नई दिल्ली. 1996 की कोई तारीख. देश के रक्षामंत्री मुलायम सिंह यादव इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में थे. अवसर पुराने समाजवादी नेता और 1978 के विधानसभा चुनाव में इलाहाबद शहर उत्तरी क्षेत्र से कांग्रेस की धुरंधर नेता राजेंद्र कुमारी वाजपेयी को पराजित कर विधायक रहे बाबा राम अधार यादव की प्रतिमा अनावरण का था. शहर के मम्फोर्डगंज जैसी जगह में उन्होंने प्रतिमा का अनावरण किया और नगर के लगभग किनारे बने एक वैवाहिक स्थल के हाल में लोगों को संबोधित किया. बाबा राम अधार यादव लोकप्रिय नेता रहे. इस लेखक ने उन्हें देखा था, उनसे मिला था, अखबार के लिए बात की थी.
रेलवे में नौकरी करने वाले उनके पुत्र एएस यादव से भी सम्पर्क रहा है. इसके वशीभूत यह लेखक उस आयोजन का संचालन कर रहा था और रक्षा मंत्री के साथ लखनऊ से आए पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी के साथ अन्य लोग भी मौजूद थे. अपने भाषण के प्रारम्भ में देश के रक्षा मंत्री ने मंच पर मौजूद लोगों के साथ भीड़ में बैठे कई लोगों के नाम लेकर संबोधन शुरू किया. स्वाभाविक तौर पर आयोजकों के साथ शहर के बाकी कई लोगों के चेहरे खिल उठे थे. बाद में लोग चर्चा करते रहे कि बड़े पद पर रहते हुए भी वे अपने परिचितों के सिर्फ चेहरे नहीं, नाम तक याद रखते हैं.
प्रबल विरोधी को भी कर लिया साथ
नेताजी के नाम से मशहूर मुलायम सिंह की यह खूबी कम नेताओं में हुआ करती है यदि रही भी तो स्थायित्व का अभाव रहता है. आज खुश, कल मुंह फेर लिया. इसके विपरीत मुलायम सिंह के रिश्ते कटु होकर भी सद्भाव में बदल जाने की गुंजाइश रखते रहे. इस मामले में बसपा प्रमुख मायावती से अधिक भला कौन समझ सकता है. साल 1995 के दो जून को जब कांशी राम के नेतृत्व वाली बसपा ने मुलायम सिंह सरकार से नाता तोड़ा, मायावती अपने विधायकों के साथ लखनऊ के गेस्ट हाउस में बैठक कर रही थीं. तमाम हचलल के बीच आरोप लगे कि बसपा विधायकों का अपहरण किया जा रहा है. पांच विधायक वहां से ले जाये भी गये थे.