बंगाली सभय्ता को प्रदर्शित करने वाली ममता बनर्जी के अंदर अचानक हिंदी का जिन्न जाग गया है हिंदी भाषी के लिए प्रेम उमड़ने लगा है, दरअसल पश्चिम बंगाल में शानदार जीत के बाद से लगातार इस पर बात पर चर्चा हो रही है कि तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी 2024 के लोकसभा चुनावों में विपक्ष का चेहरा बन सकती हैं। लेकिन इस राह में उनकी अच्छी हिंदी नहीं आना एक बड़ी अड़चन है। जबकि हिंदी पट्टी वाले राज्यों खासतौर पर उत्तर प्रदेश को दिल्ली की सत्ता तक पहुंचने या केंद्रीय राजनीति में आने की सीढ़ी माना जाता है। इसलिए यदि इन राज्यों की जनता तक ममता को पहुंचना है उनका हिंदी में बोलना जरूरी होगा। चर्चा है कि इसी वजह से ममता बनर्जी को अब हिंदी से खास लगाव हो गया है।
ममता इन दिनों दिल्ली दौरे पर हैं। पश्चिम बंगाल की तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद वे पहली बार दिल्ली आई हैं। अपने इस दौरे पर जहां वे सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद मोदी से मिलीं, वहीं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत कई नेताओं से भी मुलाकात की है। भाजपा से कड़ी टक्कर मिलने के बाद भी वे पश्चिम बंगाल की सत्ता पर काबिज होने में कामयाब हुई हैं, इसलिए कई सवालों के साथ बड़ी संख्या में पत्रकार भी उनसे मिलना चाहते थे।
पत्रकारों के सभी सवालों के जवाब हिंदी में दिए
लिहाजा, मुख्यमंत्री के साथ पत्रकारों की मुलाकात बुधवार को तृणमूल कांग्रेस के सांसद शुखेंदु शेखर राय के आवास पर रखी गई थी। अखबार और चैनलों के लगभग 60 पत्रकारों के साथ बुधवार को ममता बनर्जी ने एक अनौपचारिक बातचीत की, जहां राष्ट्रीय स्तर पर उनकी महत्वाकांक्षाओं और विपक्षी एकजुटता पर चर्चा हुई। सूत्रों के मुताबिक शुखेंदु शेखर राय ने औपचारिक तौर पर जब मीडिया को बंगला में धन्यवाद देना शुरू किया तो ममता ने उन्हें टोकते हुए कहा कि वे हिंदी में बात करें।
ममता ने हिंदी में पूछे गए सभी सवालों के जवाब हिंदी में ही दिए। यह पूछे जाने पर कि उन्होंने अपनी हिंदी कैसे दुरुस्त कर ली है, उन्होंने कहा कि पीएम मोदी को हिंदी बोलते देख उनकी हिंदी भी अच्छी हो गई है। अमित शाह को देखकर गुजराती भी अच्छी हो गई है। ममता को अब तक टूटी-फूटी हिंदी में ही बोलते देखा गया है। वे बंगला और अंग्रेजी भाषा अच्छी तरह जानती हैं। दिसंबर 2020 में कथित तौर पर एक वायरल वीडियो में उन्हें यह दावा करते देखा गया था कि वे 14 भाषाएं जानती हैं।
हिंदी सीखकर केंद्र की राजनीति के लिए तैयार हो रहीं ममता
पश्चिम बंगाल का किला फतह करने के बाद राजनीतिक पंडित अब केंद्र की राजनीति में ममता बनर्जी की अहम भूमिका मान रहे हैं। ममता बनर्जी भी खुद उसी तरह से अपने आप को दिल्ली की राजनीति के लिए तैयार कर रही हैं। भाजपा को हराने के लिए विपक्ष को एकजुट करने की उनकी इस कवायद को इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। सूत्रों ने बताया कि जब कुछ पत्रकारों ने उनसे यह सवाल किया कि वे तो दिल्ली से बाहर की हैं यहां कैसे काम करेंगी, इस पर उन्होंने पीएम मोदी का उदाहरण देते हुए कहा कैसे ‘दिल्ली’ के पत्रकार गुजरात के मोदी को अपने बीच का मानते हैं लेकिन उन्हें बाहरी मानते हैं।
दरअसल ममता जान गई हैं कि बिना अच्छी हिंदी बोले हिंदी पट्टी जैसे यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान समेत उन तमाम राज्यों के मतदाताओं का दिल जीते बिना दिल्ली की राजनीति करना संभव नहीं है। तृणमूल के रणनीतिकार खासकर प्रशांत किशोर भी ममता को यह समझा चुके हैं कि भाजपा से मुकाबला करना है तो हिंदी ही वो माध्यम है जिसके जरिए ही वे अपनी बात इन राज्यों की जनता तक आसानी से पहुंचा सकती है।
दरअसल हिंदी पट्टी वाले राज्यों में भाजपा सबसे ताकतवर पार्टी है। 2019 के लोकसभा चुनाव में हिंदी पट्टी राज्यों में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में भाजपा ने जबरदस्त जीत हासिल की। भाजपा को सबसे अधिक 4.28 करोड़ वोट उत्तर प्रदेश से मिले। वहीं मध्य प्रदेश से 2.14 करोड़, राजस्थान से 1.90 करोड़ वोट मिले थे। इसके अलावा बिहार, हरियाणा, छत्तीसगढ़ और झारखंड में भी अच्छी संख्या में वोट भाजपा को पड़े थे।
