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गुरु तेग बहादुर की जयंती पर लाल किले से होगा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन

प्रधानमंत्री अब तक स्वतंत्रता दिवस के मौके पर दिल्ली के लाल किले (Red Fort Delhi) से देश को संबोधित करते आए हैं. लेकिन गुरुवार, 21 अप्रैल की शाम को पहली बार इस परंपरा में अहम मोड़ आ रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस दिन गुरु तेगबहादुर (सिख पंथ के 9वें गुरु) जयंती पर लाल किले से अपना संबोधन देने वाले हैं. ऐसे में, किसी के मन में भी सवाल हो सकते हैं. जैसे- आखिर ऐसा क्या हुआ है कि प्रधानमंत्री ने लाल किले के उद्बोधन से जुड़ी परंपरा में नया सिलसिला जोड़ा? और इसकी पृष्ठभूमि (Background) में क्या-कुछ हो सकता है?, आदि. जानते हैं इनके जवाब बस, 4-पहलू (The 4-Aspects) में.Guru Tegh Bahadur Jayanti 2022 : Guru Tegh Bahadur Prakash Parv Celebration  On Lal Quila | Guru Tegh Bahadur Jayanti गुरु तेग बहादुर प्रकाश पर्व 2022, लाल  किले से ऐसे मोदी मानाएंगे

प्रधानमंत्री क्या करेंगे लाल किले पर होने वाले समारोह में
प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार, लाल किले पर गुरु तेग बहादुर से जुड़े कार्यक्रम का आयोजन दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (DSGPC) के सहयोग से हो रहा है. भारत सरकार कार्यक्रम में सहभागी है. दरअसल, 2021 में गुरु तेगबहादुर  के जन्म (21 अप्रैल 1621 में) को 400 साल पूरे हुए हैं. इसी मौके से जुड़े कार्यक्रमों का सिलसिला गुरुवार को होने वाले कार्यक्रम तक आ पहुंचा है. लाल किले पर यह आयोजन रात करीब 9.15 पर होगा. इसमें प्रधानमंत्री गुरु तेग बहादुर की याद में एक सिक्का और डाक टिकट जारी करेंगे. साथ ही उपस्थित जनसमूह को संबोधित करेंगे. हालांकि यह संबोधन स्वतंत्रता दिवस की तरह लाल किले की प्राचीर से नहीं होगा. लेकिन प्रसारित देशभर में किया जाएगा.  गुरु तेग बहादुर की 400 वीं जयंती पर पीएम मोदी की अनोखी पहल, आज रात जनता से  होंगे रूबरू – Dainik Bhaskar | Uttar Pradesh News, UP Dainikbhaskar

कार्यक्रम के लिए लाल किले के ही चुनाव की वजह क्या

गुरु तेग बहादुर की जयंती से जुड़े समारोह के लिए लाल किले का चुनाव करने के पीछे खास वजहें हैं. दरअसल, यह लाल किला ही वह जगह है, जहां से हिंदुस्तान के तत्कालीन मुगल शासक औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर का सिर धड़ से उतार देने का हुक्म सुनाया था. उनका गुनाह क्या था? वे मुगलों के अमानवीय अत्याचारों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व करते थे. तिस पर, उन्हें जब गिरफ्तार किया गया और इस्लाम कुबूल कर लेने की शर्त में जान बख्श देने का विकल्प दिया गया, तो उन्होंने वह भी ठुकरा दिया. गुस्साए बादशाह ने उन्हीं के सामने उनके साथी भाई मती दास को टुकड़ों में कटवा दिया. दूसरे साथी भाई दयाल दास को उबलते पानी के कड़ाहे में फिंकवा दिया. जबकि तीसरे साथी भाई सती दास को जिंदा जला दिया गया. इतने पर भी जब गुरु तेगबहादुर ने औरंगजेब की बात नहीं मानी तो चांदनी चौक पर सरेआम उनका सिर धड़ से अलग करवा दिया. वहां आजकल गुरुद्वारा शीशगंज साहिब  स्थापित है. जानकारों की मानें तो कार्यक्रम के लिए लालकिले के चुनाव की एक और वजह हो सकती है, पिछले साल के एक मामले से जुड़ी हुई. बीते साल 26 जनवरी को लाल किला ही वह जगह थी, जहां कुछ उत्पाती सिख युवकों ने उपद्रव और हिंसा की थी. इससे सिख समुदाय की छवि और प्रतिष्ठा को पूरी दुनिया में धक्का लगा था. ऐसे में, गुरु तेगबहादुर से जुड़ा यह कार्यक्रम उस दाग को साफ करने और प्रतिष्ठा की फिर स्थापना का सांकेतिक-माध्यम बन सकता है.24 नवंबर : गुरु तेग बहादुर कौन थे, जानिए जीवन गाथा

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कार्यक्रम की पृष्ठभूमि में क्या कुछ और भी हो सकता है?

बिलकुल संभव है. राजनीति में संकेतों के माध्यम से संदेश देने की अपनी अलग अहमियत हुआ करती है. और गुरु तेगबहादुर को सिखों के ऐसे गुरु के रूप में भी जाना जाता है कि जिन्होंने अपने दौर में खासकर, कश्मीर में भी हिंदुओं के खिलाफ मुगलिया अत्याचार का जवाब दिया था. मुकाबला किया था. बताते हैं कि जब अगस्त 1675 में उन्हें रोपड़, पंजाब में मुगल सैनिकों ने गिरफ्तार किया, तब वे कश्मीरी पंडितों पर मुगलिया अत्याचारों का मुकाबला करने के अभियान पर ही निकले थे… अब यहां से गौर कीजिए. जम्मू-कश्मीर से 5 अगस्त 2019 को धारा-370 निष्क्रिय किए जाने के बाद से वहां चुनाव कराना केंद्र सरकार के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है. राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जम्मू-कश्मीर में ‘सब ठीक है’ का संदेश देने के लिए चुनाव कराना, वहां चुनी हुई सरकार स्थापित करना जरूरी है. और जम्मू-कश्मीर के सिखों व कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandit) की बड़ी आबादी सीधे तौर पर गुरु तेगबहादुर से जुड़ती है. उनसे जुड़े घटनाक्रमों से प्रभावित होती है.

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