आगामी पंजाब के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो चुकी है जहांRSS अपना पूरा फोकस पंजाब पर लगाने में जुटी है और उसी क्रम में 26 साल बाद आर एस एस के प्रांत प्रमुख को भी बदल दिया गया है! पूरी तरीके से RSS की पकड़ निचले दर्जे तक बढ़ाने के लिए यह बड़ा कदम उठाया है ! 26 साल बाद RSS ने अपना प्रांत प्रमुख बदला तो राजनीति गलियारों में यह चर्चा तेज हो गई कि शायद यह चुनाव की तैयारी है पर इन बातों से इनकार करते हुए RSS ने कहा कि नहीं बृजभूषण बेदी ने लंबे समय से संघ का विस्तार किया है और अब उन्हें उम्र ज्यादा होने की वजह से पद मुक्ति चाहते हैं इसलिए यह बदलाव हो रहा है!
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पंजाब प्रांत के लिए नए प्रमुख (प्रांत संघ संचालक) के तौर पर इकबाल सिंह अहलूवालिया की नियुक्ति की है. उन्होंने बृजभूषण बेदी का स्थान लिया है जो बीते 26 वर्ष से आरएसएस के पंजाब प्रमुख बने हुए थे. बेदी 90 साल के हैं और वे अपनी उम्र ज्यादा होने की वजह से इस पद से मुक्त होना चाहते थे.
हालांकि राजनीतिक गलियारों में इस बदलाव को 2022 में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव के साथ भी जोड़कर देखा जा रहा है. पंजाब के नए आरएसएस प्रांत प्रमुख इकबाल सिंह अहलूवालिया भी वरिष्ठ नागरिक हैं. उनकी उम्र 70 साल है और वह फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के पूर्व कर्मचारी हैं. वह मूलतः पंजाब के हिंदू बहुल जिला संगरूर से ताल्लुक रखते हैं.
अहलूवालिया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की हाल ही आयोजित राज्य स्तरीय बैठक में नए प्रांत प्रमुख चुने गए. उनके नाम का प्रस्ताव बृजमोहन बेदी ने ही रखा. बेदी देश को स्वतंत्रता मिलने से पहले से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे.
अहलूवालिया साल 1963 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ जुड़े हैं. वे खुद को राजनीति से दूर रखना चाहते हैं लेकिन उनका मकसद पंजाब में आरएसएस का विस्तार करना होगा. बता दें कि कुछ समय पहले ही अहलूवालिया को पंजाब प्रांत का संयुक्त संघ संचालक बनाया गया था.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सिख भाईचारे को अपने साथ जोड़ने के लिए राष्ट्रीय सिख संगत की स्थापना की थी. लेकिन आरएसएस की इस शाखा के नेताओं पर आतंकवादी कई बार हमला कर चुके हैं. इसकी वजह से इस संगठन को लो-प्रोफाइल में रखा गया.
खालिस्तानी आतंकवादी अब तक पंजाब के दर्जनभर हिंदू और आरएसएस नेताओं को अपना निशाना बना चुके हैं. राष्ट्रीय सिख संगत के तत्कालीन अध्यक्ष रुलदा सिंह की 29 जुलाई 2009 को आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी.
खालिस्तान समर्थक ग्रुप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और राष्ट्रीय सिख संगत को सिख धर्म विरोधी मानते हैं. कुछ कट्टरवादी सिख संगठनों का भी मानना है कि राष्ट्रीय सिख संगत जैसी संस्थाएं सिख धर्म में हिंदुत्व घोलने की कोशिश कर रही हैं. यही कारण है कि राष्ट्रीय सिख संगत पंजाब के सिख समुदाय को बड़ी संख्या में अपने साथ नहीं जोड़ पाया. हालांकि दिल्ली और राजस्थान सहित कई राज्यों में राष्ट्रीय सिख संगत अपना प्रभाव बनाने में कुछ हद तक कामयाब रहा है.
