कोविड में यह अजीबोगरीब वाक्य सिर्फ बिहार में देखने को मिलता है जहां मरीज टेस्ट कराए या ना करें लेकिन उसका रिजल्ट उसके मोबाइल नंबर पर पॉजिटिव और नेगेटिव के रूप में जरूर जाता है आखिर सरकार स्वस्थ को लेकर इतनी लापरवाह क्यों है जहां महामारी के रूप में व्याप्त कोरोना दुनिया के लिए मुसीबत बना हुआ है वही बिहार में बिना कोरोना टेस्ट कराए रिजल्ट लोगों के मोबाइल फोन पर आ जाते हैं यह दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है! गौतम कुमार एक शोरूम में काम करते हैं। इस साल जुलाई में उन्होंने अपना कोरोना टेस्ट करवाया। रिपोर्ट निगेटिव आई, तो एहतियात बरतते हुए काम-धंधे में लग गए। लेकिन, पिछले महीने यानी नवंबर की 27 तारीख को जो हुआ, उसने गौतम चौंका दिया। वे कहते हैं, ‘बिहार सरकार की तरफ से मेरे मोबाइल पर एक मैसेज आया। इसमें मेरा नाम लिखा था। साथ ही लिखा था कि 26 नवंबर को कोरोना टेस्ट के लिए जो सैंपल दिए थे, उसकी रिपोर्ट निगेटिव है। पहली बार में तो मुझे भरोसा नहीं हुआ। मैंने मैसेज दोबारा पढ़ा। तब समझ आया कि ये तो सिस्टम का बड़ा झोल है। मैंने ऐसा कोई सैंपल दिया ही नहीं, तो ये मैसेज आया क्यों?’
गौतम अकेले नहीं है, जिनके मन में ये सवाल उभरा है। 32 साल के शौकत अंसारी को भी ऐसा ही मैसेज मिला है। उन्होंने भी इस साल जुलाई में कोरोना जांच के लिए सैंपल दिया था। भास्कर से बात करते हुए वे कहते हैं, ‘मैं जहां काम करता हूं, वहां एक साथी को कोरोना हो गया था। इसी के बाद हम 10-20 लोगों ने जुलाई में टेस्ट करवाया था। तब का मैसेज तभी आ गया था, लेकिन कई महीने बाद एक बार फिर सभी लोगों को इस तरह के मैसेज आए हैं।’
शौकत अंसारी दावा करते हैं कि वे ऐसे करीब बीस लोगों को जानते हैं जिनके पास इस तरह के मैसेज गए हैं। इस अजीबोगरीब स्थिति को लेकर बिहार से जुड़े कई युवाओं ने सोशल मीडिया पर लिखना शुरू कर दिया है। वे पूछ रहे हैं कि ऐसा कैसे हो सकता है? क्या सरकारी तंत्र में बैठे लोग कोरोना टेस्ट की संख्या बढ़ाने और गिनती को बड़ा बनाए रखने के लिए ऐसा कर रहे हैं? अब सवाल उठता है कि अगर इस तरह के मैसेज आए हैं, तो उसकी वजह क्या है?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमने बिहार की राज्य स्वास्थ्य सोसाइटी से सम्पर्क किया। यहां काम करने वाली एक महिला कर्मचारी ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा, ‘ऐसा होना तो नहीं चाहिए। अगर ये हुआ है तो बड़ी बात है। इस तरह के मैसेज जिले में बने कंट्रोल रूम से भेजे जाते हैं। हर जिले का अलग कंट्रोल रूम है। जिले के केंद्र पर जो सैंपल लिए जाते हैं, उसमें दिए गए डेटा के अनुसार ही मैसेज भेजे जाते हैं। थोड़ा रूककर वे कहती हैं, वो सकता है कि डेटा फीड करने वाले ने गलत कोरोना ID डाल दी हो और इस वजह से ऐसा हुआ हो।
राज्य में ग्रामीण स्तर पर काम कर रहे राकेश कुमार (बदला हुआ नाम) इस तर्क से सहमत नहीं हैं। उनके मुताबिक, ऐसी लापरवाही आम बात है। ये नीचे से ऊपर तक सबकी जानकारी में है। फोन पर हुई बातचीत में वे कहते हैं, ‘क्या आप भी कोरोना जांच के बारे में पूछ रहे हैं। अब तो बिहार में कोई इस बारे में पूछ ही नहीं रहा है। सरकार केवल जांच के बड़े-बड़े आंकड़े चाहती है। प्रखंड और पंचायत स्तर पर करने वाले स्वास्थ्य कर्मचारियों को हर हफ्ते का टार्गेट दिया जा रहा है। उस टार्गेट को पूरा करने के लिए कई बार वे पुराने डेटा का भी इस्तेमाल कर लेते हैं। कुल मिलाकर बात ये है कि अब यहां किसी को कुछ मतलब नहीं है। सब भगवान भरोसे चल रहा है।’स्वस्थ को लेकर ऐसी खानापूर्ति सरकार और राज्य के लिए एक बड़ा मुसीबत बन सकती हैं रिपोर्ट की जल्दबाजी और बिना कोरोना टेस्ट के रिपोर्ट देना यह बताता है कि सरकार को रोना को लेकर बिल्कुल सचेत नहीं है