निर्वाचन आयोग ने पहले ही 22 अप्रैल से होने वाली इलेक्शन ट्रेनिंग को स्थगित कर इस बात के संकेत दे दिए थे कि हो सकता है कि चुनाव फिलहाल टाल दिए जाएं. हालांकि अभी इस बात की समीक्षा की जानी है, लेकिन कोरोना संक्रमण की तेज रफ्तार के कारण ऐसे आसार बन रहे हैं कि पंचायत चुनाव टाल भी दिए जाएं. जानकारों की मानें तो ऐसी स्थिति में जहां संवैधानिक पेच फंस जाएंगे, वहीं यदि पंचायत चुनाव समय नहीं हुए तो बिहार विधान परिषद की सूरत भी बदल जाएगी.बता दें कि स्थानीय प्राधिकार से विधान परिषद में कुल 24 सदस्य चुने जाते हैं. हर दो साल पर आठ सदस्यों का निर्वाचन होता है. 2009 और 2015 में सभी सीटें एक साथ भरी गयी थी. 2021 में किस तरह ये सीटें भरी जाएंगी ये अभी तक तय नहीं हुआ है. अभी इस बात को लेकर कयास ही है कि सभी सीटों पर एक साथ चुनाव होंगे या द्विवार्षिक चुनाव की प्रक्रिया शुरू होगी. फिर भी पिछले चुनाव के जीते उम्मीदवार चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं.
हार-जीत तय करते हैं पंचायत और नगर निकायों के प्रतिनिधि
गौरतलब है कि स्थानीय क्षेत्र के इस चुनाव के मतदाता पंचायत और नगर निकायों के निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं. हार-जीत का निर्धारण भी पंचायतों-नगर निकायों के निर्वाचित प्रतिनिधियों के मतों से ही होता है. हालांकि क्षेत्र के लोकसभा एवं राज्यसभा के सदस्यों और विधायकों-विधान पार्षदों को भी मताधिकार है. लेकिन, हार जीत का निर्धारण पंचायतों-नगर निकायों के निर्वाचित प्रतिनिधियों के मतों से ही होता है.