आरएसएस के नए पंजाब प्रांत प्रमुख अहलूवालिया बेशक राजनीति से दूर रहने की बात करें लेकिन बीजेपी से संघ का जुड़ाव एक सच्चाई है. पंजाब में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं. करीब ढाई दशक बाद पंजाब में पहला मौका होगा बीजेपी अकेले बूते ये चुनाव लड़ेगी और पंजाब की सभी 117 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी. इसी तैयारियों के तहत बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा ने हाल में पंजाब के 11 जिलों में पार्टी दफ्तरों का डिजिटल उद्घाटन किया.
अब तक अकाली दल के साथ गठबंधन में रहकर बीजेपी पंजाब में सारे चुनाव लड़ती रही. आपसी सहमति के तहत बीजेपी को 117 विधानसभा सीटों में से सिर्फ 23 सीटों पर चुनाव लड़ने का ही मौका मिलता था. ये 23 विधानसभा सीटें हिंदू बहुल शहरी क्षेत्रों से ही होती थीं. वहीं बीजेपी का अधिक आधार रहा है. हालांकि पिछले चुनावों में पंजाब के शहरी चुनाव क्षेत्रों में कांग्रेस के उम्मीदवारों ने बढ़त के साथ बाजी मार ली थी और बीजेपी के 21 उम्मीदवार चुनाव हार गए थे.
अबकी बार बीजेपी आलाकमान ने पंजाब के नेतृत्व को एक तरफ जहां शहरी मतदाताओं पर पकड़ मजबूत करने की हिदायत दी है वहीं अब पार्टी की नजर पंजाब के ग्रामीण क्षेत्रों में भी है जिसे शिरोमणि अकाली दल का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है.
केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब के किसानों में जमकर रोष है. पिछले दो महीनों से राज्य में लगातार धरने प्रदर्शन आयोजित हो रहे हैं. पार्टी के सूत्रों के मुताबिक पंजाब की मौजूदा स्थिति को भांपते हुए बीजेपी हरियाणा की तर्ज पर यहां गैर जाट राजनीति का कार्ड खेल सकती है.
पार्टी के सूत्रों के मुताबिक बीजेपी की नजर पंजाब की 34 आरक्षित विधानसभा सीटों पर भी रहेगी. पार्टी दलित वोट बैंक पर नजरे जमाए हुए हैं और इसी के मद्देनजर अब पंजाब में कुछ साफ सुथरी छवि वाले दलित चेहरों की तलाश भी की जा रही है. पार्टी के नेताओं का मानना है कि अगर बीजेपी परंपरागत 23 सीटों के अलावा 34 आरक्षित विधानसभा चुनाव क्षेत्रों पर पकड़ बनाने में कामयाब होती है तो उसे पंजाब में सरकार बनाने में कोई दिक्कत नहीं आएगी.
पार्टी सूत्रों के मुताबिक पंजाब में जाट मतों का ध्रुवीकरण भी किया जा सकता है. इसका सबसे बड़ा नुकसान बीजेपी की पूर्व सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल के साथ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को हो सकता है.
वैसे पंजाब में दलित राजनीति हाशिए पर ही रही है. राज्य में दलितों की 32 फीसदी जनसंख्या होने के बावजूद भी दलित उत्पीड़न के मामले लगातार सामने आते रहे हैं. कांग्रेस के शासनकाल में भी दलित छात्रवृत्ति का घोटाला सामने आया है जिसमें कथित तौर पर एक दलित मंत्री को लेकर भी सवाल उठे. खुद को दलितों का हितैषी बताने वाली कांग्रेस इस घोटाले के बाद कटघरे में है. पंजाब की रणनीति के तहत बीजेपी हिंदू और दलित वोट बैंक मजबूत करने पर जोर दे सकती है.
इकबाल सिंह अहलूवालिया की पंजाब प्रांत के संघ प्रमुख के तौर पर ताजपोशी की टाइमिंग भी दिलचस्प है. हालांकि 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का वोट शेयर सिर्फ 5 फीसदी था लेकिन अगर पार्टी उच्च जातियों के मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने में सफल होती है तो पंजाब में अपना आधार बढ़ाने में सफल हो सकती है.