भाजपा से पाला बदलकर साइकिल पर बैठने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य को समाजवादी पार्टी विधान परिषद भेजेगी. सपा के रणनीतिकारों का मानना है कि विधान परिषद में पार्टी की बात रखने के लिए एक दमदार आवाज होनी चाहिए जो सरकार को घेर सके. ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्य एक अच्छे वक्ता हैं और मजबूती से पार्टी का पक्ष सदन में रख सकते हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य को विधान परिषद भेज कर अखिलेश यादव सहयोगियों को भी यह संदेश भी देना चाहते हैं कि साथ आए लोगों का सपा पूरा ध्यान रखती है और सम्मान देती है.
सपा को मिला मौर्य समाज का काफी वोट
स्वामी प्रसाद मौर्य इस बार पडरौना सीट छोड़कर फाजिल नगर सीट से चुनाव लड़े थे, जहां से उनको हार का सामना करना पड़ा. सपा को लगता है इस बार के विधानसभा चुनाव में मौर्य समाज का काफी वोट पार्टी को मिला है. केशव प्रसाद मौर्य की सिराथू से हार का कारण भी इस वोटबैंक का सपा में शिफ्ट होना बताया जा रहा है. कई सीटों पर तो मौर्य वोट सपा को भाजपा के मुकाबले ज्यादा संख्या में मिले हैं. इसलिए वोटबैंक को अपनी तरफ रखने के लिए सपा सुप्रीमो यह दांव खेल रहे हैं, जिससे 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का मुकाबला समाजवादी पार्टी कर सके.
इसके अलावा अखिलेश बसपा से सपा में आने वाले नेताओं को जोड़े रखने के लिए स्वामी प्रसाद को ‘ब्रिज’ बनाए रखना चाहते हैं. विधानसभा चुनाव के समय स्वामी प्रसाद के नजदीकी दद्दू प्रसाद, अमरनाथ मौर्य सहित कई नेताओं को पार्टी ने टिकट दिया था, लेकिन नामांकन के बाद उन्हें लड़ने के लिए मना कर दिया गया था, जिसको लेकर स्वामी प्रसाद मौर्य काफी नाराज थे. ऐसे में पार्टी के भीतर से उठ रहे बगावती सुरों को और बढ़ने से रोकने के लिए स्वामी प्रसाद को सपा विधान परिषद भेज रही है.
राजपाल कश्यप के नाम पर दोबारा विचार
सपा अति पिछड़ा वर्ग से डॉक्टर राजपाल कश्यप को भी दोबारा विधान परिषद भेजने पर विचार कर रही है, क्योंकि भाजपा ने इस बिरादरी के एक नेता को राज्यसभा और 3 नेताओं को विधान परिषद भेजा है. करहल सीट अखिलेश के लिए छोड़ने वाले सोबरन सिंह यादव का भी विधान परिषद जाना लगभग तय है. सपा एक और सीट पर किसी ब्राह्मण चेहरे को भेजना चाहती है, ताकि चुनाव के वक्त परशुराम मंदिर का जो मुद्दा उठाया था वह महज चुनावी मुद्दा ना लगे. हालांकि ओमप्रकाश राजभर अपने बेटे अरविंद राजभर के लिए अखिलेश यादव पर दबाव बना रहे हैं, तो कांग्रेस छोड़कर आए इमरान मसूद भी एमएलसी बनने की ख्वाहिश पाले हुए हैं.
अखिलेश पर सहयोगी दल बना रहे हैं दबाव
रालोद प्रमुख जयंत चौधरी और कपिल सिब्बल को सपा के समर्थन से राज्यसभा भेजने के बाद से ही अखिलेश यादव पर सहयोगी दलों और दूसरे नेताओं का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है. दूसरी तरफ अखिलेश के अपने करीबी नेता संजय लाठर, सुनील सिंह साजन, उदयवीर सिंह भी हैं जो एमएलसी बनने के लिए कतार में खड़े हैं. उत्तर प्रदेश में राज्यसभा चुनावों के बाद विधान परिषद चुनाव भी निर्विरोध होने के आसार दिखने लगे हैं. यूपी विधान परिषद की 13 सीटें 6 जुलाई को खाली होने वाली हैं. इनमें सपा के 6, भाजपा और बसपा के 3-3 और कांग्रेस के 1 सदस्य का कार्यकाल पूरा हो रहा है.
कांग्रेस मुक्त होगी उत्तर प्रदेश विधान परिषद
विधायकों की संख्या के आधार पर इस बार 9 सीटें भाजपा और 4 सीटें सपा के खाते में जाएंगी. बसपा और कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिलती दिख रही है. विधान परिषद के लिए 9 जून को नामांकन होंगे, 10 जून को नामांकन पत्रों की जांच होगी, 13 जून को नामांकन वापसी की आखिरी तारीख होगी. 20 जून को मतदान होगा. जीतने के लिए हर प्रत्याशी को 31 विधायकों के वोट की दरकार होगी. भाजपा गठबंधन के पास 273 और सपा गठबंधन के पास 125 विधायक हैं. ऐसे में भाजपा के 9 और सपा के 4 सदस्य आराम से जीत जाएंगे. वहीं, 113 साल में पहली बार ऐसा होगा जब देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस का एक भी प्रतिनिधि यूपी विधान परिषद में नहीं होगा.