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पंजाब की सियासत में बड़ा सवाल, अध्‍यक्ष पद से इस्‍तीफे के बाद क्‍या सिद्धू के सियासी करियर पर लगेगा ‘विराम’

चंडीगढ़। Navjot Singh Sidhu Resings: नवजाेत सिंह सिद्धू के पंजाब कांग्रेस अध्‍यक्ष पद से इस्‍तीफे के बाद सियासी गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म है। सवाल उठ रहे है कि क्‍या इसके बाद नवजोत सिद्धू के राजनीतिक करियर पर ‘विराम’ लग जाएगा। उनके अगले सियासी विकल्‍पों को लेकर भी चर्चाएं व कयासबाजी का दौर शुरू हो गया है।

कैप्टन अमरिंदर, प्रकाश सिंह बादल, राजिंदर कौर भट्ठल, जाखड़ के बाद अब सिद्धू भी इसमें शामिल

दरअसल, पंजाब में 2022 के विधान सभा चुनाव में कई राजनीतिक इतिहास रचे गए। 11 बार के विधायक व पांच बार पंजाब के मुख्यमंत्री रहे प्रकाश सिंह बादल अपने राजनीतिक कैरियर के अंत में चुनाव हार गए।इसी प्रकार लगातार चार बार विधान सभा और एक लोक सभा चुनाव जीतने वाले व दो बार मुख्यमंत्री रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी अपने अंतिम विधान सभा चुनाव में हार का समाना करना पड़ा।

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कमोवेश यही स्थिति पूर्व मुख्यमंत्री राजिंदर कौर भट्ठल की भी रही। ये सभी नेता इस बार संभवतः अपने सियासी करियर का अंतिम चुनाव लड़ रहे थे। इसके साथ ही चुनाव नहीं लड़ने वाले कांग्रेस के पूर्व प्रदेश प्रधान सुनील जाखड़ ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ही ले लिया है।

अब सवाल उठ रहे हैं कि क्‍या अब इस लिस्ट में नवजोत सिंह सिद्धू का नाम भी जुड़ गया है। सेलीब्रिटी छवि से निकल कर पहली बार सक्रिय राजनेता के रूप में चुनाव लड़ने वाले नवजोत सिंह सिद्धू को न सिर्फ विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा बल्कि अब उनकी प्रदेश कांग्रेस प्रधान की कुर्सी भी चली गई

राहुल गांधी को ‘पप्पू’ और कांग्रेस को ‘मुन्नी से भी ज्यादा बदनाम’ बताने वाले सिद्धू के करियर में कांग्रेस में शामिल होने के बाद उछाल आया था, लेकिन कैप्‍टन अमरिंदर सिंह से विवाद के बाद वह उन्‍होंने कैबिनेट से इस्‍तीफा दे दिया तो उनके सियासी करियर में  ठहराव आ गया। वह एक तरह से ‘सियासी वनवास’ में चले गए। लेकिन इसके बाद वह पंजाब कांग्रेस के अध्‍यक्ष बनाए गए तो पूरे ‘फार्म’ में आ गए और कैप्‍टन के खिलाफ बिगुल बजा दिया। कैप्‍टन को सीएम पद और कांग्रेस दोनों छोड़नी पड़ी, लेकिन सिद्धू के हाथ सीएम पद नहीं लगा।

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कांग्रेस की विधानसभा 2022 में हार में हुई सिद्धू पार्टी के कई नेताओं ने उनको इसके लिए ‘विलेन’ बनाने की कोशिश की। सिद्धू पर आरोप लगे कि वह न तो पार्टी के नेताओं को एक साथ लेकर चल पाए और  अपने अहम के चक्कर में उन्होंने कांग्रेस की नइया भी डुबो दिया। उनकी बयानबाजी से कांग्रेस को नुकसान पहुंचा।

कांग्रेस की हार में भले ही सिद्धू एक मात्र कारण न हो लेकिन सिद्धू के आक्रामक तेवर चुनाव के पहले से ही इस बात के संकेत दे रहे थे कि पंजाब में कांग्रेस का बुरा समय शुरू हो गया है। सोनिया गांधी के मांगने के बाद अपने पद से इस्तीफा देने वाले सिद्धू अब कांग्रेस के एक आम कार्यकर्ता बन गए हैं। इससे सिद्धू के सियासी करियर में ठहराव आता दिख रहा है।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सिद्धू के लिए दूसरी किसी पार्टी में जाने का विकल्‍प न के बराबर है। वह भारतीय जनता पार्टी को छोड़ने के बाद आम आदमी पार्टी में जाते-जाते कांग्रेस में आए थे। शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल से उनका हमेशा ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है।

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कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ वह पहले ही दो-दो हाथ कर चुके है। ऐसे में सिद्धू के पास अब बेहद सीमित विकल्प रह गए है। या तो सिद्धू चुप्पी साध कर कांग्रेस की रौ में बहते हुए समय का इंतजार करें या फिर राजनीति से नाता तोड़ कर वह टेलीविजन शो से रिश्ता जोड़ लें। सिद्धू को जानने वालों की मानें तो उनके व्यक्तित्व में धैर्य कम है। वह कांग्रेस में रहते हुए बिगड़े रिश्तों को सुधार कर समय का इंतजार करेंगे, इसकी संभावना कम ही लगती है।

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