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गांधीवाद की बुनियाद पर विचारधारा की इमारत बनाएंगे पीके ,जानसुराज से मिली सफलता तो बना सकते है पार्टी

प्रशांत किशोर ने राजनीति में अपनी नई राह चुन ली है। अब वह किसी राजनीतिक दल से जुड़ने की बजाय बिहार में अपने जन सुराज अभियान के जरिए राजनीति में उन मूल्यों, सिद्धांतों और उद्देश्यों को सार्वजनिक और वैचारिक विमर्श में प्रभावी बनाएंगे जिन्हें गांधीवाद या गांधीमार्ग के रूप में जाना जाता है। पीके को अपनी जन सुराज मुहिम में कामयाबी मिलती दिखाई दी तो वह कभी भी अपने राजनीतिक दल के गठन की घोषणा कर सकते हैं, जिसका वैचारिक आधार गांधीवाद होगा और जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के मूल्यों और भारतीयता को आगे बढ़ाएगा।

नई पार्टी बनाने को लेकर प्रशांत किशोर ने दिया ये बड़ा बयान, 2 अक्टूबर से शुरू करेंगे 3 हजार किलोमीटर की पदयात्रा-Prashant Kishor gave this big statement about ...

गांधीवाद की बुनियाद पर विचारधारा की इमारत बनाएंगे
पीके के आलोचक हमेशा यह कहते हैं कि उनकी कोई विचारधारा नहीं है, लेकिन अपनी जन सुराज पद यात्रा से प्रशांत किशोर उन्हें जवाब देंगे। वे आलोचकों को बताएंगे कि जैसे गांधी किसी वैचारिक जड़ता के शिकार नहीं थे और उन्होंने अपनी सोच और विचारधारा जनता के साथ सीधे जुड़कर विकसित की थी, उसी तरह वह भी जनता के बीच जाकर गांधीवादी विचारों की बुनियाद पर मौजूदा दौर के मुताबिक अपनी विचारधारा की इमारत बनाने जा रहे हैं। पीके के मुताबिक गांधी और उनके विचार जितने अतीत में प्रासंगिक थे, उतने ही आज भी हैं और आगे भी रहेंगे। जरूरत है उन पर अमल करने और लोगों के बीच उन्हें ले जाने की है। गांधी का रास्ता ही एकमात्र रास्ता है जो मौजूदा दौर की तमाम सामाजिक, वैचारिक आर्थिक और नैतिक चुनौतियों का समाधान कर सकता है।

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पीके के लिए बिहार एक पड़ाव
हालांकि पीके ने अपनी सियासी मुहिम की शुरुआत बिहार से करने की घोषणा की है, लेकिन प्रशांत किशोर को जानने वाले जानते हैं कि बिहार उनके लिए महज एक पड़ाव है, मंजिल नहीं। बकौल पीके उनका इरादा देश में गांधी के विचारों और उनके रास्ते की प्रासंगिकता को राजनीति में फिर से स्थापित करके संघ परिवार और भाजपा के वैचारिक एजेंडे हिंदुत्व का विकल्प देश को देना है। Did Prashant Kishor surrender on the terms of Congress? Reached Hyderabad to meet KCR FGN News | FGN News

जेपी के रास्ते से गांधी की खोज
प्रशांत किशोर अपना यह वैचारिक और राजनीतिक प्रयोग बिहार से उसी तरह करना चाहते हैं जैसे कभी महात्मा गांधी ने चंपारण से अपने सत्याग्रह प्रयोग की शुरुआत की थी, लेकिन पीके बिहार में गांधी की खोज जय प्रकाश नारायण के रास्ते पर चलकर कर रहे हैं। वह उसी तरह बिहार की मौजूदा सत्ता जिसके अगुआ पीके के पुराने मित्र नीतीश कुमार हैं, को चुनौती देते हुए दो अक्तूबर से पूरे बिहार में 3000 किलोमीटर की पदयात्रा शुरू करने जा रहे हैं। कुछ इसी तरह 1974 में सर्वोदय आंदोलन से निकलकर जय प्रकाश नारायण ने अपनी पुत्री तुल्य इंदिरा गांधी की केंद्रीय सत्ता के खिलाफ आंदोलन का बिगुल फूंका था। जेपी भी गांधी का नाम लेकर सत्ता के खिलाफ मैदान में उतरे थे और पीके भी गांधी को खोजने के लिए बिहार से अपना अभियान शुरू कर रहे हैं।प्रशांत किशोर को लेकर किस असमंजस में है कांग्रेस पार्टी? - BBC News हिंदी

