आगामी पश्चिम बंगाल चुनाव के मद्देनजर प्रलोभन की राजनीति ने रंग लेना शुरू कर दिया ,हालांकि बंगाल की राजनीति खूनी संघर्ष और तत्कालीन दलबदल की राजनीति में शुमार है ,जुबानी जंग से तेज हुई राजनीति और वादों पर और दिखाओ पर आ चुकी है ,आज कोलकाता में मां की रसोई योजना ममता बनर्जी के द्वारा शुरू की गई, जहां राज्य के लोगों को ₹5 में भरपेट भोजन दिया जाएगा अगर उस भोजन की बात करें तो चावल दाल सब्जी के साथ अंडा भी शामिल है, स्कीम का नाम तृणमूल कांग्रेस के नारे मां, माटी और मानुष से लिया गया है। ममता ने कहा कि राज्य सरकार प्रति प्लेट 15 रुपए की सब्सिडी वहन करेगी। उन्होंने कहा कि स्वयं-सहायता समूह हर दिन दोपहर एक बजे से तीन बजे के बीच रसोइयों का संचालन करेंगे। धीरे-धीरे राज्य में हर जगह ऐसे रसोई घर बनाए जाएंगे। तमिलनाडु में भी इसी तरह अम्मा कैंटीन के नाम से तब की CM जयललिता ने एक योजना शुरू की थी।
जातियों को जोड़ने की जुगत में दोनों दल
बंगाल में SC-ST की आबादी राज्य की कुल आबादी का 28% है। वहीं, मटुआ कम्युनिटी की आबादी 17.4% है। ऐसे में दोनों दल इन जातियों को जोड़ने की जुगत में जुट गए हैं। बांकुड़ा, पश्चिम मिदनापुर, झारग्राम, पुरुलिया और बीरभूम में एससी-एसटी के प्रभाव वाले क्षेत्र हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव नतीजों को देखें तो यहां की 56 में से 35 सीटों पर भाजपा को बढ़त थी।
मटुआ समुदाय का 50 विधानसभा सीटों पर प्रभाव
मटु़आ एक प्रभावशाली हिंदू दलित जाति है। इसका करीब 50 विधानसभा सीटों पर असर है। पश्चिम बंगाल की 10 करोड़ की आबादी में इसका हिस्सा 17.4 प्रतिशत है। यह जाति मूल रूप से पूर्वी पाकिस्तान की रहने वाली थी, जो देश के बंटवारे के समय यहां आकर बस गई थी।
राज्य की 294 में से 85 सीटें SC-ST के लिए रिजर्व
बंगाल की 294 विधानसभा सीटों में से एससी के लिए कुल 69 सीटें रिजर्व हैं। वहीं एसटी के लिए 16 सीटें। ऐसे में कुल 85 सीटों पर SC-ST समूह का बड़ा वर्ग अपना दखल रखता है। लोकसभा चुनाव में 12 सीटें रिजर्व हैं। इनमें से भाजपा ने जहां सात सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं, ममता की पार्टी के पांच सांसद विजयी हुए थे।