भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने शुक्रवार को कहा कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास हालात अब भी तनावपूर्ण बने हुए हैं। उन्होंने कहा कि सीमा पर टकराव की वजह से वहां किसी भी तरह की बड़ी सैन्य कार्रवाई की इजाजत फिलहाल नहीं दी जा सकती है. उन्होंने कहा कि किसी भी हाल में नियंत्रण रेखा में बदलाव को मंजूरी नहीं दी जा सकती. पीटीआई के मुताबिक रावत ने कहा, “लद्दाख में भारतीय सैनिकों को चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के दुस्साहस की वजह से ‘अप्रत्याशित परिणामों’ का सामना करना पड़ा. हमारी पोजीशन पर कोई सवाल नहीं है. हम वास्तविक नियंत्रण रेखा में किसी भी बदलाव को स्वीकार नहीं करेंगे.’
Pakistan has continued to remain the epicentre of armed Islamic insurgency & terrorism. For three decades now,
Pakistan army & its intelligence agency ISI have been waging a proxy war in J&K…: Chief of Defence Staff (CDS) General Bipin Rawat. (1/2) pic.twitter.com/yMrnIznQyc— ANI (@ANI) November 6, 2020
Advertisement
उन्होंने कहा कि भारत और चीन ने मई में शुरू हुए लद्दाख में गतिरोध को हल करने के लिए सात दौर की सैन्य वार्ता की है. यह गतिरोध जून में तब और बढ़ गया जब गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ शारीरिक संघर्ष में देश के 20 जवानों की मौत हो गई थी.
उन्होंने कहा कि पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर हालात अब भी तनावपूर्ण बने हुए हैं। रावत ने कहा कि सीमा पर झड़पों और बिना उकसावे के सैन्य कारवाई के बड़े संघर्ष में तब्दील होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। उल्लेखनीय है कि पूर्वी लद्दाख में हाड़ जमा देने वाली ठंड में भारत के लगभग 50,000 सैनिक किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पर्वतीय ऊंचाइयों पर तैनात हैं।
सीडीएस रावत ने शुक्रवार को कहा, ‘आने वाले वर्षों में, हम देखेंगे कि हमारा रक्षा उद्योग तेजी से बढ़ रहा है और समग्र रक्षा तैयारियों में योगदान दे रहा है। इसके अलावा हमें अत्याधुनिक हथियार और उपकरण पूरी तरह से भारत में उपलब्ध करवा रहा है। जहां तक रक्षा सहयोग का सवाल है, हम रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण देशों के साथ आपसी विश्वास और साझेदारी बनाने में रक्षा कूटनीति का महत्व समझते हैं।’
भारतीय सेना की आत्मनिर्भरता पर जनरल रावत ने कहा, “जैसे-जैसे भारत का कद बढ़ता जाएगा, सुरक्षा चुनौतियां भी आनुपातिक रूप से बढ़ती जाएंगी. इसलिए हमें अपनी सैन्य आवश्यकताओं के लिए राष्ट्रों पर प्रतिबंधों या निर्भरता के निरंतर खतरे से बाहर निकलना चाहिए.” उन्होंने कहा, “हमें रणनीतिक स्वतंत्रता और निर्णायक सैन्य शक्ति के लिए वर्तमान और उभरती चुनौतियों को पूरा करने के लिए दीर्घकालिक स्वदेशी क्षमता के निर्माण में निवेश करना होगा.!