जस्टिस जेडए हक और जस्टिस एबी बोरकर की पीठ ने कहा, व्हाट्सएप ग्रुप का एडमिन सिर्फ सदस्यों को ग्रुप में जोड़ने और हटाने तक ही सीमित है और उसके पास ग्रुप में पोस्ट होने वाली सामग्री को सेंसर या विनियमित करने की शक्ति नहीं है।
कोर्ट ने यह फैसला किशोर तरोने की याचिका पर सुनाया, जो एक व्हाट्सएप ग्रुप का एडमिन था। 2016 में गोंदिया जिले में किशोर के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं व आईटी एक्ट की धाराओं में केस दर्ज किया गया था।अभियोजन पक्ष के मुताबिक, उनके व्हाट्सएप ग्रुप के एक सदस्य ने ग्रुप की महिला के खिलाफ अभद्र व अश्लील भाषा का प्रयोग किया था और किशोर ने उस सदस्य के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की।
आरोप था कि ग्रुप एडमिन होने के बावजूद किशोर ने न तो उस सदस्य को ग्रुप से हटाया और न ही उसे माफी मांगने को कहा। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि यहां मामला यह है कि क्या अन्य सदस्यों की पोस्ट के लिए व्हाट्सग्रुप एडमिन को आपराधिक तौर पर जिम्मेदार ठहराया जा सकता है या नहीं।
कोर्ट ने कहा, अगर कोई व्यक्ति आपत्तिजनक पोस्ट करता है, जिस पर कानूनन कार्रवाई की जा सकती है तो उस व्यक्ति को ही जिम्मेदार माना जाएगा। ग्रुप एडमिन को तब तक जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता जब तक यह साबित न हो कि आपत्तिजनक पोस्ट पर उनका इरादा एक ही था या यह पहले से ही तय था।
इसके साथ ही कोर्ट ने किशोर के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने का आदेश दिया। पीठ ने यह आदेश पिछले महीने सुनाया था, जिसकी कॉपी 22 अप्रैल को उपलब्ध हुई।
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