बक्सर। बिहार में होली की शुरुआत यूं तो वसंत पंचमी से ही हो जाती है। वसंत पंचमी से ही लोग एक-दूसरे को रंग-अबीर और गुलाल लगाना शुरू कर देते हैं। फाल्गुन की रंगभरी एकादशी के साथ होली के गीत परवान चढ़ते हैं। होलिका दहन की रात इस उत्साह में और उफान आता है। होलिका दहन हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक विधान है। होलिका दहन के लिए उचित मुहूर्त और उचित प्रक्रिया का पालन बेहद जरूरी है। मिनी काशी के नाम से मशहूर शहर बक्सर स्थित पातालेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी रामेश्वर नाथ पंडित ने इस बारे में विस्तार से जानकारी दी है।
भद्रा काल में नहीं करना चाहिए होलिका दहन
पंडित ने बताया कि धर्म शास्त्रों में इस बात का उल्लेख किया गया है कि रात्रौ भद्रा वसाने तू होलिका दीप्यते तदा। यानि की होलिका दहन तीन शास्त्रीय नियमों के अनुसार किया जाना चाहिए, जिसमें फाल्गुन शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि हो तथा प्रदोष रात का समय हो एवं भद्रा बीत चुकी हो। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार भद्रा काल में मंगल उत्सव की शुरुआत या समाप्ति अशुभ मानी जाती है और पंचांग शुद्धि में भद्रा का खास महत्व है और यह शुभ कार्यों में बाधक है
गुरुवार की रात 12.57 से 2.32 बजे के बीच करें होलिका दहन
निर्धारित तीनों नियमों के अनुसार फाल्गुन कृष्णपक्ष की पूर्णिमा तिथि आज गुरुवार को दिन में 01 बजकर 01 मिनट पर आ रही है और यह अगले दिन शुक्रवार को दिन में 12:51 बजे तक रह रही है। भद्रा भी पूर्णिमा तिथि के आगमन के साथ ही लग जा रही है, जो गुरुवार की मध्यरात्रि में 12:56 बजे तक है। अत: होलिका दहन स्थिर (धनु) लग्न मुहूर्त में गुरुवार की रात्रि 12:57 बजे से 2:32 बजे के मध्य समयानुसार कर लेना उत्तम और विशेष फलदायक रहेगा।
मंत्रोच्चार के साथ करना चाहिए होलिका दहन
इस दौरान धर्मावलंबियों को देश भेद को ध्यान में रखते हुए ढूंढा राक्षसी का पूजन करते हुए ओम होलिकायै नम: मंत्रोच्चारण के साथ विधिसम्मत होलिका दहन करना चाहिए। साथ ही अपने यहां चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि में रंगोत्सव (रंगो की होली) मानने की परंपरा रही है। सो उदया तिथि में प्रतिपदा का मान शनिवार को होने से रंगो की होली 19 मार्च को खेली जाएगी। शहर के प्रमुख व्यवसायियों ने भी स्टेशन मार्ग के आदर्श गौशाला समीप गुरुवार की रात मध्यरात्रि 1:00 बजे से होलिका दहन कार्यक्रम करने का निर्णय लिया है।