रविवार चमोली जिले में घटे घटना के बाद पर्यावरण से जुड़े तमाम वैज्ञानिक और विशेषज्ञ चिंतित हो गए हैं ,विशेषज्ञों का मानना है कि अगर https://www.facebook.com/Newstimes7-109872927485071हिमालय के ऊपरी क्षेत्र में ऐसे ही हमेशा हाल-चाल मची रही तो वह दिन दूर नहीं होगा जब उत्तराखंड का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा हीम के खंडों में उत्तराखंड के पूरी धरती समा कर जलमग्न हो जाएगी दरअसल
13 जिलों के प्रदेश में 11 जिलों की 12 नदियों को बांध दिया गया डैम और परियोजना के लिए
विशेषज्ञों का कहना कि हर नदी को घेर कर प्रोजेक्ट बनाना खतरनाक
बड़े प्रोजेक्ट की बजाय छोटे प्रोजेक्ट बनाने चाहिए सरकार को
उत्तराखंड में 13 जिले हैं। इन सभी 13 जिलों से दर्जनों नदियां बह कर मैदानी इलाकों में जाती हैं। आप हैरान होंगे यह जान कर कि 13 में से 11 जिलों से होकर बहने वाली 12 प्रमुख नदियों पर छोटे और बड़े लगभग 32 से ज्यादा बांध और विद्युत परियोजनाएं बना दी गई हैं। रविवार को ग्लेशियर फटने की घटना के बाद मची तबाही से अब वैज्ञानिक और पर्यावरणविद चिंतित हो गए हैं।
विशेषज्ञों को डर है कि अगर हिमालय के ऊपरी क्षेत्र में इसी तरीके से हलचल मची रही, तो वह वक्त दूर नहीं जब उत्तराखंड का अस्तित्व ही समाप्त हो सकता है। क्योंकि यहां के बांध और परियोजनाएं एक वॉटर बम की तरह ही हैं। इनके फटने से बहुत बड़ा खतरा है। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकारों को अब इस बात पर ध्यान देना चाहिए जो परियोजनाएं चल रही है उनका स्वरूप क्या हो। वैज्ञानिकों का मानना है कि अब छोटे-छोटे डैम बनाने चाहिए।
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में चाहे भूकंप रहा हो। या केदारनाथ की जल प्रलय रही हो। या फिर टिहरी बांध परियोजना से प्रभावित पूरा इलाका रहा हो। और अब धौलीगंगा हिमस्खलन त्रासदी के बाद सवाल उठने लगे हैं क्या उत्तराखंड में इन परियोजनाओं के स्वरूप की समीक्षा की जानी चाहिए या नहीं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के क्लाइमेट चेंज विंग के हेड सम्राट सेनगुप्ता कहते हैं निश्चित तौर पर अब वक्त आ गया है कि हमें विचार करना चाहिए कि उत्तराखंड में इन परियोजनाओं का वास्तविक स्वरूप क्या हो।
सेनगुप्ता का कहना है कि वे बांध के विरुद्ध नहीं है। विकासशील देश में विद्युत परियोजनाएं निश्चित तौर पर होनी ही चाहिए। हमारे पास जितने ज्यादा प्राकृतिक संसाधन होंगे उतना ज्यादा हम विकास के रास्ते पर बढ़ सकेंगे। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि हम उन परियोजनाओं को किस तरह से चला रहे हैं।
नतीजा लापरवाही का ही है
सम्राट सेनगुप्ता का मानना है कि जब बांध बनाए जाते हैं या विद्युत परियोजनाएं शुरू की जाती हैं तो उसके साथ मिट्टी को बांधने का काम ज्यादा जरूरी होता है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि तमाम कोशिशों के बाद भी इन सारी चीजों में हमें सफलता नहीं मिल पाती है। नतीजा यह होता है कि ऐसी आपदाओं के बाद जब जल प्रलय होती है तो तबाही मचाती है। वो कहते हैं जो भी बांध या परियोजनाएं उत्तराखंड में बन रही है वह बहुत जरूरी हैं। लेकिन उनका तरीका वैज्ञानिक तौर पर सही नहीं है। बहुत से काम प्रकृति के विरुद्ध किए जा रहे हैं।
हिमालय में पिघलते ग्लेशिरों पर काम करने वाले मौसम वैज्ञानिक डॉक्टर एसपी भारद्वाज कहते हैं कि जिस तरह से उत्तराखंड में प्रकृति का दोहन हो रहा है वो पूरे राज्य के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा है। डॉक्टर भारद्वाज का मानना है कि पानी से बिजली बननी ही चाहिए, लेकिन जिस तरह से बनाई जा रही है वो प्रक्रिया गलत है। टिहरी परियोजना से लेकर अभी नेपाल के साथ मिलकर बनाई जा रही पिथौरागढ़ और चंपावत में काली नदी की परियोजना भी विनाशकारी साबित हो सकती है। उनका कहना है कि इस परियोजना के लिए 148 गांव को उजाड़ा जा रहा है। टिहरी परियोजना से कितना व्यापक असर जनजीवन पर पड़ा। इसका सबको अंदाजा भी है। पानी का दबाव जमीन में हलचल करता है डॉक्टर एसपी भारद्वाज कहते हैं कि बड़े बांध को हमेशा खतरा पानी के वजन की वजह से भी होता है।
पर्यावरणविद अनिल प्रकाश जोशी कहते हैं कि जो बांध उत्तराखंड में बने हैं या बन रहे हैं। वे बांध नहीं “वॉटर बम” हैं। जोशी चेतावनी देते हुए कहते हैं कि अगर सरकारें इस दिशा में नहीं सुधरीं तो ये तबाही ही लाएंगे। हमें छोटे-छोटे बांध बनाने चाहिए। बड़े बांध हमेशा खतरा ही होते हैं। सरकार को चाहिए कि ऊंचाई वाले स्थानों पर या ग्लेशियर के नजदीक बनाए जाने वाले बांधों से बचना चाहिए। हिमालय को बहुत नजदीक से देखने वाले अनिल कहते हैं कि सिविल इंजीनयर बांध तो बना देंगे, लेकिन उन्हें पहले प्रकृति को समझना होगा कि बांध बनाया कहां जाए। विज्ञान और पर्यावरण के बीच सामंजस्य बनाया जाना बहुत ज़रूरी है।
इन नदियों पर हैं बांध और परियोजनाएं
भागीरथी नदी पर 6
अलकनंदा नदी पर 5
गंगा नदी पर 3
राम गंगा नदी पर 3
काली नदी पर 1
कोसी नदी पर 1
पिंडर नदी पर 2
धौली गंगा नदी पर 3
यमुना नदी पर 3
टोंस नदी पर 3
शारदा नदी पर 2
इसके अलावा अन्य कुछ नदियों पर भी छोटे-छोटे डैम हैं।।
सबसे ज्यादा चमोली में नदियों को बांध दिया गया
चमोली जिले की सात नदियों पर बांध बना कर परियोजनाएं चालू की गई हैं। इसके अलावा देहरादून जिले में 5 नदियों को घेरा गया है बांध के लिए। पौड़ी में 4, चंपावत में 2, अल्मोड़ा में 1, टिहरी में 2, उत्तरकाशी में 2, उधमसिंह सिंह नगर 1, श्रीनगर में 1 और पिथौरागढ़ में 1 पबांध और परियोजनाएं चल रही हैं।
पांच हजार मेगावाट से ज्यादा पैदा होती है बिजली
उत्तराखंड में इस वक्त सभी परियोजनाओं से तकरीबन 5300 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है।