महात्मा गांधी की भूमिका केवल देश को आजादी दिलाने में ही नहीं थी. 20वीं सदी के शुरुआती दशकों में गांधी जी लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत थे. 1919 में उन्होंने अंग्रेजों के रोलैट एक्ट के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू किया. हिंसा का रूप मिलने पर गांधी जी ने इस आंदोलन को तो खत्म कर दिया था, लेकिन अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार करके उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया था. 18 मार्च 1922 को ही उन्हें इसके लिए छह साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी.
एक कानून से शुरू हुआ विरोध
प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ही अंग्रेजों ने भारत में प्रेस पर पाबंदी लगा दी थी. किसी को भी बिना जांच के कारावास की अनुमित दे दी गई थी. भारत के बहुत से लोगों ने अंग्रेजों का विश्वयुद्ध में साथ दिया था. लेकिन अंग्रेजों ने वही प्रावधान रोलैट एक्ट के जरिए भारत में हमेशा के लिए लागू करने की तैयारी शुरू कर दी जिससे पूरे देश में रोष फैल गया था.
एक्ट पारित होते ही शुरू हो गया था विरोध
मार्च 1919 में जब अंग्रेजों ने रोलैट एक्ट पारित किया गया तो गांधी जी के नेतृत्व मे देश भर में लोगों ने इस दमनकारी कानून के खिलाफत शुरू कर दी. 19 अप्रैल को जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ तो देश भर में अंग्रेजों के खिलाफ आक्रोश भर गया. इसके बाद देशव्यापी असहयोग आंदोलन शुरू करने की तैयारी होने लगी.
असहयोग आंदोलन
जल्द ही अंग्रेजों के खिलाफ यह विरोध एक आंदोलन का स्वरूप बन देश भर में फैलने लगा. इस आंदोलन की पूरी योजना बनाई गई. यह भी तय किया गया है विरोध किस तरह से जताया जाएगा. छात्रों ने स्कूल और कॉलेज जाने से इनकार कर दिया. देश भर में हड़तालें शुरू हो गईं. इसमें शहरी ग्रामीण, मजदूर, किसान सभी ने भाग लिया था. हर जगह और हर वर्ग में असहयोग का अलग स्वरूप दिखाई था, वह अंग्रेजी शासन के ही खिलाफ रहा था.इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को हिला कर रख दिया था. फरवरी 1922 में उत्तर प्रदेश के चौरी चौरा में किसानों के समूह ने एक पुलिस थाने में आग लगा दी. इसमें कई पुलिस कर्मी मारे गए. गांधी इस घटना से बहुत दुखी हुए और आंदोलन के इस हिंसात्म स्वरूप को सिरे से खारिज कर आंदोलन खत्म करने की घोषणा कर दी. उन्होंने कहा कि किसी भी आंदोलन की सफलता की नींव हिंसा पर नहीं रखी जा सकती.
गिरफ्तारी और सजा
असहयोग आंदोलन खत्म होते है जैसे अंग्रेजों को मौका मिल गया. 10 मार्च 1922 को गांधी जी को गिरफ़्तार किया गया. कई लोगों को हैरानी होती है, लेकिन अंग्रेजों ने गांधी जी के देशद्रोह का आधार यंग इंडिया में प्रकाशित उनके तीन लेखों को बनाया था. उनके मुकदमे की सुनवाई कर रह न्यायाधीश ब्रूम फील्ड ने 18 मार्च 1922 को गांधी जी को राजद्रोह के अपराध में 6 वर्ष की कैद की सजा सुनाई.
आंदोलन के दौरान अंग्रेज गांधी जी को गिरफ्तार करने से डर रहे थे. लेकिन जब बापू ने आंदोलन खत्म किया तो बहुत से लोग यहां तक कई कांग्रेसियों ने भी इसका विरोध किया. अंग्रेजों को यही मौका बढ़िया लगा और उन्होंने गांधी जी को गिरफ्तार किया. दो साल जेल में रहते हुए गांधी की तबियत खराब रहने लगी और उन्हें गांधी जी को रिहा करना पडा.
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