जय श्री राम का नारा अभी टॉप पर है। गृहमंत्री अमित शाह, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी सहित तमाम नेता बखूबी इस नारे का इस्तेमाल अपनी रैलियों में कर रहे हैं। अब तक योगी ने बंगाल में चार सभाएं की हैं। इस दौरान उन्होंने 65 बार राम का नाम लिया है। 2 मार्च को मालदा की सभा में उन्होंने 15 बार, 16 मार्च को पुरूलिया में 9 बार, बांकुरा में 35 बार और पश्चिम मेदिनीपुर में 29 बार राम का नाम लिया।
दिलचस्प बात ये भी है कि हर सभा में उनकी स्क्रिप्ट बहुत हद तक एक जैसी ही रही है। राम नाम के आगे गरीबी और विकास के मुद्दे पीछे छूट गए। बांकुरा की सभा के दौरान योगी ने कहा कि कोई राम को हमारे जीवन से अलग नहीं कर सकता है। जो भी राम से हमें अलग करने का प्रयास करेगा, उसे सत्ता से वंचित होना पड़ेगा। बंगाल की जनता ने अब तय कर लिया है कि राम का विरोध करने वाली ममता दीदी को वो बर्दाश्त नहीं करेगी।
इस साल अमित शाह तीन बार बंगाल दौरे पर गए हैं। इस दौरान उन्होंने 6 सभाएं की है। जिसमें से सिर्फ दो रैलियों में ही उन्होंने 26 बार मंच से जय श्रीराम का नाम लिया है। 18 फरवरी को गंगासागर की सभा के दौरान 10 बार और 11 फरवरी को कूच बिहार में 16 बार राम का नाम लिया। गंगा सागर की सभा के दौरान उन्होंने कहा था कि जय श्रीराम का नारा परिवर्तन का प्रतीक है। हम इस नारे के साथ पश्चिम बंगाल में घर-घर जाने वाले हैं। वहीं केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी अपनी पहली ही सभा में एक दर्जन से ज्यादा बार राम का नाम ले चुकी हैं।
पीएम मोदी भले ही जय श्रीराम को लेकर बाकी नेताओं की तरह आक्रामक नहीं दिख रहे हैं, लेकिन राम का जिक्र करने और उसे बंगाल से जोड़ने से वे नहीं चूक रहे हैं। गुरुवार को पुरूलिया की सभा में उन्होंने राम का जिक्र किया था। इससे पहले फरवरी में भी एक सभा के दौरान मोदी ने कहा था कि TMC ने एक के बाद एक कई सारे फाउल किए हैं। बंगाल की जनता ये देख रही है और जल्द ही उन्हें राम कार्ड दिखाएगी। दरअसल राम कार्ड जय श्रीराम ही है।
पिछले दिनों इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दायर की गई थी। इसमें गृहमंत्री अमित शाह और शुभेंदु अधिकारी के खिलाफ FIR दर्ज करने के आदेश देने और नारे के इस्तेमाल पर रोक लगाने की मांग की गई थी। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था।
दुर्गा के राज में राम कार्ड की जरूरत क्यों पड़ रही है?
सीनियर जर्नलिस्ट शिखा मुखर्जी कहती हैं कि भाजपा ने दुर्गा के नाम पर भी अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की है। पिछले कुछ सालों में भाजपा ने पंडालों का भी आयोजन किया है, लेकिन वो भीड़ जुटाने में कामयाब नहीं हो पाई। इसलिए अब उसे जय श्रीराम के सहारे की जरूरत पड़ रही है। ताकि हार्ड कोर हिंदू वोटरों को अपने पक्ष में कर सके। दूसरी बात ये भी है कि बंगाल में ममता बनर्जी की छवि अभी भी बहुत मजबूत है। भाजपा कोशिश करके भी एंटी इनकंबेंसी फैक्टर क्रिएट नहीं कर पा रही है।
वरिष्ठ पत्रकार सुभाशीष मोइत्रा कहते हैं कि बंगाल में राम कार्ड बहुत काम नहीं आने वाला है, क्योंकि यहां राम उतने लोकप्रिय नहीं है जितनी दुर्गा हैं। यहां के लोग राम के नाम पर बटेंगे या वोट करेंगे, इसकी गुंजाइश भी कम ही है। भाजपा और TMC दोनों इस बात को समझते भी हैं। फिर भी वे इसे चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश इसलिए कर रहे हैं ताकि अगर ध्रुवीकरण हो तो लेफ्ट और कांग्रेस को स्पेस नहीं मिले। यानी लड़ाई ममता और भाजपा के बीच रहे।
बंगाल भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राहुल सिन्हा कहते हैं कि जय श्रीराम का नारा बदलाव का नारा है, परिवर्तन का संकेत है। ममता बनर्जी के शासन में हिंदुओं को दुर्गा पूजा मनाने में भी रोड़ा लगाया जाता है। राम नवमी में शोभा यात्रा की इजाजत नहीं मिलती। अब ये नारा उस तानाशाही को बदलने का प्रतीक है जो जनता के बीच से आ रहा है। जिस तरह से ममता बनर्जी इसको लेकर रियेक्ट कर रही हैं, उससे तो साफ मैसेज है कि हमें फायदा होने वाला है।
