नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के हक में आज एक बड़ा फैसला दिया. गर्भपात के मामले में विवाहित और अविवाहित का भेद मिटाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि भारत सभी महिलाएं, चाहे विवाहित हों या अविवाहित, सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की हकदार हैं. सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में संशोधन करते हुए कहा कि विवाहित महिला की तरह अविवाहित को भी गर्भपात कराने का अधिकार है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने एमटीपी कानून और इससे संबंधित नियमों के बदलाव को लेकर यह फैसला सुनाया है.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि एक अविवाहित महिला को अनचाहे गर्भ का शिकार होने देना मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) अधिनियम के उद्देश्य और भावना के विपरीत होगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कहा कि 2021 के संशोधन के बाद मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट की धारा-3 में पति के बजाय पार्टनर शब्द का उपयोग किया गया है. यह अधिनियम में अविवाहित महिलाओं को कवर करने के लिए विधायी मंशा को दर्शाता है. साथ ही कोर्ट ने एम्स निदेशक को एक मेडिकल बोर्ड का गठन करने के लिए कहा जो यह देखेगा कि गर्भपात से महिला के जीवन को कोई खतरा तो नहीं होगा.
दरअसल, एक महिला ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 2003 के नियम-3 बी को चुनौती दी थी, जो कि केवल कुछ श्रेणियों की महिलाओं को 20 से 24 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति देता है. पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को केवल इस आधार पर लाभ से वंचित नहीं किया जाना चाहिए कि वह अविवाहित महिला है. कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया लगता है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने अनुचित प्रतिबंधात्मक दृष्टिकोण अपनाया है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट से अविवाहित महिलाओं को लिव-इन रिलेशनशिप से बाहर करना असंवैधानिक है. इस तरह से अविवाहित महिलाओं के बीच भेदभाव नहीं कर सकते. कोर्ट ने साफ किया कि इस कानून की व्याख्या केवल विवाहित महिलाओं तक सीमित नहीं रह सकती. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर बिना मर्जी के कोई विवाहित महिला गर्भवती होती है, तो इसे मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत रेप माना जाना चाहिए और इस लिहाज से उसे गर्भपात कराने का अधिकार होगा.
बता दें कि 16 जुलाई को दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग वाली अविवाहित मणिपुरी महिला की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था. हाईकोर्ट ने कहा था कि गर्भ सहमति से धारण किया गया है और यह स्पष्ट रूप से मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स, 2003 के तहत किसी भी खंड में शामिल नहीं है. महिला ने अपनी याचिका में कहा कि वह बच्चे को जन्म नहीं दे सकती क्योंकि वह एक अविवाहित महिला है और उसके साथी ने उससे शादी करने से मना कर दिया है. इसमें आगे कहा गया कि अविवाहित तौर पर बच्चे को जन्म देने से उसका बहिष्कार होगा और साथ ही मानसिक पीड़ा भी होगी. दिल्ली हाईकोर्ट के इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनोती दी गयी थी.