क्या सच में वानर सेना ने बनाया था राम सेतू? इस सवाल का जवाब पाने के लिए कई बार पहले भी रिसर्च किए जा चुके हैं। लेकिन अब आपको जल्द ही राम सेतू से जुड़े हर सवाल का जवाब मिल जाएगा। केंद्र की मोदी सरकार ने औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) और राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (NIO) को राम सेतु के अंडर वॉटर रिसर्च के लिए मंजूरी दे दी गई है। सूत्रों के मुताबि तमिलनाडु में आगामी विधानसभा चुनाव-2021 को देखते हुए रिसर्च की शुरुआत इस साल की जा सकती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) अब इस पूर मामले की जांच करेगा और पता लगाएगा कि राम सेतु कहलाने वाली भारत और श्रीलंका के बीच 48 किलोमीटर लंबी पत्थरों की बनी श्रृंखला कब और कैसे बनाई गई है। यह पता करने के लिए इस साल अंडर वॉटर प्रोजेक्ट चलाया जाएगा।
इस रिसर्च के उद्देश्य के बारे में बात करते हुए, केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति राज्य मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने कहा कि दुनिया को राम सेतु के इतिहास के बारे में जानना चाहिए। इस रिसर्च में वैज्ञानिक राम सेतु की आयु जीवाश्मों और अवसादन के अध्ययन के माध्यम से पता चलेगी कि क्या यह रामायण काल से संबंधित है। रिसर्च में ये भी पता लगाने की कोशिश की जाएगी कि क्या राम सेतु के आसपास कोई जलमग्न बस्तियां हैं या नहीं?
राम सेतु, जिसे Rama’s Bridge और Adam’s Bridge और Nala Setu के नाम से भी जाना जाता है, पम्बन द्वीप के बीच में है। इसे रामेश्वरम द्वीप के रूप में भी जाना जाता है। ये श्रीलंका के उत्तर-पश्चिमी तट से तमिलनाडु भारत और मन्नार द्वीप का तट तक है। यह पुल धार्मिक महत्व रखता है क्योंकि इस पुल का जिक्र रामायण में किया जाता है।