जय श्रीराम का विरोध करने वाली ममता अब संभलकर कदम रख रही हैं
पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान ममता जय श्रीराम के नारे से चिढ़ती दिखीं थीं। वे जहां भी जातीं, भाजपा कार्यकर्ता जय श्रीराम के नारे लगाने लगते थे। तब भाजपा ने ममता को हिंदू विरोधी करार दिया था और पूरे चुनाव के दौरान इसे मुद्दा बनाया था। भाजपा को चुनाव में इसका फायदा भी हुआ और 18 सीटों पर जीत मिली थी। इस बार भी शुरुआत में ममता विरोध करती दिखीं थीं। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान वे जय श्रीराम के नारे से नाराज हो गईं थीं और बिना भाषण दिए चली गईं थीं, लेकिन अब उन्होंने अपनी रणनीति बदल ली है।
वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर मणि त्रिपाठी कहते हैं कि बंगाल में इस बार हिंदुत्व का मुद्दा हावी है। भाजपा खुलकर हिंदुत्व कार्ड खेल रही है। पिछले लोकसभा की तरह वोट नहीं बंटे इसलिए प्रशांत किशोर ने ममता बनर्जी को जय श्रीराम का विरोध नहीं करने की सलाह दी है। यही वजह है कि ममता अब सॉफ्ट हिंदुत्व का कार्ड खेल रही हैं। ममता की पूरी कोशिश है कि उनकी छवि हिंदू विरोधी नहीं बने, क्योंकि जय श्रीराम के विरोध से हिंदू वोटर्स नाराज भी हो सकते हैं। इसलिए ममता ने इस बार मुस्लिम प्रत्याशियों की संख्या भी घटा दी है।
शिखा मुखर्जी कहती हैं कि इस समय देश में राम मंदिर बनाने का अभियान चल रहा है। ऐसे में ममता अगर जय श्रीराम के नारे का सपोर्ट करती हैं तो कहीं न कहीं मुसलमानों में उनको लेकर निगेटिव मैसेज जाएगा। इसलिए वे इसका विरोध कर रही थीं, लेकिन हाल के कुछ दिनों में चीजें बदल गई हैं। ऐसे में ममता के पास सॉफ्ट हिंदुत्व पर चलने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
क्या जनता ममता को राम कार्ड दिखाएगी?
शिखा मुखर्जी कहती हैं कि जैसे-जैसे चुनाव की तारीखें करीब आ रही हैं, मुकाबला कड़ा होता जा रहा है। कई लोगों का मानना है कि गांवों में ममता बनर्जी के खिलाफ माहौल तैयार हो रहा है। वहीं कुछ लोग ये भी कहते हैं कि शहरी हिंदू वोटर भाजपा के फेवर में जाता दिख रहा है।
वे कहती हैं कि जिस तरह से भाजपा अपने चुनावी सभाओं में धर्म को ला रही है, हिंदू-मुसलमान मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है, उससे तो यही लगता है कि इस चुनाव में राम कार्ड भी एक मुद्दा रहेगा। अगर राम कार्ड चला तो इसका फायदा निश्चित रूप से भाजपा को होगा। वो नॉन बंगाली हिंदुओं को अपने फेवर में करने में कामयाब हो सकती है।
प्रभाकर मणि त्रिपाठी भी मानते हैं कि इस चुनाव में राम कार्ड का रोल रहेगा। अब देखने वाली बात ये होगी कि लोकसभा चुनाव की तरह भाजपा माहौल बना पाती है या नहीं। हालांकि इतना तो तय है कि इसका फायदा भाजपा को मिलेगा। यह फायदा कितना बड़ा होगा, वो चुनाव बाद ही साफ हो पाएगा।
बंगाल चुनाव में राम कार्ड का कितना रोल रहने वाला है?
दरअसल बंगाल में दो तरह के हिंदू हैं। एक जो बांग्ला बोलते हैं और दूसरे वे जो गैर बांग्लाभाषी हैं। जो बांग्लाभाषी हैं उनके लिए दुर्गा ज्यादा मायने रखती हैं, लेकिन जो नॉन बंगाली हैं वे राम को मानते हैं। यहां करीब 50% बांग्लाभाषी हिंदू हैं जबकि 10% से ज्यादा गैर बांग्लाभाषी हिंदू हैं। बिहार से सटे इलाकों में और कोलकाता में इनकी संख्या अधिक है।
हिंदुओं की तरह ही बंगाल में दो तरह के मुसलमान भी हैं। एक जो बांग्ला बोलते हैं और दूसरे वे जो गैर बांग्लाभाषी हैं। बांग्लाभाषी मुसलमान ममता बनर्जी के हार्डकोर सपोर्टर माने जाते हैं। जबकि बिहार से सटे जिन इलाकों में गैर बांग्लाभाषी मुस्लिम हैं, उन पर ओवैसी की नजर है। इसलिए ममता जय श्रीराम के नारे का विरोध कर गैर बांग्लाभाषी मुस्लिमों को अपने पक्ष में साधने की पुरजोर कोशिश कर रही हैं।
बंगाल में करीब 100 सीटों पर मुसलमानों का दबदबा है। कई सीटों पर वे जीत-हार में निर्णायक हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम बहुल इलाकों में भाजपा ने 7 सीटें जीती थीं। वहीं 2016 के विधानसभा चुनाव में TMC को 212 सीट मिली थीं। इसमें से 98 सीटों पर मुस्लिम वोटरों की निर्णायक भूमिका रही थी।