भाजपा को पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से 62, मध्यप्रदेश में 28, राजस्थान की सभी 25 सीटें, बिहार से 17 सीटें मिली थी। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत के 43.63 फीसदी लोग हिंदी बोलते हैं। हिन्दी को दूसरी भाषा के तौर पर इस्तेमाल करने वाले अन्य भारतीयों को मिला लिया जाए तो देश के लगभग 75 प्रतिशत लोग हिन्दी बोल सकते हैं।
सूत्रों के मुताबिक ममता बनर्जी भी अब भाजपा नेताओं की तरह ‘जैसा देश वैसा भेष’ वाली कहावत का अनुसरण करना चाहती हैं। यह देखा गया है कि भाजपा के नेता जिस राज्य में जाते हैं, उसी की संस्कृति में रचे-बसे नजर आते हैं। फिर चाहे पहनावा हो या फिर बोली। दिवंगत नेता सुषमा स्वराज की बात करें या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत तमाम भाजपा नेताओं की उनकी खासियत रही है कि वे जिस राज्य में गए वहीं की भाषा में लोगों से बात कर उनके दिल में जगह बनाने में कामयाबी हासिल कर ली।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिंदी में दी जाने वाली भाषण शैली तो खास तौर पर मशहूर है। यहां तक कि वे अपनी हर चुनावी रैली में क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों को तवज्जो देते हैं। अक्सर देखा गया कि वे स्थानीय बोली में अभिवादन करके भीड़ का दिल जीत लेते हैं। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद सरकारी कामकाज और अधिकारियों के बीच संवाद करने में भी हिंदी को प्राथमिकता मिलने लगी है।
80 लोकसभा सीटों वाले हिंदी पट्टी के सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में 6 महीने के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं और ममता इस चुनाव को लेकर काफी उत्साहित है और चुनावी रैलियों में सपा के समर्थन में भाजपा के खिलाफ हिंदी में जोरदार भाषण देने की तैयारी कर रही हैं। सूत्रों के मुताबिक बुधवार को पत्रकारों के एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अगर वहां की पार्टियां बुलाएंगी तो वे प्रचार करने जरूर जाएंगी।
पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद से चर्चा इस बात की है कि ममता बनर्जी बनारस से नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनावी रण में उतर सकती हैं, हालांकि उन्होंने इस सवाल का सीधा जवाब तो नहीं दिया बस इतना कहा कि मैं बनारस जरूर जाऊंगी। सूत्रों के मुताबिक उन्होंने बातों-बातों कहा कि वहां का खाना लजीज है, वहां का माहौल भी अच्छा है, गंगा, अलग-अलग घाट सबकुछ अच्छा है। दरअसल ममता बनर्जी ने सीधे तौर पर कुछ न कहकर यह संकेत दे दिया कि वक्त आने पर वे काशी जाएंगी।
यूपी चुनाव में भाषण देने की तैयारी में
80 लोकसभा सीटों वाले हिंदी पट्टी के सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में 6 महीने के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं और ममता इस चुनाव को लेकर काफी उत्साहित है और चुनावी रैलियों में सपा के समर्थन में भाजपा के खिलाफ हिंदी में जोरदार भाषण देने की तैयारी कर रही हैं। सूत्रों के मुताबिक बुधवार को पत्रकारों के एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अगर वहां की पार्टियां बुलाएंगी तो वे प्रचार करने जरूर जाएंगी।
पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद से चर्चा इस बात की है कि ममता बनर्जी बनारस से नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनावी रण में उतर सकती हैं, हालांकि उन्होंने इस सवाल का सीधा जवाब तो नहीं दिया बस इतना कहा कि मैं बनारस जरूर जाऊंगी। सूत्रों के मुताबिक उन्होंने बातों-बातों कहा कि वहां का खाना लजीज है, वहां का माहौल भी अच्छा है, गंगा, अलग-अलग घाट सबकुछ अच्छा है। दरअसल ममता बनर्जी ने सीधे तौर पर कुछ न कहकर यह संकेत दे दिया कि वक्त आने पर वे काशी जाएंगी
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