CAA यानी नागरिकता संशोधन कानून को लेकर सबसे ज्यादा विरोध असम में हुआ था। ऐसे में सत्तारूढ़ BJP के लिए यहां मुकाबला कठिन माना जा रहा है। इन 47 सीटों में से 42 सीटें ऊपरी असम के 11 जिलों की हैं और पांच सीटें सेंट्रल असम में आती हैं। इनमें हिंदू असमिया वोटर्स के साथ-साथ चाय जनजाति के मतदाताओं की भूमिका निर्णायक है, लेकिन इन सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या प्रभावित करने लायक नहीं हैं।
असम विधानसभा की 126 सीटों में करीब 40 सीटों पर चाय जनजाति के मतदाताओं का दबदबा है। ये चाय मजदूर खासकर अपनी दिहाड़ी मजदूरी को लेकर BJP से नाराज हैं। दरअसल असम सरकार ने अपने कैबिनेट की अंतिम बैठक में चाय मजदूरों की दिहाड़ी में 50 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से बढ़ाने का फैसला लिया था और इस संबंध में एक नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया था, लेकिन चाय कंपनियां सरकार के इस फैसले के खिलाफ अदालत चली गईं, जहां गुवाहाटी हाईकोर्ट ने फिलहाल दिहाड़ी बढ़ाने के सरकार के फैसले पर रोक लगा दी है।
पहले चरण में कम से कम आधी सीटों को चाय जनजाति के वोटर्स प्रभावित करेंगे। वहीं हिंदू असमिया मतदाताओं की बात करें तो CAA को लेकर आज भी कुछ लोग BJP सरकार से नाराज दिख रहें है। अब भी इन इलाकों में CAA को लेकर विरोध चल रहा है। असम के सबसे प्रभावी छात्र संगठन ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने CAA के विरोध में 20 मार्च को ऊपरी असम के धेमाजी से राज्यव्यापी एक बाइक रैली निकाली थी। CAA का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों ने केंद्र और राज्य की BJP सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और इस कानून को वापस लेने की मांग की।
सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म पर कई लोगों ने ‘मैं CAA का विरोध करता हूं’ जैसे नारे और पोस्ट भी डाले हुए हैं। इसी सेंटीमेंट को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में जो पांच गारंटी दी हैं, उनमें CAA को लागू नहीं किया जाएगा वाली बात सबसे ऊपर रखी है, लेकिन BJP का कहना है इस बार के विधानसभा चुनाव में CAA का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। अब लोग इस बात को समझ गए हैं कि BJP यहां के लोगों को कभी नुकसान नहीं पहुंचा सकती। यही वजह है कि BJP की चुनावी सभाओं में हजारों की संख्या में लोग शामिल हो रहे हैं।
इन 47 सीटों में मतदान के लिए महज चार दिन बचे हैं, लिहाजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर BJP के सभी स्टार प्रचारकों ने इन विधानसभा सीटों पर चुनावी प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार को बोकाखाट की एक चुनावी जनसभा में कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा था, ‘वो ख़ुद को सेक्युलर बताते हैं, लेकिन असम, पश्चिम बंगाल और केरल में संप्रदाय के आधार पर बने दलों के साथ दोस्ती करते हैं। सत्ता के सामने इनको कुछ नहीं दिखता।’
दरअसल प्रधानमंत्री मोदी असम में इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और लोकसभा सांसद बदरुद्दीन अजमल की पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के बीच हुए गठबंधन पर निशाना साध रहे थे। असम में चुनावी प्रचार में उतरे BJP के सभी बड़े नेता बदरुद्दीन को सांप्रदायिक बता रहे हैं।
