्यूमिनियम कंपनी, हिंदुस्तान जिंक, इंडियन पेट्रोकेमिकल्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड और विदेश संचार निगम लिमिटेड जैसी सरकारी कंपनियों को बेचा था। समय-समय पर कई अन्य कंपनियों में भी रणनीतिक रूप से विनिवेश किया गया (कुछ का पूर्ण तो कुछ कंपनियों में सरकारों ने एक निश्चित हिस्सेदारी बेची)। इनमें सीएमसी लिमिटेड, होटल कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, एचटीएल लिमिटेड, आईबीपी कॉर्पोरेशन लिमिटेड, इंडिया टूरिज्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड, लगान जूट मशीनरी कॉर्पोरेशन लिमिटेड, मारुति सुजुकी इंडिया, टाटा कम्युनिकेशन लिमिटेड आदि।भारत पेट्रोलियम के निजीकरण का रास्ता साफ, रिलायंस लगा सकती है बोली

विभिन्न क्षेत्रों में कब मिली निजीकरण की अनुमति?
बैंकिंग क्षेत्र: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 1993 में 13 नए घरेलू बैंकों को बैंकिंग गतिविधियां करने की अनुमति दी।
दूरसंचार क्षेत्र: 1991 से पहले तक बीएसएनएल का एकाधिकार था। 1999 में नई टेलीकॉम नीति लागू होने के बाद निजी कंपनियां आईं।रेलवे के निजीकरण से इनकार, पर कैसे पूरा होगा विनिवेश का लक्ष्य? - BBC News  हिंदी
बीमा क्षेत्र: 1956 में लाइफ इंश्योरेंस एक्ट के बाद एक सितंबर 1956 को भारतीय जीवन बीमा निगम की स्थापना हुई थी। 1999 में मल्होत्रा समिति की सिफारिशों के बाद निजी क्षेत्र को अनुमति मिली।
एविएशन क्षेत्र: 1992 में सरकार ने ओपन स्काई नीति बनाई और मोदीलुफ्त, दमनिया एयरवेज, एयर सहारा जैसी कंपनियां आईं।
ब्रॉडकास्ट क्षेत्र: 1991 तक दूरदर्शन ही था। 1992 में पहला निजी चैनल जीटीवी शुरू हुआ। आज देश में 1000 से ज्यादा चैनल हैं।

Advertisement

इस खबर में दिए गए आंकड़े इकोनॉमिक सर्वे, एनसीईआरटी, कंपनी डाटा, सरकारी डाटा, फैक्टली, मीडिया रिपोर्ट्स आदि से लिए गए हैं।

Advertisement

Related posts

कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच प्रधानमंत्री मोदी दस राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक शुरू

News Times 7

देश के नए 50वें चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने दिलाया देश को भरोसा कहा शब्दों से नहीं काम से दिलाऊंगा देश को भरोसा

News Times 7

बिहार की जनता इस विदाई का इंतजार कर रही है, इस चुनाव में जनता उनको रिटायर कर देगी- संजय राउत

News Times 7

Leave a Comment

टॉप न्यूज़
ब्रेकिंग न्यूज़