पटना. बिहार में एनडीए गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व सीमांचल के रास्ते बिहार को साधने की कोशिश में है. इसके लिए देश के गृह मंत्री अमित शाह दो दिवसीय दौरे पर बिहार आ रहे हैं. यहां वो 23 सिंतंबर को पूर्णिया और 24 सितंबर को किशनगंज में जनसभा को संबोधित करेंगे. ये वही इलाका है जिसको लेकर बीजेपी के नेता अपने विरोधियों पर हमेशा तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाते रहे हैं, लेकिन अब इसी रास्ते बीजेपी भी बिहार को साधने की तैयारी कर रही है.
दरअसल, वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में किशनगंज को छोड़ दें तो सीमांचल की ज्यादातर सीटों पर एनडीए का कब्जा रहा है. इसमें पूर्णिया, कटिहार और अररिया में एनडीए की जीत हुई थी; जबकि किशनगंज में कांग्रेस जीती थी. लेकिन, भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता व पूर्व मंत्री शहानवाज हुसैन कहते हैं कि उद्देश्य यह है कि अब बीजेपी को अपने दम पर सीमांचल में साबित करना है कि उसकी भी ताकत है.
बता दें कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार में एनडीए को 40 में 39 सीटों पर सफलता मिली थी. इस बार उसी इतिहास को दोहराने के लिए बीजेपी तैयारी कर रही है. सीमांचल के किशनगंज में सार्वाधिक 67 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम वोटर हैं. कटिहार में 38 प्रतिशत, अररिया में 32 और पूर्णिया में 30 प्रतिशत वोटर मुस्लिम हैं. इसको देखते हुए अमित शाह ने सीमांचल को सबसे पहले जनसभा के लिए चुना है ताकि आम लोगों के साथ अल्पसंख्यकों को केंद्र सरकार के विकास के कार्यों की जानकारी दी जा सके.
वही, दूसरी ओर विपक्ष यह मानता है अमित शाह ने इस इलाके को इसलिए चुना है ताकि समाज को बांटा जा सके. दरअसल, सीमांचल इलाका तस्करी को लेकर हमेशा बदनाम रहा है. इन क्षेत्रों में बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों को लेकर भी बार-बार सवाल उठते रहे हैं. हाल के दिनों में आईएसआई, पीएफआई आदि संगठनों की गतिविधियां सीमांचल के इलाके में दिखती रही हैं.