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गहलोत के ‘मन की बात’ -राजस्थान विधानसभा में बीजेपी का अविश्वास प्रस्ताव क्यों है!

गहलोत के ‘मन की बात’ -राजस्थान विधानसभा में बीजेपी का अविश्वास प्रस्ताव क्यों है!
कांग्रेस हाईकमान के दखल के बाद अशोक गहलोत और सचिन पायलट खेमा एक हो चुका है. कांग्रेस के पास बहुमत के आंकड़े से ज्यादा विधायकों का समर्थन हासिल है और एक बार विश्वास मत हासिल करने के बाद गहलोत सरकार के लिए 6 महीने तक संकट दूर हो जाएगा. ऐसे में बीजेपी ने विधानसभा सत्र में अविश्वास प्रस्ताव लाने की बात कह कर गहलोत के मन की मुराद पूरी कर दी है.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत

 

  • गहलोत-पायलट खेमा मिलाकर बहुमत से ज्यादा आंकड़ा

  • विश्वास मत हासिल करने के बाद 6 महीने तक संकट खत्म

राजस्थान की सियासत में कांग्रेस के भीतर एक महीने से चल रहा शह-मात का खेल खत्म हो गया है. कांग्रेस हाईकमान के दखल के बाद अशोक गहलोत और सचिन पायलट खेमा एक हो चुका है. गहलोत के पास अब तो बहुमत के आंकड़े से ज्यादा विधायकों का समर्थन हासिल है और एक बार विश्वास मत हासिल करने के बाद गहलोत सरकार के लिए 6 महीने तक संकट दूर हो जाएगा. ऐसे में बीजेपी ने विधानसभा सत्र में अविश्वास प्रस्ताव लाने की पहल कर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मन की मुराद पूरी कर दी है.

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मुख्यमंत्री अशोक गहलोत विधानसभा सदन के अंदर अपनी ताकत दिखाना चाहते हैं. कांग्रेस विधायक दल की बैठक में गुरुवार को गहलोत ने कहा कि हम खुद विश्वास मत लेकर आएंगे. बीजेपी वाले अविश्वास प्रस्ताव लेकर आ रहे हैं, विधानसभा अध्यक्ष देखेंगे कि कैसे क्या किया जाएगा? साथ ही गहलोत ने कहा कि 19 विधायकों के बिना भी वह विधानसभा में बहुमत साबित कर देते, लेकिन वह खुशी नहीं मिलती. गहलोत ने सीधे तौर पायलट खेमे को संदेश देने की कोशिश की है कि हम आपके समर्थन के बिना भी बहुमत पास करने की ताकत रखते हैं.

दरअसल, पायलट खेमे के बगावत के बाद से ही मुख्यमंत्री गहलोत सदन में बहुमत साबित कर ताकत दिखाना चाहते थे. इसी मद्देनजर गहलोत तीन-तीन बार कैबिनेट से प्रस्ताव पास कर राज्यपाल कलराज मिश्र को भेजकर विधानसभा सत्र बुलाने की डिमांड रखी थी, लेकिन बहुमत परीक्षण का जिक्र एक बार भी नहीं किया था. इसी के चलते राजभवन और गहलोत सरकार के बीच टकराव की स्थिति भी देखने को मिली थी, जब गहलोत ने अपने समर्थक विधायकों के साथ राजभवन में धरना दे दिया था. इसके बाद कहीं जाकर राज्यपाल ने 14 अगस्त से विधानसभा सत्र शुरू करने की अनुमित दी थी.

राजस्थान में विधानसभा सत्र अब शुक्रवार को शुरू हो रहा है तो बीजेपी ने गहलोत सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का ऐलान किया है. वहीं, सीएम गहलोत ने खुद विश्वास प्रस्ताव लाने की बात कही है. विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी अगर विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार करते हैं तो बीजेपी को सदन में बोलने का पहले मौका मिलेगा और अगर सत्ता पक्ष के विश्वास प्रस्ताव को मंजूरी देते हैं तो कांग्रेस को बोलने का पहले मौका मिलेगा.

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वहीं, सदन में चर्चा के बाद फ्लोर टेस्ट होगा और कांग्रेस आसानी से बहुमत परीक्षा पास कर लेगी. सुप्रीम कोर्ट ने बीएसपी विधायकों के कांग्रेस में विलय को रद्द करने वाली याचिका के मामले में दखल देने से इनकार कर दिया है. अब सदन में बहुमत परीक्षण के दौरान बसपा से कांग्रेस में शामिल होने वाले विधायक गहलोत सरकार के पक्ष में वोट कर सकते हैं.

गहलोत सरकार को फ्लोर टेस्ट के दौरान कोई भी दिक्कत नहीं है और उसके पास 125 विधायकों का समर्थन है जबकि बहुमत का जादुई आंकड़ा 101 है. इस तरह से गहलोत सरकार के सदन में विश्वास मत हासिल करने पर 6 महीने तक के लिए संकट दूर हो जाएगा. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इसीलिए बहुमत परीक्षा के लिए सत्र बुलाने की मांग पर अड़े थे, क्योंकि उन्होंने बहुमत भर का आंकड़ा जुटा रखा था और अब पायलट खेमा भी पार्टी में वापस आ चुका है.

राजस्थान में कुल विधायकों की संख्या 200 है. 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने 100 सीटें जीतीं. इसके बाद एक सीट उपचुनाव में जीती और फिर बसपा के छह विधायक भी कांग्रेस में शामिल हो गए. इस लिहाज से कांग्रेस की मौजूदा संख्या 107 हो गई है. वहीं, बीजेपी के 72 और तीन उसके सहयोगी आरएलपी के विधायक हैं. इसके अलावा 13 निर्दलीय, दो बीटीपी, 2 सीपीएम और एक विधायक आरएलडी का है.

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मुख्यमंत्री गहलोत ने गुरुवार को कांग्रेस के विधायक दल की बैठक में भी कहा कि ऐसे ही बीजेपी ने गुजरात में साल 2017 में 14 कांग्रेसी विधायकों का इस्तीफा करवा दिया गया था, लेकिन उसके बाद भी हमने अहमद पटेल को राज्यसभा का चुनाव जितवा दिया था. एक बार फिर शुक्रवार को पूरा देश देखेगा कि किस तरह से हम ने बीजेपी की चाल को विफल किया है.

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