पीके की पहल पर सबकी अपनी राय
पीके की इस नई पहल को लेकर अलग-अलग कयास हैं। कोई इसे उनकी बिहार का मुख्यमंत्री बनने की राजनीतिक महत्वाकांक्षा बता रहा है तो कोई कह रहा है कि पीके की इस पहल का बिहार जैसे जातीय और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति वाले राज्य में कोई खास असर नहीं होने वाला है। राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल (यू) और भाजपा सबने पीके की मुहिम को खारिज करते हुए अलग-अलग प्रतिक्रिया दी है।

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राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी के मुताबिक बिहार में सिर्फ तेजस्वी मॉडल चलेगा और किसी मॉडल के लिए वहां जगह नहीं है। वहीं, जद (यू) महासचिव के सी त्यागी कहते हैं कि बिहार में नीतीश कुमार का सुशासन है और वहां किसी तरह के नए प्रयोग की न कोई जरूरत है और न ही गुंजाइश। खुद नीतीश कुमार से जब प्रशांत किशोर की नई पहल के बारे में प्रतिक्रिया पूछी गई तो उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। भाजपा नेताओं की टिप्पणी भी नकारात्मक ही है।बोले प्रशांत किशोर, कांग्रेस को पीके की जरूरत नहीं, मेरा कद इतना बड़ा नहीं कि राहुल गांधी मुझे भाव दें... - Lagatar

कांग्रेस जरूर इस मामले में खामोश है लेकिन प्रियंका गांधी के सलाहकार आचार्य प्रमोद कृष्णम कहते हैं कि बिहार में कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ बचा ही नहीं है, इसलिए कांग्रेस की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है, लेकिन प्रमोद कृष्णम पीके की प्रतिभा और क्षमता के कायल हैं और कहते हैं कि एक उत्तर प्रदेश के अपवाद को छोड़कर पीके ने हर जगह अपनी सफलता के झंडे गाड़े हैं।

कार्ययोजना के अभी पत्ते नहीं खोले
सवाल है कि पीके की रणनीति और आगे की कार्ययोजना क्या है? इसमें उनकी भी दिलचस्पी है जो पीके को खारिज करते हैं और उनकी भी जो उनमें नई संभावना देखते हैं। प्रशांत किशोर ने हालांकि अपनी योजना का पूरा ब्योरा नहीं दिया है, लेकिन उन्होंने अपने ट्वीट में दो बातें कही हैं कि अब तक वह जो करते रहे हैं उसकी जगह अब वह असली मालिक यानी जनता के पास जन सुराज का अपना कार्यक्रम लेकर सीधे जाएंगे और यह अपने इस सियासी प्रयोग की शुरुआत वह बिहार से करेंगे। इससे साफ है कि पीके अब बिहार की उर्वरा राजनीतिक जमीन में पिछले करीब 30 साल से चल रही लालू बनाम नीतीश भाजपा की सियासत के नए विकल्प के रूप में खुद को पेश करेंगे। इसके लिए उन्हें अब दिल्ली और भारत भर में अपनी घुमंतू शैली छोड़कर बिहार में जमना होगा। प्रशांत किशोर ने इसे समझ लिया है और वह पटना में डेरा जमा चुके हैं। पीके के करीबी सूत्रों के मुताबिक प्रशांत किशोर किसी जल्दबाजी में नहीं हैं। वह बिहार के बेटे हैं और 2015 में उन्होंने राजद-जद(यू) गठबंधन के चुनाव अभियान की कमान संभाली थी और जहां उनकी रणनीति से महागठबंधन को जबर्दस्त सफलता मिली थी और नीतीश कुमार फिर मुख्यमंत्री बनें वहीं पीके ने इस चुनाव में पूरे बिहार को बहुत गहराई से जान समझ लिया था। प्रशांत किशोर को लेकर किस असमंजस में है कांग्रेस पार्टी? - BBC News हिंदी

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बिहार की रग रग से वाकिफ 
बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों और चालीस लोकसभा सीटों के जातीय गणित, धार्मिक और सामाजिक समीकरण, हर उम्र, जाति वर्ग और क्षेत्र के मतदाता समूहों का राजनीतिक चरित्र और उनकी मतदान प्रवृत्ति का भी विस्तृत अध्ययन किया। साथ ही बिहार के शहरों गांवों कस्बों में हर व्यक्ति पीके के नाम और काम से परिचित है। उन्हें किसी को अपना परिचय देने की जरूरत नहीं है। इसलिए न बिहार उनके लिए अजनबी है और न वह बिहार के लिए नए हैं। इसका एक प्रयोग प्रशांत किशोर 2019-2020 के दौरान कर चुके हैं जब उन्होंने बिहार की राजनीति में उतरने के उद्देश्य से अपना एक पोर्टल लांच करके उसमें बिहार के युवाओं से पंजीकृत होने की अपील की और बताया जाता है कि उनका वह सियासी पोर्टल इतनी जल्दी बिहार के युवाओं में लोकप्रिय हुआ कि करीब 22 लाख नौजवानों ने उसमें अपना पंजीकरण कराते हुए पीके से जुड़ने की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन कोविड और ममता बनर्जी का चुनाव अभियान संभालने की वजह से पीके ने यह मुहिम बीच में ही छोड़ दी। इससे उनकी साख पर भी कुछ असर हुआ और अब जब उन्होंने फिर से बिहार के सियासी मैदान में उतरने की घोषणा की है तो उनसे जुड़ने वालों में उत्साह के साथ साथ यह सवाल भी है कि कहीं इस बार तो वह फिर अपनी मुहिम छोड़कर कांग्रेस या किसी और राजनीतिक दल के साथ तो नहीं चले जाएंगे। पीके ऐसे लोगों को आश्वस्त कर रहे हैं कि अब वह अपनी मुहिम को अंजाम देंगे और किसी दल से नहीं जुड़ेंगे।

