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विशेषज्ञों का दावा कोरोना के साथ पूरे साल ब्लैक फंगस का रहा था खतरा क्या है राय जानिए…..

विशेषज्ञों की एक टीम ने जब कोरोना और ब्लैक फंगस के बारे में जो राय सामने रखी उसमें सरकार की कमियां सीधे-सीधे नजर आई क्योंकि जब विशेषज्ञों ने कहा कि ब्लैक फंगस और पिछले साल आए कोरोना के पहले चरण खत्म नहीं हुए थे बल्कि वो जारी थे लेकिन सरकार ने ध्यान नहीं दिया यह सोच कर कि कोरोना और ब्लैक पंकज का खतरा टल गया है,इतना ही नहीं ब्लैक फंगस के मामले पिछले साल से कोरोना मरीजों में देखने को मिल रहे हैं। बावजूद इसके संक्रमण को रोकने वाली एंटी फंगल दवा की उपलब्धता पर ध्यान नहीं दिया।Indore and bhopal is facing new Corona raises new threat Black fungus is  life threatening nsmp | क्या कोरोना से भी खतरनाक बीमारी देने वाली है दस्तक,  इंदौर के MYH में 11
विशेषज्ञों का कहना है कि दवा के साथ-साथ लोगों में जागरूकता लाने का प्रयास भी नहीं किया गया और अब दूसरी लहर में यह अचानक से बढ़े तो सरकार भी सचेत हुई है। मौजूदा स्थिति यह है कि देश के ज्यादातर राज्यों में ब्लैक फंगस को रोकने वाला एंटी फंगल इंजेक्शन अम्फोटेरीसीन बी बाजार से गायब हो चुका है। इसकी कालाबाजारी भी काफी तेजी से बढ़ गई है।

वहीं समय पर दवा न मिलने की वजह से मरीजों को ऑपरेशन कराने की नौबत आ रही है।  दिल्ली एम्स के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने बताया कि उनके यहां भी दवा की काफी कमी है। दवा न मिलने की वजह से ऑपरेशन बढ़े हैं और उनके यहां भी यही हालात हैं।

नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल का कहना है कि ब्लैक फंगस का केंद्रीय स्तर पर डाटा नहीं है। हालांकि कुछ राज्यों से सूचना जरूर मिली है कि कहीं दो हजार तो कहीं 500 लोगों में यह संक्रमण हुआ है। आईसीएमआर ने इन मरीजों के रजिस्ट्रेशन पर काम शुरू किया है।

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एम्स दिल्ली के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया का कहना है कि ब्लैक फंगस को रोकने के लिए पहले दिन से ही सतर्कता जरूरी है। पहले तो लोग कोशिश करें कि उन्हें कोरोना न हो। इसके लिए कोविड सतर्कता नियमों का पालन करें।कोरोना के बाद देश में बढ़ा ब्लैक फंगस का खतरा अब तक गई 52 की जान जानिए  विशेष.. - News Times 7

अगर कोरोना होता है तो ब्लैक फंगस न हो, इसका विशेष ध्यान रखें। अनियंत्रित मधुमेह, स्टेरॉयड का ज्यादा सेवन इत्यादि नहीं होना चाहिए। अगर ब्लैक फंगस होता है तो पहले ही दिन उपचार मिलना जरूरी है। black fungus enters in jabalpur after bhopal indore one covide recovered  patient died from this dvmp | इंदौर, भोपाल के बाद जबलपुर में ब्लैक फंगस की  एंट्री, कोरोना से ठीक हो चुके

दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के डॉ. मनीष मुंजाल ने बताया, हमारे पास कोविड के साथ ब्लैक फंगस का पहला केस 30 नवंबर 2020 को आया था। जब 32 वर्षीय दिल्ली निवासी राजेश ने कोरोना संक्रमित होने के बाद कॉकटेल एंटीवायरल दवाओं का सेवन किया और निगेटिव होने के बाद ब्लैक फंगस की चपेट में आ गया। उस वक्त हमारे लिए यह स्थिति आश्चर्यजनक थी क्योंकि कोविड-19 के इस प्रभाव के बारे में कभी सोचा ही नहीं गया।

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चंद दिनों में ही 14 दिसंबर तक उनके यहां 10 मरीज ब्लैक फंगस के चलते भर्ती हुए जोकि 50 फीसदी रोशनी खो चुके थे। इनमें से पांच लोगों की मौत भी हुई। इन मामलों को लेकर हमने जानकारी भी दी थी लेकिन उसके बाद कुछेक मामले सामने आते रहे लेकिन अप्रैल के तीसरे सप्ताह से इनकी संख्या बढ़ गई।

65 वर्षीय राजेश्वर प्रसाद छह मई को कोरोना निगेटिव होने के बाद भी बुखार से बाहर नहीं आ पा रहे थे। उन्हें बीएलके अस्पताल ले जाया गया जहां आपातकालीन वार्ड में एमआरआई और ब्लड जांच से पता चला कि इन्हें ब्लैक फंगस है लेकिन अस्पताल ने सिर्फ इसलिए इन्हें भर्ती नहीं किया क्योंकि उनके पास ब्लैक फंगस की दवा नहीं थी।ओडिशा: 71 साल के कोरोना संक्रमित मरीज में 'ब्लैक फंगस' का पहला मामला दर्ज,  आंखों में सूजन और कालेपन की शिकायत |Odisha: First case of 'black fungus'  registered in 71-year ...अस्पताल ने परिजनों को स्पष्ट कहा है, हमारे पास दवा नहीं है अगर फिर भी आप भर्ती करना चाहे तो कर सकते हैं लेकिन दवा आपको लानी होगी। इस दवा के लिए उनका बेटा राहुल पूरी रात परेशान रहा लेकिन जब उन्हें दवा नहीं मिली तो वे अगले दिन एम्स के इमरजेंसी अस्पताल पहुंचे यहां कुछ मरीजों के लिए दवा होने की वजह से भर्ती कर लिया लेकिन फिलहाल मरीज को दिखाई देना बंद हो चुका है। उन्हें आईसीयू में रखा है। डॉक्टरों के अनुसार हालत गंभीर है।

कोरोना से पहले देश में एक महीने के दौरान अम्फोटेरीसीन बी 100 वॉयल की जरूरत भी नहीं पड़ती थी अस्पताल को।
अब एक ब्लैक फंगस के मरीज को ही 120 वॉयल तक देने की मांग।
एम्स सहित बड़े अस्पतालों में एक या दो ही मरीज आते थे सामने, अब संख्या एक से डेढ़ हजार गुना बढ़ी।
एक मरीज पर ब्लैक फंगस की दवा का खर्च
ब्लैक फंगस दवा की एक बोतल की कीमत 6 से 7.5 हजार तक। दिन में एक बोतल छह सप्ताह तक देना जरूरी यानी 2.52 से 3.15 लाख रुपये तक का खर्च।Alert! कोरोना से ठीक हुए मरीजों को जकड़ रही है 'काली फफूंदी' बीमारी, जानिए  क्या है इसके लक्षण
कालाबाजारी बढ़ने से एक मरीज का खर्चा 5 से 6 लाख रुपये तक बढ़ा।
14 दिन में सिर्फ एक लाख इंजेक्शन
सिपला, भारत सीरम, वॉकहार्ट, एबॉट हेल्थकेयर, यूनाइटेड बायोटेक कंपनियां कर रहीं दवा उत्पादन।
एक से 14 मई के बीच केंद्र ने राज्यों को उपलब्ध कराए एक लाख इंजेक्शन, इसी बीच मरीज तीन हजार से ज्यादा भी मिले।

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