बदरुद्दीन का कहना है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के बाद BJP को सत्ता गंवाने का डर सता रहा है और इसलिए PM मोदी और उनके नेता हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण करने के लिए उन पर निशाना साध रहे हैं। हालांकि बदरुद्दीन ने सार्वजनिक तौर पर यह कहा है कि अगर प्रदेश में महागठबंधन को बहुमत मिलता है तो मुख्यमंत्री कांग्रेस पार्टी का ही होगा। इस बार असम में चुनावी मुकाबला राजनीतिक पार्टियों में बने गठबंधनों के बीच है।
BJP ने अपने पुराने सहयोगी क्षेत्रीय पार्टी असम गण परिषद (AJP) और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (UPPL) के साथ गठबंधन किया है। राज्य की कुल 126 सीटों में से BJP ने 92 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं और उसकी सहयोगी पार्टी AJP 26 सीटों पर और UPPL 8 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। वहीं कांग्रेस के नेतृत्व वाले महागठबंधन में AIUDF, CPI, CPM,CPI (ML) आंचलिक गण मोर्चा और BPF शामिल हैं।CAA के विरोध से बनी राज्य की दो नई क्षेत्रीय पार्टियां असम जातीय परिषद (AJP) और रायजोर दोल भी साथ मिलकर चुनाव लड़ रही हैं। ऐसे में पहले चरण की 42 सीटों पर BJP के लिए मुकाबला कांटे का बन गया है।
इस बार के चुनाव में BJP के प्रदर्शन को लेकर वरिष्ठ पत्रकार अनिर्बान रॉय कहते हैं, ‘2016 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार BJP के लिए मुकाबला थोड़ा कठिन हो गया है। असल में कांग्रेस-AIUDF के साथ आने से BHP की चुनौतियां बढ़ गईं हैं। पिछले चुनाव में जो मुसलमान वोट कांग्रेस-AIUDF के उम्मीदवारों में बंट गए थे, अब एक साथ आने से इसका सीधा फायदा मिलेगा।’
रॉय के अनुसार राज्य की करीब 32 सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं के वोट निर्णायक होते हैं, लिहाजा बदरुद्दीन मुसलमान वोटों का ध्रुवीकरण करने में लगे हैं। यही वजह है कि BJP अपनी सरकार के पिछले पांच साल के काम गिनवाने की बजाए चुनावी सभाओं में हिंदुत्व, मुगलों का शासन आ जाएगा जैसी बातें कर रहीं है ताकि हिंदू वोट एक साथ आ जाए।
इस बार बराक वैली के मतदाता भी CAA को लेकर BJP से नाराज हैं। दरअसल बराक वैली में विधानसभा की 15 सीटें है और यह राज्य का एकमात्र इलाका है जहां के लोग CAA का समर्थन कर रहे थे, लेकिन CAA को पास हुए डेढ़ साल हो चुका है, पर अभी तक नियम ही नहीं बनाए गए है लिहाजा लोग अनिश्चितता में हैं।
BJP के कद्दावर नेता हिमंत बिस्व सरमा का कहना है कि असम के लोग BJP को शांति और संस्कृति के लिए वोट देंगे। उन्होंने कहा, ‘हमें राज्य के लोगों के लिए काम करने के लिए केवल तीन साल मिले। एक साल CAA के विरोध के कारण खराब हुआ, दूसरा साल कोविड -19 के कारण ठप पड़ गया। फिर भी BJP ने तीन साल में बहुत विकास किया है, जिसे कांग्रेस 40 सालों में करने में नाकाम रही।’
असम में कांग्रेस ने जो चुनावी घोषणा पत्र जारी किया है, उसमें CAA को खत्म करने समेत पांच गारंटी दी गई है। इनमें CAA को राज्य में लागू नहीं करने, चाय बागानों के मजदूरों की दिहाड़ी मजदूरी 365 रु. करने, पांच लाख सरकारी नौकरियां और निजी क्षेत्र में 25 लाख रोजगारों का सृजन, सबको 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली और गृहिणी महिलाओं को 2000 रुपए पेंशन देने की बात शामिल है।हालांकि राजनीति के जानकारों का यह मानना है कि पहले चरण के तहत ऊपरी असम की सीटों पर मतदाताओं को दो सबसे लंबे नदी पुलों ने प्रभावित किया है, इसके अलावा चाय जनजातियों के लिए भी BJP ने मुफ्त बिजली कनेक्शन, गैस कनेक्शन, टॉयलेट से लेकर कई योजनाएं शुरू की हैं जो एक महत्वपूर्ण आबादी को प्रभावित करती हैं।