पूरे बिहार के दौरे की योजना
बताया जाता है कि पीके की योजना पूरे बिहार का दौरा करने की है। वह हर जिले में जाकर लोगों से सीधे संवाद करेंगे। उनकी बात सुनेंगे समझेंगे और उनके मुद्दों की पहचान करेंगे।वह अपनी बात भी कहेंगे और लोगों से पूछेंगे कि क्या वह पिछले तीस साल से भी ज्यादा बिहार में जारी लालू बनाम नीतीश भाजपा की राजनीति से खुश और संतुष्ट हैं। अगर नहीं तो फिर उनके साथ जुड़कर एक नया राजनीतिक प्रयोग करने में सहयोग करें।

नए नारे गढ़ने में महारत
बतौर चुनाव रणनीतिकार पीके को जन आयोजन यानी जिसे इन दिनों सियासत में इवेंट कहा जाता है, में महारत हासिल है। नए और लुभावने नारे गढ़ने में भी उनका कोई जवाब नहीं। अपनी इस कला का प्रयोग पीके अब किसी और के लिए नहीं अपने लिए करेंगे।पीके अपनी इस मुहिम में उन तमाम लोगों को भी जोड़ेंगे जो अपने अपने दलों की नीतियों और कामकाज से दुखी हैं और राजनीति में कुछ नया करना चाहते हैं। ऐसे लोग सिर्फ बिहार में ही नहीं देश के किसी भी हिस्से में हो सकते हैं। इनके अलावा सामाजिक संगठनों और व्यवसायिक एवं वर्गीय संगठनों से जुड़े लोगों से भी वह संपर्क और संवाद करके उन्हें अपनी मुहिम में जोड़ेंगे।

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जनआंदोलन की शुरुआत कर सकते हैं पीके
जन सुराज के अपने अभियान में पीके जनहित के उन मुद्दों जिनका असर पूरे बिहार या राज्य के किसी बड़े क्षेत्र के लोगों को प्रभावित करता हो, पर जनमत तैयार करके जन आंदोलन की शुरुआत भी कर सकते हैं। वह यह सब काम बिना राजनीतिक दल बनाए अपने जन सुराज अभियान के तहत करेंगे। जब उन्हें इसमें आशातीत सफलता मिलती दिखाई देगी तब वह विधिवत अपने राजनीतिक दल के गठन की घोषणा कर सकते हैं।prashant kishor entry in congress: Time for flirtation is over Congress should tie the knot with Prashant Kishor: Why Congress should induct Prashant Kishor: Congress has no option but to include Prashant

कब तक चलेगा जन सुराज अभियान?
सवाल है कि प्रशांत किशोर अपने प्रयोग और नए राजनीतिक दल को क्या 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर करेंगे या उनका लक्ष्य लोकसभा चुनावों के बाद अक्टूबर 2025 में होने वाले बिहार विधानसभा के चुनावों में एक नए विकल्प के रूप में खुद को पेश करना होगा। पीके की कार्ययोजना में इसका कोई स्पष्ट जवाब अभी नहीं मिला है। उनके करीबी लोगों का कहना है कि यह इस पर निर्भर करेगा कि पीके के जन सुराज अभियान को बिहार में कैसा रिस्पांस मिलता है। अगर पीके को उनकी उम्मीदों के मुताबिक सफलता मिली तो वह 2024 के लोकसभा चुनावों में भी अपनी राजनीतिक उपस्थिति दर्ज कराने के लिए अपने दल के उम्मीदवार मैदान में उतार सकते हैं और उनको मिलने वाले वोट और जीत हार के नतीजों से उन्हें विधानसभा चुनावों की तैयारी के लिए भी एक बड़ा आधार मिलेगा, लेकिन अगर उनकी मुहिम को उतनी सफलता नहीं मिली जितनी उनको उम्मीद है तो लोकसभा चुनावों में उतरने की जल्दबाजी की बजाय वह ज्यादा बड़ी तैयारी से विधानसभा चुनावों में अपने दल को मैदान में उतारेंगे।

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