हावड़ा ब्रिज अपनी अनोखी इंजीनियरिंग के लिए फेमस है. इस ब्रिज का नाम साल 1965 में रबिंद्रनाथ टैगोर के नाम पर रबिंद्र सेतु रख दिया गया था. हावड़ा ब्रिज से जुड़े कई रोचक तथ्य हैं जिनके बारे में हम आज आपको बताने जा रहे हैं.
भारत में अगर अभियांत्रिकी के सर्वश्रेष्ठ नमूनों की बात की जाए तो हावड़ा ब्रिज का नाम जरूर आता है. 82 साल के हो चुके इस ब्रिज को कई फिल्मों और टीवी सीरियल्स का हिस्सा बनाया गया. इस ब्रिज ने हावड़ा और कलकत्ता को बदलते देखा है. लोगों की भाग-दौड़ देखी है और इन सब के बावजूद भी ये आज भी अपने गौरव को समेटे खड़ा है. इस ब्रिज का नाम साल 1965 में रबिंद्रनाथ टैगोर के नाम पर रबिंद्र सेतु रख दिया गया था. हावड़ा ब्रिज से जुड़े कई रोचक तथ्य हैं जिनके बारे में हम आज आपको बताने जा रहे हैं.
आपको जानकर हैरानी होगी कि 1945 में बनकर तैयार हुए इस ब्रिज का इतिहास पुराना है क्योंकि जहां आज का हावड़ा ब्रिज है, वहां एक पुराना ब्रिज था जिसे बंगाल के लोग पुरोनो ब्रिज कहते थे. वो पीपे से बना पुल था जिसकी शुरुआत 17 अक्टूबर 1874 को हुई थी और इसको डिजाइन किया था रेलवे के चीफ इंजीनियर ब्रैडफोर्ड लेसली ने. यूं तो ये पुल सिर्फ 25 सालों के लिए बनाया जाना था मगर ये करीब 74 सालों तक अस्तित्व में रहा
आपने हावड़ा ब्रिज के बीच से दो भागों में बंट जाने की कहानियां तो खूब सुनी होंगी. दरअसल, वो इस पीपे के पुल से जुड़ी कहानियां थीं. जब कोई शिप या नाव गुजरती तो पुल को बीच से खोल दिया जाता था. उस दौरान नाव के आने का समय तय था और उसी के हिसाब से लोग वहां से गुजरते थे. 1906 के बाद से जल वाहनों के लिए पुल सिर्फ रात के वक्त ही खुलता था. साल 1945 में इस पुल को डिसमैंटल कर दिया गया था क्योंकि तब नए पुल का निर्माण हो चुका था.
अब सवाल ये उठता है कि नया ब्रिज किस मामले में अनोखा है. आपको बता दें कि नए ब्रिज में एक भी नट-बोल्ट नहीं है. इस ब्रिज के धातु को एक दूसरे से लोहे के छड़ों से बांध-बांधकर जोड़ा गया है. हालांकि, बहुत से लोगों का दावा है कि इसमें नट-बोल्ट हैं मगर बेहद कम संख्या में हैं.
ये दुनिया का छठा ऐसा ब्रिज है जिसमें एक भी खंभा नहीं है. यानी ये ब्रिज बीच से वहा में लटा है. इस ब्रिज को इस तरह का दुनिया में सबसे व्यस्त पुल माना जाता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक इस पुल पर हर दिन 2 लाख लोग पैदल चलते हैं वहीं 1 लाख कारें पास होती हैं. साल 1993 तक पुल पर ट्राम भी चला करती थी मगर ज्यादा भीड़ होने की वजह से इसमें ट्राम का आवागम बंद कर दिया गया.
इस ब्रिज पर कई तरह के खतरे भी मंडराए मगर ये टिका रहा. पुराना पुल तूफान के बीच भी फंस गया था जबकि एक बार एक शिप इस पुल से टकरा गई थी. यही नहीं, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान ने कलकत्ता पर बम भी गिराए थे मगर पुल को कोई नुकसान नहीं पहुंचा क्योंकि उस वक्त उनका प्रमुख मकसद किंग जॉर्ज डॉक को तबाह करना था जिसे अब नेताजी सुभाष डॉक के नाम से जाना जाता है. उस दौरान वो अमेरिकी सेना का अस्थायी बेस था.