चंडीगढ़. आगामी दिसंबर में होने वाले हिमाचल और गुजरात विधानसभा के चुनाव को देखते हुए पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार अपने चुनावी वादों को पूरा करना चाहती है, ताकि उन्हें पूरा करने के बाद AAP दोनों राज्यों में उदाहरण के तौर पर जनता के सामने अपनी बात रख सके. इसी कड़ी में भगवंत मान सरकार ने अनुबंध पर काम कर रहे 35,000 कर्मचारियों को समायोजित करके नियमित करने की नीति तैयार करने का फैसला लिया है. पार्टी ऐसे समय में यह कदम उठाने जा रही ,है जब इस तरह के कानून बनने के बाद उन्हें राज्यपाल से सहमति नहीं मिल पाई है और कई बार ऐसे कानूनों की फाइलें सरकार को वापस भेजी गई हैं.
यदि कर्मचारियों को नियमित करने की इस नीति को कानूनी विशेषज्ञों द्वारा अनुमोदित किया जाता है, तो सरकार इसे अगली कैबिनेट बैठक में पेश करेगी. कैबिनेट की मंजूरी के बाद नीति को अधिसूचित किया जाएगा और 10 साल की सेवा पूरी करने वाले संविदा कर्मचारियों को तुरंत नियमित तौर पर समायोजित किया जाएगा. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में मामले से जुड़े एक अधिकारी के हवाले से कहा गया है कि ‘हम कानूनी विशेषज्ञों से मंजूरी मिलते ही नीति को अधिसूचित करेंगे और कैबिनेट इसे मंजूरी देगी.’ मुख्यमंत्री भगवंत मान अनुबंध कर्मचारियों से उन्हें समय देने का आग्रह कर रहे हैं, क्योंकि उनकी मंशा उन्हें नियमित करने की है.
केजरीवाल ने अधिकारियों को लगाई फटकार
इससे पहले, मान सरकार बजट सत्र में एक विधेयक लाने पर विचार कर रही थी, क्योंकि उसने चुनाव पूर्व अपने प्रमुख वादे को पूरा करने के लिए पहले ही 450 करोड़ रुपये अलग कर दिए थे. हालांकि सरकार एक मसौदा कानून तैयार नहीं कर सकी जो कानूनी जांच का सामना कर सके. बताया जा रहा है कि सीएम मान और आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कुछ वरिष्ठ अधिकारियों को फटकार भी लगाई थी, जिन्हें प्रस्तावित कानून तैयार करने का काम सौंपा गया था. बाद में सीएम ने अपने वादे को पूरा करने के लिए वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा की अध्यक्षता में एक कैबिनेट उप-समिति की घोषणा की थी.
लेकिन समस्या ये है कि यदि सरकार इस तरह का कानून बनाती है तो यह राज्यपाल की ओर से कर्नाटक राज्य बनाम उमा देवी के केस का हवाला देते हुए वापस कर दिया जाएगा. कर्नाटक राज्य बनाम उमा देवी के केस में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि सरकारी विभागों में बिना किसी स्वीकृत पद के बैकडोर से, अस्थायी, तदर्थ और वर्कचार्ज के रूप में नियुक्ति गैरकानूनी है. कोर्ट ने कहा था कि पद के बिना पहले तो काम पर लगा लिया, बाद में कुछ वर्षों बाद वह व्यक्ति अनुभव के आधार पर नियमित होने की मांग करता है, यह कानून की नजर में गलत है. इस प्रथा से नियमित पदों पर आने या नियुक्त होने वालों का हित प्रभावित होता है. इस केस से सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2006 से बैक डोर एंट्री को समाप्त कर दिया था. अदालत ने सरकारों को ‘विधिवत स्वीकृत रिक्त पदों पर जिन कर्मचारियों ने 10 साल या उससे अधिक समय तक काम करना जारी रखा है, उनको रेगुलर करने के लिए नीति तैयार खातिर एक बार की छूट दी थी.’
CM मान ने किया था वादा
दरअसल CM मान ने 22 मार्च को ग्रुप सी और डी के 35,000 संविदा कर्मचारियों की सेवाओं को नियमित करने की घोषणा की थी. उनके पूर्ववर्ती चरणजीत सिंह चन्नी ने भी अनुबंध, तदर्थ या अस्थायी आधार पर काम करने वाले लगभग 36,000 कर्मचारियों को नियमित करने का फैसला किया था. चन्नी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने 11 नवंबर, 2021 को पंजाब प्रोटेक्शन एंड रेगुलराइजेशन ऑफ कॉन्ट्रेक्ट एंप्लॉयीज बिल पास किया था. हालांकि, राज्यपाल ने छह प्रश्न उठाते हुए विधेयक को वापस कर दिया, जिसमें यह भी शामिल था कि विधेयक जांच का सामना कैसे कर सकता है.