इंदौर। संत भय्यू महाराज की आत्महत्या के मामले सजा पा चुके सेवादार विनायक, पलक और शरद ने इस हद तक प्रताड़ित किया कि उन्होंने आत्महत्या कर ली। न्यायालय ने महाराज की पत्नी आयुषी को महत्वपूर्ण गवाह माना। आयुषी ने बयान में यह भी कहा था कि आरोपित महाराज से खाली चेक पर हस्ताक्षर करवाते थे। एक बार महाराज ने चेक पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया तो विनायक उनके हाथ से चेकबुक छीनकर ले गया। बाद में महाराज ने आयुषी को बताया था कि मुझे तीनों बहुत परेशान करते हैं। पलक मुझे बार-बार डराती है।
भय्यू महाराज आत्महत्या केस की जांच पहले तत्कालीन सीएसपी मनोज रत्नाकर को दी थी। उन्होंने अपनी जांच में घरेलू विवाद में महाराज द्वारा आत्महत्या करने की बात कही। तब पत्नी आयुषी और बेटी कुहू के बीच के विवाद की बातें भी खूब उछली थीं। पुलिस की जांच पूरी होने के बाद महाराज के चालक कैलाश ने केस के वकील निवेश बड़जात्या को फोन पर धमकी दी थी। इसके बाद फिर भय्यू महाराज आत्महत्या केस की फाइल खुल गई और पलक, विनायक और शरद के नाम सामने आए
मालूम हो कि तनाव की वजह से उनका मनोरोग विशेषज्ञ उपचार कर रहे थे, लेकिन शरद और विनायक उन्हें नींद की गोलियां खिलाते थे। न्यायालय में सुनवाई के दौरान यह तथ्य भी सामने आया कि गोलियां खाने से जब महाराज को नींद आती थी तो विनायक और शरद पलक को उनके कमरे में ले जाकर वीडियो बनाते थे और उसे दिखाकर ब्लैकमेल करते थे। उस अवस्था में उन्होंने कुछ फोटो भी खींच लिए थे, जिसे दिखाकर आरोपितों ने महाराज को इतना तनाव दिया कि उन्होंने आत्महत्या जैसा कदम उठा लिया।
पलक बार-बार भय्यू महाराज पर शादी के लिए दबाव बनाती थी। एक बार तो पलक ने अपने जन्मदिन पर भय्यू महाराज को गुजरात आने के लिए दबाव बनाया। वे जन्मदिन पर नहीं गए, लेकिन उसने इतना प्रताड़ित किया कि दो दिन बाद उन्हें गुजरात जाना पड़ा। पलक को देखकर महाराज अक्सर तनाव में आ जाते थे। शरद के पास पलक के कॉल आते थे और शरद महाराज को बात करने के लिए फोन दे देता था।
जानकारी के अनुसार इस प्रकरण में यह तथ्य भी सामने आया कि महाराज का सेवादार विनायक ट्रस्ट पर कब्जा करना चाहता था। महाराज के अवसाद की स्थिति में विनायक ने उनसे सुसाइड नोट भी अपने पक्ष मेें लिखवा लिया था। विनायक ने बैंक, पैसों के लेन-देन के अलावा मेडिकल से दवा लाने के काम भी संभाल रखे थे। विनायक ने भय्यू महाराज के परिवार में इतना हस्तक्षेप बढ़ा लिया था कि वह महाराज के स्वजन को भी मिलने नहीं देता था। महाराज की मृत्यु के समय भी वह परिवार के सदस्य की तरह उठावने में मंच पर बैठा था।