देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा की उम्र आज 42 साल की हो गई लेकिन इसके पीछे की कहानी आज हम आपको बताने जा रहे है की कांग्रेस की आंधी में भी भारतीय जनता पार्टी ने कैसे कमल खिलाया था बात 1980 की है। देश में आम चुनाव हुए। कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 353 सीटों पर जीत हासिल की। वहीं, जनता पार्टी के महज 31 उम्मीदवार जीत पाए। ये जनता पार्टी तीन साल पहले यानी 1977 में भारी बहुमत के साथ सत्ता में आई थी।
चुनाव में मिली हार के बाद जनता पार्टी के नेताओं ने समीक्षा की। राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने इस हार के पीछे नेताओं की दोहरी भूमिका को जिम्मेदार ठहराया।
दरअसल, आपातकाल के दौर में कई विपक्षी पार्टियों के विलय से बनी ये पार्टी विचारधारा के द्वंद में फंस गई थी। समाजवादी धड़े के नेता जनसंघ के नेताओं की दोहरी भूमिका पर बैन लगाने की मांग कर रहे थे। ऐसा हुआ भी, कहा गया कि जनता पार्टी के नेता या तोराष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) में रहें या फिर पार्टी के लिए काम करें। दोनों में से किसी एक का चुनाव करना होगा।
इस बैन का नतीजा ये रहा कि भारतीय जनसंघ के नेता जनता पार्टी से अलग हो गए। छह अप्रैल 1980 को इन नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी नाम से नए राजनीतिक संगठन का गठन कर लिया। यहीं से भाजपा का आगाज हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी नई पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष चुने गए।
31 अक्टूबर 1984 को देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई। देशभर में बवाल होने लगा। कांग्रेस ने तुरंत चुनाव कराने का फैसला लिया और चुनाव आयोग ने इसका एलान कर दिया। 1984 आम चुनाव में पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने शिरकत की। चुनाव में कांग्रेस की आंधी चली। सहानभूति लहर में कांग्रेस के 404 प्रत्याशी चुनाव जीत गए। पहली बार चुनाव लड़ने वाली भारतीय जनता पार्टी यानी भाजपा के खाते में केवल दो सीटें आईं। तब प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इसका मजाक भी बनाया था। कहा था, ‘हम दो, हमारे दो।’ उनका ये कटाक्ष पार्टी अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी और भाजपा के दो सांसदों पर था।